कई राज्यों में चुनावी महाकुम्भ शुरू हो चुका है..और इसके साथ ही नेताओं के jहुन्द के झुंड आने शुरू हो गये है.जो अपनी मीठी वाणी से वोट jइतने में लग गये है...लेकिन ठाह्रिये हम क्यूँ सुने उनकी बात हमे जब भी उनकी जरूरत थी तो वे नदारद थे अब जब वो आ ही गये है तो आप सुनिए मत बल्कि उनको सुनाइए..जो भी आप कहना चाहते है क्यूंकि यकीनन वे सुनेंगे जरूर सुनेंगे.....अपनी बात को उनके सामने प्रभावी ढंग से उठाइए उन्हें ...सुननी ही होगी...-रजनीश परिहार,बीकानेर.....
6.11.08
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1 comment:
ठीक कहा रजनीश ने, सुनो न उनकी बात.
बेहतर हो कि मार दो, तुम उनको दो लात.
मारो उनको लात, इसी काबिल हैं सारे.
नई राह लेकिन बतलाओ,मिलकर सारे.
कह साधक कवि,वोट-तन्त्र से बाहर निकलो.
वरना भारत डूब जायेगा ,यारों सँभलो.
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