कहावत सुनी थी, घरे में थरिया गिरल, बचल कि फूट गईल, केकरा के मालूम॥ मतलब घर में बर्तन गिरा , बचा कि टूट गया पडोसी को इससे क्या मतलब... उसने सिर्फ बर्तन गिरने कि आवाज़ सुनी थी... कुछ हाल वैसा ही जूतम पैजार का है, जूता लगे न लगे मीडिया ने और जनता ने बस इतना जाना कि जूता फेंका गया।
जूते का निशाना जहाँ था वहां बड़ा सटीक बैठा, २५ साल से सुलगते बुझते मुद्दे को ईंधन मिल चुका है... वैसे लोग चिदंबरम जी की बड़ी तारीफें कर रहें हैं कि देखिये कितने चौक्कने थे, बच गए... काश कि ये चौकन्नापन उनके कैप्टेन में भी होता तो शायद इस देश में हर दूसरे हफ्ते होने वाला जान-माल का नुक्सान तो बच जाता।
एक खबर और पढ़ी "कांग्रेस ने जूता फेंकने वाले को माफ किया"... जाइये बड़े मियां, बड़ा ही गन्दा और निहायत ही वाहियात मजाक कर रहे हैं... इसका भी जवाब एक कहावत से "सौ सौ जूते खाए घुस घुस तमाशा देखे"... कितने जूते खाने के बाद इन नेताओं को अक्ल आएगी कि वे खुदा नहीं जो किसी को माफ़ कर दें?
तीसरी खबर "चिदम्बरम पर जूते फेंकने की घटना की भाजपा ने निंदा की" - भला क्यों न करें आखिर हम पेशा जो हैं, सपने और विश्वास बेचने का कारोबार दोनों का है।
चिदंबरम साहब जैसा व्यक्ति भी जूते कि मार से व्यथित होकर कह बैठा "लोग भावना में बहकर ऐसा कर सकते हैं लेकिन मैं उन्हें माफ़ करता हूँ। " माफ़ करियेगा चिदंबरम साहब आप और आपके राजनैतिक साथी इन्ही भावनाओं को तो नहीं समझ पाए. इन्ही उबलती भावनाओं ने आज़ादी की जंग की शुरुआत की थी. गोरे अंग्रेजों ने भी पहले इन्हें isolated incidents ही समझा था... भावनाओं को समझो मंत्री जी, नेताजी... ये जो कभी-कभार इक्का दुक्का गुबार का लीकेज है, किसी दिन सुनामी ले आएगा...
एक साथी ने लिखा "आज पत्रकारों के लिए काला दिन है"... माना कि और भी बहुत लोकतान्त्रिक तरीके हैं विरोध के.... बड़े भाई, आज जब हर चीज़ को आंकने के पैमाने बदल गए हों। तो गाँधी जी के ज़माने का लोकतान्त्रिक तरीका कितना कारगर होगा ??? प्रत्यक्ष्म किम् प्रमाणम्॥ क्या इरोम शर्मिला को न्याय मिल गया? और घटिया उदहारण दूं ...
देश भर को "गांधीगिरी" का पाठ पढ़ने वाला हमारा आपका, मीडिया का दुलारा "मुन्ना
भाई" रंगे सियार की तरह अपनी हकीकत खोल चुका है, नेताओं की हुआं-हुआं सुनी नहीं कि जाग गया अन्दर का संजय दत्त। इकबालिया बयान देने वाला कह रहा है कि, "कांग्रेस ने
फंसवाया था।" जिस बाप को ज़िन्दगी भर शर्मसार करते रहे अब उसकी मौत को राजनीतिक रंग दे रहे हैं... वाह रे वाह गाँधीगिरी और वाह रे वाह मेरे मुन्ना...
मुद्दों से तो हमेशा बचते रहे नेताजी लोग, जूते से भी बच गए लेकिन जूते ने मुद्दा दुबारा सुरसा के खुले मुंह की तरह राजनीतिज्ञों के सामने रख दिया है, बच सको तो बच लो...
खबरों का शीर्षक शायद सबसे उपयुक्त होता ... "जागरण के जरनैल ने किया देश भर को जागृत"
4 comments:
maine aapka naam suna hai lekin rubaru hone ka mauka nahi mila. aapne jo blog me likha hai wo bilkul 100% sach hai.
Ashutosh
badhur pratkriya
धन्यवाद आशुतोष भाई
मेरा ईमेल anurag.journo@gmail.com है
अनुराग
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Post a Comment On: भड़ास blog"क्रांति का प्रतीक बनेगा जूता"
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nitu said...
nitu said...
jarnail ne joota phekkar na keval 84 ke katilo ke prati akrosh dikaya balki congres ko ahsaas bhi karaya ki 84 me agar rajiv gandhi chate to itne sikh nahi maare jate
mere apne bhi bahut log 84 dango me maare gaye.
very good jarnail
tumhe jagnain singh nitu ka salaam
journilist danik jagran gorakhpur
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