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7.10.09

चीन की साठवीं बरसी पर वि‍शेष - क्रांति‍ से सेक्‍स क्रांति‍ तक

चीन ने इस बार अपना जब 60वॉं स्‍थापना दि‍वस मनाया तो इस जलसे में जनता को शामि‍ल नहीं कि‍या गया। जनता घर में बैठकर टीवी चैनलों के जरि‍ए क्रांति‍ के उपभोक्‍ता क्रांति‍ में उत्‍कर्ष का चरमोल्‍लास देख रही थी। चीन के वि‍गत साठ साल महान परि‍वर्तनों के साल रहे हैं। सन् 1975 में जार्ज बुश जब चीन गए थे तो उस समय चीन में चंद कारें थीं। सारा देश साईकिल पर चलता था। स्वयं बुश भी बीजिंग में साईकिल पर घूमे थे। चीनी मजदूर नीले और हरे रंग के कपड़े पहने हुए थे। उस समय चीन में किसी के पास निजी कार नहीं थी,चंद लोगों के पास निजी घर थे। किंतु जब बुश ने सन् 2002 के फरवरी माह में चीन की यात्रा की तो देखकर अचम्भित रह गए। सारा शहर कारों से भरा हुआ था। उस समय अकेले बीजिंग में रजिस्टर्ड तीन हजार से ज्यादा बीएमडब्ल्यू कारें थीं। हजारों मर्सडीज कारें थी, और 20 से ज्यादा पोर्चेज कारें थीं। एक साल बाद ही बीएमडब्ल्यू ने अपना कार उत्पादन केन्द्र चीन में खोल दिया।

चीन में कितने अमीर हैं इसके प्रामाणिक आंड़े अभी सरकार ने जारी नहीं किए हैं इसका प्रधान कारण है कि कहीं आंकड़े देखकर जन असन्तोष न भड़क उठे। एक मर्तबा चीन के टीवी केन्द्र ने अमीरों के ऊपर एक वृत्तचित्र बनाने का निर्णय लिया और उसकी शूटिंग भी शुरू कर दी गयी,किंतु अचानक ऊपर के दबाव में काम बंद कर दिया गया। सत्ता में बैठे अधिकांश लोगों का मानना था कि जो लोग सुधार के दौर में अमीर बने हैं ये वे लोग हैं जिन्होंने कानून तोडे हैं अत: कानूनभंजकों का महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए। सन् 2001 में समाजविज्ञान अकादमी के द्वारा कराए सर्वे से पता चलता है कि चीन की बैंकों में बीस फीसद लोगों के खातों में 894 बिलियन डालर की पूंजी जमा है।

चीन के अमीरों और कम्युनिस्टों के बीच घनिष्ठ संबंध है। चीन के अमीरों में ज्यादातर लोग वे लोग हैं जो कभी सेना में वफादार रह चुके हैं अथवा कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं अथवा किसी कम्युनिस्ट के रिश्तेदार अथवा दोस्त हैं। अथवा कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादार हैं। नयी संपदा के उदय ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की भाषा और सैध्दान्तिकी को बदल दिया है। पहले कम्युनिस्टों का कहना था कि उनका लक्ष्य है सर्वहारा के हितों की रक्षा करना। नया नारा है सत्ता में रहो '' चीन की अतिविकसित उत्पादक शक्तियों'' के हितों का संरक्षण करो। 'अतिविकसित उत्पादक शक्ति' से यहां तात्पर्य अमीरों और मध्यवर्ग से है। यह पुराने नजरिए का एकदम उलटा है जिसमें मजदूरों,किसानों और सैनिकों के हितों की रक्षा करने की बात कही गयी थी।

आज चीन में सामाजिक असंतुलन और अव्यवस्था के जो रूप नजर रहे हैं वैसे पहले कभी नहीं देखे गए। अचानक समाज में लड़कियों की जन्मदर कम हो गयी है। समाज में बेटा पाने की चाहत और एक संतान के नियम के कारण लड़कियों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। आज स्थिति इतनी भयावह है कि चीन में चार करोड़ लोगों की शादी के लिए कोई लड़की उपलब्ध नहीं है। लिंग असंतुलन का इतना व्यापक कहर पहले कभी चीन में नहीं देखा गया। अनेक समाजविज्ञानी मानते हैं कि लड़कियों की अचानक कमी का प्रधान कारण है औरतों के प्रति भेदभावपूर्ण रवैयया।

