Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

7.4.09

आज श्रुति परंपरा क्यों नहीं है?



विनय बिहारी सिंह


ऋषि वाल्मीकि के पहले राम कथा मौखिक थी। वह जनमानस में श्रुति परंपरा से वर्षों से चली आ रही थी। लेकिन वाल्मीकि को लगा कि अब इसे लिपिबद्ध कर देना चाहिए क्योंकि आने वाले समय में राम कथा सुनी नहीं पढ़ी जाएगी। वैसे तो आज भी कथा होती है और लोग सुनते ही हैं। लेकिन पहले जैसी श्रुति परंपरा आज क्यों नहीं है? वजह यह है कि सारी जानकारियां इंटरनेट के जरिए उपलब्ध हैं। लेकिन पहले के जमाने में संवाद का कोई और माध्यम नहीं था। एक दूसरे से सुन कर ही ग्यान पाया जा सकता था। आज तो हमारे पास सूचनाओं का भंडार है। जब कागज का कोई अस्तित्व नहीं था तो शिष्य गुरु से सीखी बातें कहां लिखते होंगे? जवाब है- शिष्य कुछ भी नोट नहीं करते थे। अभ्यास से उन्होंने अपना दिमाग इस तरह बना लिया था कि वे जो कुछ सुनते थे, हू-ब-हू उनके दिमाग पर अंकित हो जाता था। आज भी अगर छात्रों के लिए नियम बना दिया जाए कि उन्हें बातें ध्यान से सुननी हैं, नोट नहीं करना है तो वे भी अभ्यास करके अपनी याददाश्त तेज कर सकते हैं।

3 comments:

Girish Kumar Billore said...

ये दौर विजुअलिटी का है
लिखा भी बिखना चाहिए
गाया भी कहा भी
तो श्रुति के लिए अब स्थान नहीं

kumar Dheeraj said...

बीते दिनो की बातों से जुड़ी एक बेहद रोचक प्रसंग है यह । पहले कम साधन थे तो मनुष्य अपने दिमाग का इस्तेमाल अधिक करते थे अब साधन बढ़ गये है तो आवश्यकताएं भी बढ़ती गयी है । उस समय की बात न करे तो हमसे जो पहले की पीढ़ी थी उस समय अनपढ़ लोगो को भी रामायण याद था आज तो पढ़े-लिखे लोगो को भी रामायण याद नही है औऱ न ही वह उस पाढ़ का मतलब समझता है ठीक लिखा है आपने शुक्रिय

Anil Kumar said...

समय के साथ-साथ सब कुछ बदलता है। ज्ञान के मौखिक प्रसार से बदलकर किताबों और चिट्ठों का चलन हो निकला है। आजकल तो लोग मंदिर जाने के बजाय कंप्यूटर डेस्कटाप पर पूजा भी करने लगे हैं।