पश्चिम की नकल से अपनी तहजीब भूले भारतीय
भारत देश अपने आप में बहुत खास देश है। यहाँ की संस्कृति के चर्चे विश्व में किए जाते हैं, लेकिन आज यहाँ के हालात ऐसे हो चले हैं कि लोग पश्चिमी संस्कृति को ग्रहण कर रहे हैं और अपनी तहजीब को भूलते जा रहे हैं। हम जब भी यहाँ आते हैं और इस तरह से यहाँ की संस्कृति को विकृत होते हुए देखते हैं तो बड़ा बुरा-सा लगता है। यह बात न्यूयार्क निवासी कृष्ण कुमार गुप्ता और उनकी पत्नी श्रीमती सुधा गुप्ता ने नई दुनिया के पत्रकार से चर्चा के दौरान कही। उन्होने कहा मुझे बड़ा दुख होता है कि दुनिया भारत की संस्कृति की ओर दीवानों की तरह देख रही है और हमारे लोग दूसरों की विकृत संस्कृति के पीछे आंख बंद करके दौड़ रहे हैं। कृष्ण कुमार जी मूलतः ग्वालियर के रहने वाले हैं, यहीं उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई है। काम के सिलसिले में वे सन् 1981 में अमेरिका चले गये थे तब से वहीं रह रहे हैं। श्री गुप्ता ने बताया कि जिस तरह यहाँ की पीढ़ी भारतीय संस्कारों, परंपराओं से दूर हो रही है, अपनी संस्कृति में कमियाँ दिखा रही है वहीं न्यूयार्क में रहने वाले भारतीय आज भी भारतीय रहन-सहन (भारतीय कल्चर) ही पसंद करते हैं। उनके साथ आई उनकी पत्नी श्रीमती सुधा गुप्ता ने भी इस बात पर खेद प्रकट किया कि हम लोग अपने ही देश में अपने संस्कृति को खोते जा रहे हैं जबकि दुनिया भर में इसकी चर्चा है। जहाँ यहाँ की लड़कियों के बाद अब विवाहित महिलायें जींस पहनना चाहती हैं वहीं वहाँ की महिलायें भारतीय परिधान पहनना ही पसंद कर रहीं है और अपने बच्चो को भी भारतीय संस्कारों से शिक्षित कर रही हैं। उन्होनं कहा कि हमने अपने बच्चों को सिर्फ कर्म का धर्म ही सिखाया हैं यदि उनसे पूछा जाये कि तुम्हारा धर्म कौन-सा है तो वे कर्म को ही अपना धर्म बतायेगंे। भगवत गीता में भी यही लिखा है।
हमें लज्जा आनी चाहिए कि किस तरह दुनिया हमसे सीखना चाहती है और हम दुनिया को सिखाने की जगह भोग-विलास में डूबते जा रहे हैं। जिस संस्कृति (पश्चिमी संस्कृति) से वहाँ के लोग भाग रहे हैं हम उसे दीवानों की तरह अपनाते जा रहे हैं। उसके तमाम दुष्परिणाम हमें देखने को मिल रहे हैं। पश्चिमी संस्कृति के अवगुणों को देख कर ही संभवतः स्वामी दयानंद सरस्वती ने लोगो से कहा था - वेदों की ओर लौटो। हमें अपने आपको बचाना है और संस्कारों को जीवित रखना है तो अपनी जड़ो की ओर लौटना होगा। हम जिस आजादी, बोल्ड माइंड और खुलेपन की बात करते हैं उसी वातावरण में 28 वर्षों से रहने के बावजूद श्री गुप्ता और उनका परिवार आज भी भारतीय संस्कारो को अपनाते हैं बल्कि अपनाते ही नहीं जीते हैं। यही है भारतीयता का जादू। अभी भी समय है जाग जाओ, तन्द्रा तोड़ो मत किसी के पीछे भागो। खुद को पहचानो। तुम औरों की नकल क्यों करते हो जबकि और आपकी नकल करना चाहते हैे। खैर वैसे आप खुद समझदार हैं मैंने तो बस अपनी और श्री गुप्ता जी की बात से आपको अवगत कराने का प्रयास किया है बाकी आपकी समझ।
10.4.09
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