चीनी लोग अमूमन परंपरागत बच्चे और आज्ञाकारी बच्चे पसंद करते हैं। लड़की की तुलना में लड़के को तरजीह देते हैं। चूंकि एक ही संतान का नियम है अत: पहली संतान के रूप में लड़का ही चाहते हैं इसके कारण असंतुलन और भी बढ़ा है। समाजविज्ञानियों का अनुमान है कि यदि यही सिलसिला जारी रहा तो सन् 2020 तक आते-आते लड़कों के लिए लड़कियां मिलना मुश्किल हो जाएंगी। चीनी लोगों में लड़के की चाहत का एक अन्य कारण यह मान्यता भी है कि लड़कियों की तुलना में लड़के श्रेष्ठ होते हैं। इस मान्यता को बदलना बेहद मुश्किल है।

किसी भी देश में नव्य उदारतावादी अर्थव्यवस्था लागू होगी तो आम लोगों का सेक्स और औरत के प्रति नजरिया भी बदलेगा। किसी भी देश में सेक्स और स्त्री के प्रति क्या नजरिया है यह अर्थव्यवस्था की प्रकृति से तय होता है। अर्थव्यवस्था और सेक्स के अन्तस्संबंध को विच्छिन्न भाव से नहीं देखना चाहिए। चीन में आए आर्थिक खुलेपन ने सेक्स के प्रति खुलेपन को ,ज्यादा उदार नजरिए को हवा दी है। माओ के जमाने में सेक्स टेबू था, आज चीन में सेक्स टेबू नहीं है। बल्कि टेबू से बाहर निकलने की कोशिशें ज्यादा हो रही हैं। आम लोगों में टेबुओं के प्रति घृणा सामान्य बात है।

'चाइना डेली'(12मई 2008) में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि विशेषज्ञों की नजर में चीनी लोग सेक्स के प्रति ज्यादा उदार हैं। पेन सुई मिंग (निदेशक,इंस्टीट्यूट ऑफ सैक्सुअलिटी एंड जेण्डर, रींमीन विश्वविद्यालय ,चीन) ने कहा है आज चीन में एकाधिक व्यक्ति से शारीरिक संबंध रखने वालों की चीन में संख्या पच्चीस फीसद है। इसके कारा यह बहस छिड़ गयी है कि क्या चीनी नैतिक तौर पर भ्रष्ट होते हैं ?

पेन का कहना है एकाधिक सेक्स पार्टनर का होना सेक्स क्रांति का प्रतीक है। चीनी नागरिकों में खुला और पारदर्शी कामुक रवैयया पैदा हो रहा है। सन् 2000-2006 के बीच में किए गए सेक्स सर्वे बताते हैं कि आम लोगों में सेक्स और समलैंगिक सेक्स दोनों में ही इजाफा हुआ है। जिस तरह दो अंकों में अर्थव्यवस्था की विकास दर बढ़ी है उसी तरह दो अंकों में सेक्सदर में भी इजाफा हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में एक से अधिक के साथ सेक्स करने की परंपरा में इजाफा हुआ है। सन् 2000 में ऐसे लोगों की संख्या 16.9 प्रतिशत थी, इसमें सन् 2006 तक सात फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। सन् 1980 में जब आर्थिक सुधार लागू किए गए थे तो उस समय ऐसे लोगों की संख्या छह प्रतिशत थी। महज तीस सालों में एक से अधिक स्त्री या पुरूष के साथ शारीरिक संबंध रखने वालों की संख्या का छह प्रतिशत से बढ़कर पच्चीस प्रतिशत हो जाना निश्चित तौर पर चिन्ता की चीज है। इसका अर्थ यह नहीं है कि विवाह संस्था संकट में है अथवा अप्रासंगिक हो गयी है। बल्कि यह सेक्स के प्रति बदलते नजरिए का संकेत है। इस बदलाव में गांव से शहरों में माइग्रेट करके आयी औरतों की बड़ी भूमिका है।

