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6.11.08

कार में बैठा हुआ, पैदल सफर करता रहा....

कल बहुत दिनों बाद अपने मेरठी मित्र विजेंद्र सिंह परवाज से मुलाकात हुई। अंग्रेजी के लेक्चरर पद से रिटायर होने के बाद परवाज साहब की असली जिंदगी शुरू हुई है। वे उम्दा शायर हैं, लड़ाकू शख्सीयत है, क्रांतिकारी व्यक्तित्व है, आध्यात्मिक मन है, मोरारी बापू के अनन्य भक्त हैं, औघड़ों का तन है, फकीरी रास आती है। भड़ास ब्लाग पर परवाज साहब को न सिर्फ पेश कर रहा हूं बल्कि उन्हें उनके मिजाज को देखते हुए परम भड़ासी की उपाधि भी देता हूं। परवाज साहब भड़ास से जुड़ चुके हैं और वे इसके सक्रिय सदस्य बनने की तैयारी कर रहे हैं। लीजिए, उनके कुछ लिखने से पहले मैं उनके लिखे कुछ शेर पेश करता हूं। मुझे यकीं है आपको पसंद आएगा....यशवंत

जब अमीरी में मुझे गुरबत के दिन याद आ गए

कार में बैठा हुआ पैदल सफर करता रहा।

जिस्म पर कपड़ा नहीं तो अपनी आंखें मूंद ले

कम से कम तुझसे तो तेरा तन छुपा रह जाएगा।

जरा सी बात की खातिर जमीर क्यों बेचें

जरूरतों का सफर सिर्फ जिंदगी तक है।

उम्र भर मेरी शराफत ने खड़ा पहरा दिया

तब कहीं ईमान की दौलत बचा पाया हूं मैं।

बिक गया बाजार में दोपहर तक एक एक झूठ

शात तक बैठे रहे हम अपनी सच्चाई लिए।

अपनी खराबियों को छुपाना पड़े मुझे

भूले से जब किसी ने समझदार कह दिया।

आप दुनिया को बदल डालेंगे, धीरे बोलिए

हौसले की बात कहना बुजदिली है आजकल।

न यूं उठा था धुआं आसमान से पहले

डरा हुआ है परिंदा उड़ान से पहले।

वो मेरे जनाजे में शामिल नहीं है

उसे जिंदगी से कुछ उम्मीद होगी।

दामन पे दाग आए न आए मेरा नसीब

कीचड़ उछालकर तेरी हसरत निकल गई।

आप फूंकों से बुझाने की न कोशिश कीजिए

इन चरागों का सफर तो आंधियों तक जाएगा।

आगे निकल गए हैं मेरे हमसफर तमाम

कांटा निकालने में बहुत देर हो गई।

तलवार पे जाहिर नहीं इक बूंद लहू की

शायद वो मेरे जिस्म के साए से लड़ा है।

...........ऐसा लिखते हैं अपने परवाज साहब।

किसान परिवार के परवाज साहब प्रचार से हमेशा दूर रहे। इसके चलते उनके लिखे को वो सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार हैं। परवाज साहब बेहद यारबाज आदमी हैं। जिसको दिल दिया फिर उसी के हो गए। जिसको अपनाया तो कभी छोड़ा नहीं। दोस्त कम बनाए लेकिन चुनकर बनाए। दुश्मनों की कभी परवाह नहीं की। परवाज साहब में गजब की विविधता है। उनके शेर में रेंज बहुत है। अध्यात्म से लेकर राजनीति तक, हर विषय पर उन्होंने गजब की लाइनें कहीं हैं।

भड़ास इस देसी और भदेस शायर को उसका सम्मान दिलाने के लिए कृत संकल्पित है। पहले चरण में परवाज साहब को भड़ास ब्लाग से जोड़ा जा रहा है। दूसरे चरण में उनके शेर को नियमित तौर पर यहां प्रकाशित किया जाएगा। तीसरे चरण में उनका एकल काव्य पाठ का प्रोग्राम दिल्ली में आयोजित कराया जाएगा।

कल परवाज साहब दिल्ली में थे। ढाई साल बाद मैं उनसे कल मिला। जब उनका फोन आया तो मैं उन्हें तीसरा स्वाधीनता आंदोलन द्वारा दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्टान में आयोजित राष्ट्रीय विमर्श में बुला लिया। वहां रजनीश के झा समेत कई भड़ासी साथी थे। परवाज साहब ने विमर्श में अपने शेर व अपनी बातों से सबको मुग्ध कर दिया। प्रोग्राम के बाद रजनीश झा और मैंने अलग से परवाज साहब को सुना। वहां से चलने को हुए तो दारू का एक अद्धा लिया गया और कार में ही पीते पिलाते खाते रात 10 बजे तक यहां वहां घूमते रहे, उनको सुनते रहे, उनसे दिल का साझा करते रहे। रात में वे मेरे घर पर ही रुके। पिछले ढाई साल में उन्होंने जो जो नई किताबें लिखीं, उसकी एक प्रति भेंट की। उम्मीद है परवाज साहब से अब नियमित तौर पर हम सभी का संपर्क बना रहेगा।

भड़ास पर परवाज साहब का मैं दिल से स्वागत करता हूं।

जय भड़ास

यशवंत

3 comments:

पुनीत ओमर said...

दिल छू लिया इन पंक्तियों ने.
बहुत ही खूब...

Bandmru said...

bahut khub....

dinesh mourya said...

जनाब दिल छु लिया आपने उम्मीद करता हूं हर रोज आपके लिखी ये बातें रोज रोज पढने को मिले शायद इन्ही पंक्तीयों में जिंगदी को सच्चाई छुपी है।