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7.4.09

झूठे वादे दो... जूते लो


जब किसी जख्म का इलाज़ ढंग से ना हो तो, तो सड़ेगा ही न,व्यवसायिक तौर तरीके जरनैल सिंह को क्यों सिखाने में क्यों जुट गए हैं लोग बाग़? क्या इस देश की कानून व्यवस्था को चलाने वाली सरकार वाकई में अपना काम इमानदारी से कर रही है? कम से कम जरनैल सिंह दलाली करने वाले नेताओं और पत्रकारों से तो लाख गुना बेहतर हैं। नेताओं और सरकार को करारा जवाब है, कलम खरीद सकते हो पर जूते नहीं रोक पाओगे ...

विडम्बना है, कि हाथ उठाने वाले कि हरकत हर कोई देखता है, मुह चिढ़ाने वाले कि हरकत किसी को नज़र नहीं आती। चिदंबरम साहब तो केवल उस भ्रष्ट व्यवस्था के अक्स मात्र है, जिसके ऊपर जूता चला है। जिस व्यवस्था पर जूता चला है वह इस के ही काबिल है, बस व्यक्ति गलत सामने पड़ गया।

चिदंबरम साहब एक व्यक्ति के रूप में वे ईमानदार और एक काबिल कार्यकारी हो सकते हैं... लेकिन जब गवंई मनई लट्ठ लेकर डकैतों को दौड़ाता है, तो ये नहीं देखता कि कौन सा डकैत कम खूंखार है...

चिदंबरम साहब ने जरनैल सिंह को माफ़ ज़रूर कर दिया होगा पर राजनीतिज्ञों को समझ लेना होगा, कि अब जनता भ्रष्ट और नकारे नुमाइंदो को इतनी आसानी से माफ़ नहीं करने वाली...

2 comments:

kumar Dheeraj said...

जूते मारकर जनरैल सिंह ने कलम को कमजोर किया है । यह सही है कि कोई भी सरकार गलत करे या सही लेकिन यह हकीकत है कि सरकार के हाथ में अगर बंदूक दे दी जाए तो गुंडे-बदमाश और पुलिस के हाथ में क्या दिया जाएगा । पत्रकार का काम कलम से लड़ाई लड़ने की कुवत होनी चाहिए जनरैल सिहं ने कलम को कमजोर किया है

अनुराग तिवारी said...

मित्र इसको समाज के धैर्य के बिखरने के नज़रिए से देखें, व्यावसायिकता के नज़रिए से नहीं... हमारे वोट से चुनकर संसद में जाने वाले नेता हमें रोज़ जूता मारते हैं, ठेंगा दिखाते हैं. सालों तक न्यायपालिका में राजनितिक दबाव डालकर सीबीआई से केस लटकाए रखवाना और फिर अचानक क्लीन चिट देने का दौर... क्या रोज़ जूता खाने जैसा नहीं?

पत्रकार को अगर आपने जज्बातों पर नियंत्रण करना सिखा दिया तो पत्रकार कभी शिद्दत के साथ पूरा सच नहीं लिख पायेगा... क्या जज्बातों को व्यक्त करना सिर्फ कविताओं और फंतासी कहानियो में सिमट कर रह जायेगा?