आम धारणा रही है कि औरत जीवन में पेसिव और बिस्तर पर एक्टिव होती है। किंतु इस धारणा को भी चीन की औरतों ने पलट दिया है वे जीवन में भी एक्टिव भूमिका अदा रही हैं। इस नए परिवर्तन की वाहक बनी हैं गांवों से आई औरतें। इसके अलावा औरतों में शिक्षा के विकास के कारण भी परंपरागत स्टीरियोटाईप नजरिया टूटा है। साथ ही गर्भपात और परिवार नियोजन की सुविधाओं की सहज उपलब्धता के कारण भी सेक्स के प्रति उदार रूख का विकास हुआ है। इसके अलावा ज्यादा समय तक प्यार करने और आनंद उठाने के कारण भी औरतों का सेक्स के प्रति नजरियाबदला है। सेक्स क्रांति में सेक्स का वैविध्य बढ़ा है ,कामुक गतिविधियों में इजाफा हुआ है। पेन का मानना है कि सद्भाव समाज में सेक्स को शामिल किया जाना चाहिए। यह क्रांति नहीं बल्कि हमारे जीवन का हिस्सा है।

माओ के जमाने में 'किसान सैनिक' आदर्श हुआ करता था। माओ का उस जमाने में कहना था कि सीखना है तो कामरेड ली फेंग से सीखो। वही 'किसान सैनिक' का आदर्श था। इसी 'किसान सैनिक' को आधार बनाकर चीनी नैतिकता का सारा तामझाम खड़ा किया गया। वही शिक्षा से लेकर राजनीति तक सभी क्षेत्रों में नैतिकता को परिभाषित करने वाला प्रधान तत्व था। अचानक माओ के बाद इसी 'किसान सैनिक' का रूपान्तरण नयी बाजार अर्थव्यवस्था की संरचनाओं के अनुरूप किया जा रहा है जिससे यह मध्यवर्ग को अपील कर सके। माओ ने ली फेंग को मुक्ति दी थी, ली फेंग पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का सैनिक था। उसे कोई नहीं जानता था। किंतु अचानक सन् 1962 में उसकी एक ट्रैफिक दुर्घटना में मौत हो गयी। यह चीन में लम्बी छलांग का दौर था। उसके प्रेरक प्रतीक के रूप में ली फेंग को प्रचारित किया गया।ली फेंग इस बात का प्रतीक था कि वह कभी आराम नहीं करता था। क्रांतिकारी भावों से भरा था। वह चीन जनमुक्तिसेना,कम्युनिस्ट पार्टी और माओ के प्रति वफादार था।

ली फेंग के मरने के बाद उसकी एक डायरी भी मिली जिसके बारे में कहा जाता है कि वह नकली है। इसी ली फेंग को आदर्श सैनिक और आदर्श चीनी नागरिक के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। लंबे समय तक ली फेंग को चीन ने अपने प्रौपेगैण्डा मॉडल के प्रतीक रूप में इस्तेमाल किया। ली फेंग का गुण था कठिन परिश्रम, कभी सवाल न पूछने वाला किसान,यही चीनी प्रशासन की आधारशिला भी यही विचार था। फेंग की इमेज के साथ सैनिक की पोशाक का भी महिमामंडन हुआ।

ली अच्छे काम करने वालों का प्रतीक था,इसकी बीजिंग के शासकों के प्रति वफादारी थी। उस पर अनेक गाने लिखे गए, किताबें लिखी गयी, फिल्में बनीं। ली फेंग को खासकर चीनी बच्चों के सामने आदर्श मॉडल के रूप में पेश किया जाता था। अब ली फेंग का पूरी तरह रूपान्तरण हो चुका है। इस प्रसंग में एक नयी किताब आयी है '' ली फेंग 1940-1962', इस किताब में बताया गया है कि नया ली फेंग ज्यादा नरमदिल इंसान है। ली फेंग पहले की तुलना में ज्यादा सहिष्णु और आज्ञाकारी है।

