जिजीविषा
बदल लिया हैमहिषासुर ने रूप
दशानन भेष बदल कर
टहल रहा है ।
यह पशुत्व का वातावरण
और आसुरी कारा
सोने का माया मृग बन
जग को निगल रहा है ।
सिया ,गार्गी, अपाला समाहित है ,
दहेज़ के सुरसा -मुख में,
जंगल का कानून
शहर का धर्म बन रहा है।
हर घर में आग लगी है,
जनजीवन सुलग रहा है।
पानी सा
सडको पर कितना खून बह रहा है।
राजा के घर से
निकला है माल लूट का,
हर हांडी में घोटालों की खिचडी पक रही है।
जनता के रक्षक
भक्षक बने हुए है,
हाय वतन में कैसी आंधी चल रही है।
तकलीफों के महा समंदर
में डूबा है।
भारत का इंसान
हाय कैसे जी रहा है।
किन चट्टानी विश्वासों का
पल्ला थामे
अन्यायी राहों के
कांटों पर चल रहा है
भरोसा है उसे
कि राम फिर से आयेंगे
दशानन कितने ही सर उगा ले,
उसे मार कर मुक्ति दिलायंगे।
आंसू से भीगी आँखे
दर्शन कर रही हैं
मिट्टी की मूरत में माँ का,
यह ममता ही
उसकी जिजीविषा को
शक्ति दे रही है
आकुल मन उसका
हो जाता शांत,
फिर उसी चक्र में
बार बार
मन की पांतें
गति कर रही है।
.................................अनूप गोयल,बाराबंकी
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