Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

15.5.09

जयशंकर प्रसाद की कविता गाइए और जीतिए रु 2000 के नग़द इनाम

हिन्द-युग्म यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता के माध्यम से हिन्दी में लिखने-पढ़ने वालों का प्रोत्साहन पिछले 29 महीनों से करने का प्रयास कर रहा है। हिन्दी को आवाज़ की दुनिया से जोड़ने की स्थाई शुरूआत 4 जुलाई 2008 को 'आवाज़' के माध्यम से हुई थी। हिन्द-युग्म के संचालक-संपादक शैलेश भारतवासी ने एक नई शुरूआत की सूचना दी- "आज हम पॉडकास्टिंग को प्रोत्साहित करने के लिए 'गीतकॉस्ट' प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं। "


इसमें भाग लेने के लिए प्रतिभागियों को जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रसिद्ध देशगान 'अरुण ये मधुमय देश हमारा' को अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड करके हिन्द-युग्म को भेजना होगा। गीत को केवल पढ़ना नहीं बल्कि गाकर भेजना होगा। हर प्रतिभागी इस गीत को अलग-अलग धुन में गाकर भेजे (कौन सी धुन हो, यह आपको खुद सोचना है)।


1) गीत को रिकॉर्ड करके भेजने की आखिरी तिथि 31 मई 2009 है। अपनी प्रविष्टि podcast.hindyugm@gmail.com पर ईमेल करें।
2) इसे समूह में भी गाया जा सकता है। यह प्रविष्टि उस समूह के नाम से स्वीकार की जायेगी।
3) इसे संगीतबद्ध करके भी भेजा जा सकता है।
4) श्रेष्ठ तीन प्रविष्टियों को आदित्य प्रकाश की ओर से क्रमशः रु 1000, रु 500 और रु 500 के नग़द इनाम दिये जायेंगे।
5) सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टि को डलास, अमेरिका के एफ॰एम॰ रेडियो स्टेशन रेडियो सलाम नमस्ते के कार्यक्रम'कवितांजलि' में बजाया जायेगा। इस प्रविष्टि के गायक/गायिका से आदित्य प्रकाश (कार्यक्रम के संचालक) कार्यक्रम में सीधे बातचीत करेंगे, जिसे दुनिया में हर जगह सुना जा सकेगा।
6) अन्य 2 प्रविष्टियों को भी कवितांजलि में बजाया जायेगा।
7) सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टि को 'हिन्दी-भाषा की यात्रा-कथा' नामक वीडियो/डाक्यूमेंट्री में भी बेहतर रिकॉर्डिंग के साथ इस्तेमाल किया जायेगा।
8) श्रेष्ठ प्रविष्टि के चयन का कार्य आवाज़-टीम द्वारा किया जायेगा। अंतिम निर्णयकर्ता में आदित्य प्रकाश का नाम भी शामिल है।
9) हिन्द-युग्म का निर्णय अंतिम होगा और इसमें विवाद की कोई भी संभावना नहीं होगी।

जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित देशगान

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा।

सरस तामरस गर्भ विभा पर
नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर
मंगल कुंकुम सारा।।

लघु सुरधनु से पंख पसारे
शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए
समझ नीड़ निज प्यारा।।

बरसाती आँखों के बादल
बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनंत की
पाकर जहाँ किनारा।।

हेम कुंभ ले उषा सवेरे
भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब
जग कर रजनी भर तारा।।

शैलेश ने आगे बताया- "हम समय-समय पर इस तरह का आयोजन करते रहेंगे। आप भी अपनी ओर से हिन्दी के स्तम्भ कवियों की कविताओं को सुरबद्ध करने के काम को प्रोत्साहित करना चाहते हों, अपनी ओर से इनाम देना चाहते हों, तो संपर्क करें।"