किताब में बताया गया है कि ली हमेशा कपड़े नहीं पहनता था, जैसाकि उसकी सेना की पोशाक में हमेशा दिखाया गया। बल्कि बताया जा रहा है कि ली लेदर जैकेट और शानदार घड़ी पहनता था। (ये सारी चीजें 50 और 60 के दशक में लग्जरी में गिनी जाती थीं ) ,किताब में यह भी कहा गया है कि ली फेंग की गर्ल फ्रेंड भी थी। ली की ट्रक ड्राईविग की तुलना बीएमडब्ल्यू कार ड्राईविंग के साथ की गई है। अभी हाल ही में एक फोटो नजर आया है जिसमें ली फेंग बीजिंग के तेएनमैन स्क्वायर में मोटर साईकिल चलाता दिखता है। चूंकि मौजूदा दौर फैशन के लिहाज से ज्यादा महत्वपूर्ण है और इसमें रिबेलियस या बागी तेवरों का व्यापक प्रचार किया जा रहा है। अत: ली फेंग को भी रिबेल के रूप में पेश किया जा रहा है। रिबेल या बागी होने के कारण उसके हेयरस्टाइल फैशनेबुल हो गए हैं। उल्लेखनीय है ली फेंग जब सेना में था उस समय फैशनेबुल बाल रखने पर पाबंदी थी। इस किताब के संपादक का कहना है कि दुख की बात है कि आज के युवा ली फेंग को नहीं जानते। वे नहीं जानते कि ली फेंग कैसे चीन का प्रतीक बन गया था। आज के युवा ली फेंग को जानें इसके लिए उसके बारे में अनेक फोटोग्राफ भी किताब में दिए गए हैं जिनमें बताया गया है कि ली फेंग साधारण किसान परिवार से आया था। उसने सेना में ड्राइवर की नौकरी ली। ली फेंग की नयी निर्मित इमेज को चीन प्रशासन ने बगैर किसी स्पष्टीकरण के जारी किया है।

चीन प्रशासन का मानना है कि ली फेंग के नए रूप के जरिए मध्यवर्ग के दिलों पर राज किया जा सकता है। ली फेंग की पहले जो इमेज माओ के जमाने में प्रौपेगैण्डा के लिए इस्तेमाल की गयी थी और आज जिस नयी इमेज का प्रचार किया जा रहा है ये दोनों ही नकली इमेज हैं, निर्मित इमेज हैं। इनका यथार्थ से कोई लेना-देना नहीं है।

प्रौपेगैण्डा के क्रम में ऑन लाइन कम्प्यूटर गेम के रूप में '' लर्न फ्रॉम ली फेंग'' नामक कम्प्यूटर गेम जारी किया गया है। इसे नस्दाक ने तैयार किया है। यह एक चीनी साफटवेयर कंपनी है। इस गेम के जरिए बच्चों में राष्ट्रभक्ति,आज्ञाकारिता पैदा करने की कोशिश की जा रही है। उल्लेखनीय है कि ऑनलाइन गेम कम्युनिटी में डेढ़ करोड़ युवा शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि यह गेम चीनी बच्चों को ज्यादा अपील नहीं कर पा रहा है। इसका प्रधान कारण है कि चीनी युवावर्ग में प्रतिक्रियावादी राष्ट्रवाद की अपील सबसे ज्यादा है जब कभी मौका मिलता है तो यह प्रतिक्रियावादी राष्ट्रवाद सड़कों पर निकल आता है। कभी जापान के खिलाफ, कभी फ्रांस के खिलाफ हिंसक प्रदर्शनों में तब्दील हो जाता है। चीनी युवा प्रतिक्रियावादी राष्ट्रवाद के कारण चीनी युवा हमेशा गुस्से से भरे होते हैं वैसे ही जिस तरह विश्वहिन्दू परिषद या संघ परिवार के संगठनों में साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद कूट-कूटकर भरा है। प्रतिक्रियावादी राष्ट्रवाद चीनी युवाओं में भरा पड़ा है और मौका पाते ही अपने नस्लवादी चरित्र को व्यक्त कर बैठता है। असल में चीन का समूचा माहौल बौध्दिक अज्ञानता और पिछड़ेपन सेभरा हुआ है जिसके कारण प्रतिक्रियावादी राष्ट्रवाद अभी भी फलफूल रहा है।

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