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3.9.08

उस बच्चे के इरादों ने मुझे फिर से लड़ने के लिए तैयार कर दिया

स्वयंबरा (swayambara@gmail.com)

ऐसा बच्चा जिसने मुझे जिन्दगी जीने कि प्रेरणा दी. कुदरत ने उसके साथ नाइंसाफी की थी. वो अँधा, गूंगा और बहरा था. पर उसके हौसले हिमालय जैसे बुलंद थे. उन दिनों मै सिविल सेवा के लिए इंटरव्यू में चयनित नही होने के कारन हताश थी. आत्महत्या कि बातें भी दिमाग में आने लगी थी. मै एक कलाकार भी हूँ और हमारी एक संस्था यवनिका भी है, जो हमारे छोटे से शहर आरा, बिहार की अग्रणी संस्था है. इसी कारण हमें अक्सर विभिन्न आयोजनों में बुलाया जाता है. इसी क्रम में मुझे इस मासूम के बनाये चित्रों की प्रदर्शनी में बुलाया गया. अनमने ढंग से देखने गई. दीपक और उसके बनाये चित्रों को देखकर अवाक् रह गई. हँसता-मुस्कुराता वह बच्चा कितनी आसानी से अपनी विकलांगता को ठेंगा दिखा रहा था और मै एक छोटी सी हार से हताश हो गई थी.. उस बच्चे के इरादों ने मुझे फिर से लड़ने के लिए तैयार कर दिया. जैसे कि एक भयानक सपना देखकर जाग गई. घर आई तो मेरी लेखनी खुद ब खुद चल पड़ी, जिसने दीपक के ऊपर लिखी गई कविता का रूप ले लिया. आप सुधि पाठको के लिए वही लिख रही हूँ।

दीपक
तू विधु शीतल कोमल-कोमल,
नन्हा-दीपक निर्झर झर-झर
असाधारण-अखंड -ज्योति तू जो
जलता है हरदम हर-हर पल
या की सतजुग का कोई ऋषि
उस, निराकार का अभिलाषी
या 'दिनकर' का तू 'रश्मिरथी'
संघर्षशील पुरुषार्थ वही
ना-ना तू है वोः 'निराला-राम'
तम्-रावन को हरता हर कही
या जन्मा तू अवतार कोई
कहने महत्ता ढाई आखर की,
कि मै और तू की भिन्नता छोड़ो
हो जाओ प्रकृति से एकाकार
आकृति, रंग, तूलिका तेरे
देते ये संदेसा बार-बार
दीपक प्रज्जवल हो ज्वलित बन
जला कलि के सारे तम् को
करके झिलमिल-झिलमिल-झिलमिल
दिखला

दे राह भटके हुए को
तू है दीपक, दीपक है तू
गुन-नाम धन्य स्रष्टा बनकर
अपने चित्रों की पूर्णता से
बन जा तू भी संपूर्ण भास्कर

ये बच्चा आरा, बिहार के पत्रकार भीम सिंह भवेश का पुत्र है.

(स्वयंबरा द्वारा भड़ास पर प्रकाशन के लिए प्रेषित)

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