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5.4.09

मेरा आइटम सुपरहिट

-शशांक पाण्डेय

शशांक पाण्डेय मेरे मित्र हैं ,उम्र १६ वर्ष ,ये इनकी पहली प्रस्तुति है ,मैं इनमे भविष्य के एक सशक्त व्यंगकार की छवि देखता हूँ ,आइये इन्हे पढ़ें

"बेटा! तू आ गया बेटा!"--- यह किसी हिंदी फिल्म का ही डायलौग है, किसी सुपर-डुपर हिट हिंदी पिक्चर का डायलौग।
अक्सर हम किसी ऐसी ही पिक्चर में देखते हैं कि कुम्भ के मेले में माँ के दोनों बच्चे बिछड़ जाते हैं. अरे अगर बच्चों से पीछा छुड़ाना था तो किसी जंगल में छोड़ देना था! बेचारे कुम्भ के मेले का उसमे क्या दोष? और बच्चों को मेले में छोड़ने से पहले ये सनक सवार हो गयी कि दोनों के हाथ पर एक 'स्लोगन' गुदवा दिया. ये काम बच्चे मिल जाने के बाद भी तो हो सकता था, पर नहीं! ऊपर से ये रोना रोना की बच्चे खो गए और पता नहीं क्या क्या.... यहाँ तक की बच्चों को ढूँढने की कोशिश भी नहीं करी ,उफ़ ! बस रोना-पीटना! अरे ये कोई बात हुई?
. वैसे तो मैंने आज तक किसी भी हिंदी की साहित्यिक पुस्तक को हाथ भी नहीं लगाया है, पर इतना तो पता ही चल जाता है कि पहले क्या हुआ होगा और बाद में क्या होगा? भाई मैं तो छोटा हूँ ,बड़ों को भी नहीं समझ में आता साहित्यिक कविताओं और कहानियो का मतलब ,पूरी कहानी ख़त्म ,जो चीज जहाँ थी वही है ,खुद ही लिखो ,खुद ही पढो
खैर ये तो बात पुराने सिनेमा की हुई, आज कल के 'डेली सोप्स' भी कम कमाल नहीं कर रहे हैं"टी. आर. पी." बढाने का मतलब ये तो नहीं है की हम लोग किसी चीज़ की एकदम काया पलट कर दें,जितने भी धार्मिक धारावाहिक आ रहे हैं उनमे इतिहास की ऐसी की तैसी कर दी जा रही है ऐसा मनोरंजन जो सत्य से कोसों दूर है ? ये तो हुई बात हमारे 'डेली सोप्स' की जिन्हों ने हमारे ग्रंथों, पुरानों, संस्कृत-ज्ञाताओं, और अथाह ज्ञान रखने वाले महापुरुषों को झुठला दिया है!
अभी एक ज़रूरी मुद्दा रह गया---'डेली सोप्स की वैम्प्स'का . इन्हें भी पता नहीं क्या मज़ा आता है लोगों की ज़िन्दगी उजाड़ने में? चलो ठीक है किसी के साथ बुरा करने की इच्छा हुई,तो किया! पर क्या इसका मतलब ये है की कोई अपनी दुर्दशा का बदला किसी से भी ले? चलो ठीक ,ये भी माना की बदला लेना इंसानी फितरत है, पर अफ़सोस इन 'डेली सोप्स' की मुख्या अदाकारा बस शादी से पहले तक ही अदाकारा रह पाती हैं! शादी के बाद तो वे इतना विलाप करती हैं जितना असल ज़िन्दगी में कभी किसी को देखा नही गया होगा ! और तो और किसी दिए के बुझने, सिन्दूर गिरने, पूजा की थाल गिरने, दूध का ग्लास गिरने इत्यादि से इतना व्यथित हो जाएँगी मैडम ,की मत पूछिए, पूरा फर्श पोछ सकते हैं, इतने आंसू बहाएंगी!
खैर अब बहुत हुआ, अब और कुछ नहीं कहना चाहूँगा,अभी 'हिन्दुस्तान' अख़बार में एक खबर पढ़ी है, जिसे पढ़कर मैं तो सच में बहुत डर गया हूँ!

9 comments:

Unknown said...

अंकल जी अभिवादन!
मैंने आपसे अपनी कुछ बातें बाँटीं, जिन्हें आपने महत्व देते हुए भडास जैसे प्रतिष्ठित ब्लॉग पर स्थान दिया.
बहुत-बहुत धन्यवाद!

दिल दुखता है... said...

बहुत तेज धार है.... धारावाहिकों ने तो समाज और परिवार की बात लगा कर रख दी है... जो नहीं होता उसे भी दिखया जाता है.... जो हो रहा है उसे किस तरह परोषा जा रहा है. क्या बताएं.

रश्मि प्रभा... said...

खुश रहो बेटा शशांक,हैं यही कहूँगी----होणार बिरवान के होता चिकने पात..

संत शर्मा said...

Achcha prayash hai, lekin lekh ko padhne ke kram me muskan swatah hi phut pade, iske liye thoda aur prayas ki jarurat hai.

RAJNISH PARIHAR said...

बहुत अच्छी.. शुरुआत है...लगे रहिये....कुछ और ....रचनाओं..का इंतज़ार रहेगा...

36solutions said...

बहुत ही अच्‍छी शुरूआत है सचमुच में आपका आईटम सुपहिट है आपकी पहली कविता की ही तरह ।

Unknown said...

kya khoob likhte ho badaa sunder likhte ho.

ρяєєтii said...

Shashank , bahut khub ....
Keep it up...

सिद्धान्त said...

aisi vyangyatmak posts kaafi hasaa to zaroor sakti hain lekin ye bhadas ki garima ka hanan karti hain,is chote baalak ke liye shubhkaamnaayen lekin is baalak aur iske saare samarthakon ko ye samajh lena chahiye ki sahitya se judna bahut hi zaroori hai ye kuch isi tarah hai ki agar aap vyang ke matter ke liye filmen ya serials dekhta hain to aapko bhaasha sambandhi gyan ke liye sahitya ki zameen se judna hoga. kabhi bhi aisa nahi hota ki jo cheez jahaan rahti hai wo hamesha wahi rahti hain.
Shashank! main tumse saaf shabdon mein bas itna hi kahna chaahta hoon ki bhaasha aur sahitya ka gyan bahut hi zaroori hai bhale hi tum aalochak ya vyangyakaar hi kyon na bananaa chahte ho. ye cheezain tumhare jaisi kam umra mein boring aur bakwaas to zaroor lagti hain lekin iski samajh tabhi aayegi jab tum shuruwaat karoge.
filmen dekho aur khoob filmen dekho aur khoob chintan karo aur sochne se kabhi mat daro.

Bhavishya ke liye shubhkaamnaayen.

ssiddhant mohan tiwary
--Varanasi--