सच की मंडी में झूठ की मांग। आज के मीडिया का सच और एक मात्र सच यही है। पूरे देश के मीडिया में गत तीन दिनों से " शवों का कारोबार" की प्रधानता है। दिल्ली,जयपुर,नॉएडा,मुंबई में बैठे बड़े बड़े मीडिया वाले इसको अंतिम सच मान रहे हैं। जबकि सच्चाई ये कि इसमें रत्ती भर भी सच्चाई का अंश नहीं है। हाँ, मीडिया को दुकानदारी की तरह देखने वालों के लिए "शवों का कारोबार" है और अभी रहेगा। बात १० माह पहले की है। पुलिस को एक युवक मई २००९ में पार्क में बेहोश मिला। उसे सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया। जहाँ उसकी मौत हो गई। पुलिस ने उसका शव मेडिकल कॉलेज को दे दिया। इस बीच किसी थाने में किसी ने अपने बेटे की गुमशुदगी, लापता हो जाने की रिपोर्ट किसी थाने में नहीं दी। बाद में यहाँ के राजकुमार सोनी को पता लगा कि मरने वाला लड़का उसका बेटा था राहुल। सोनी बीजेपी के बड़े नेता हैं। उन्होंने मेडिकल कॉलेज से अपने बेटे का शव वापिस लेकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया। सोनी ने अलग अलग लोगो,पुलिस पर इस मामले में तीन मुकदमे दर्ज करवाए। यह सब १० माह पहले यहाँ के "प्रशांत ज्योति" नामक अख़बार में छप चुका है। ये कहना अधिक सही है कि अख़बार का मालिक संपादक ओ.पी बंसल ही इस मामले को उठाने का असली सूत्रधार है। गत दिवस सोनी जी ने जयपुर में प्रेस कांफ्रेंस करके पुलिस पर शवो को मेडिकल कॉलेज को बेचने के आरोप लगाये। बस उसके बाद से प्रशासन से लेकर सरकार तक हल्ला मच गया। मीडिया में हैड लाइन बन गया शवों का कारोबार। किसी ने इस बात की कोई तहकीकात नहीं की कि आरोप लगाने वाला कौन है? उसकी मंशा क्या है? उसने क्यों नहीं दी अपने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट? अगर शवों को बेचा जाता तो उसके बेटे का शव उसको वापिस कैसे मिलता! पुलिस ने गत पांच सालों में बहुत अज्ञात/लावारिश शव मेडिकल कॉलेज को दिया। इनमे से कई वारिसों द्वारा पहचान कर लिए जाने के बाद मेडिकल कॉलेज ने उनको ससम्मान वापिस किया। अगर सोनी जी के बेटे का शव बेचा गया, उसको सबूत उनके पास हैं तो सोनी जी को चाहिए वह सबूत उन मीडिया को दे, जो आजकल वाच डॉग की तरह उनके आगे पीछे घूम रहा है। कुछ ना कुछ पाने के लिए,स्टोरी बनाने के लिए। सोनी जी किसी को दुदकारते हैं किसी को पुचकारते हैं। न्यूज़ चैनल में बैठे बड़े बड़े पत्रकार अपने श्रीगंगानगर,जयपुर के पत्रकारों को "शवों के कारोबार" को अलग अलग एंगल से उठाने के निर्देश ऐसे देते हैं जैसे वे उनको साल में लाखों का पैकेज देते हों । इस खबर के कारण कई पत्रकार और पैदा हो गए। दूर बैठे चैनल वालों को इस से कोई मतलब नहीं कौन आदमी किसके लिए क्या आरोप लगा रहा है। उनको तो सनसनी फैलानी है। सनसनी फ़ैल रही है। अभी तक तो एक भी शव ऐसा नहीं मिला जिसको बेचा गया हो। हाँ, ये जरुर है कि शव को मेडिकल कॉलेज को देने के लिए जो निर्धारित नियम है उसकी पालना नहीं हुई। पुलिस भी इस बात को मानती है कि शव देने में राजस्थान ऐनोटोमी एक्ट १९८६ की पूरी तरह पालना नहीं हुई । इस मामले में डरी सहमी पुलिस चाहे कुछ ना बोले लेकिन ये सच है कि इस एक्ट की पालना श्रीगंगानगर में तो क्या राजस्थान के किसी हिस्से में होना मुमकिन नहीं। इसके तहत शव को शिनाख्त के लिए तीन दिन तक मुर्दाघर में रखना होता है। यहाँ एक दिन रखना मुश्किल होता है। क्योंकि मुर्दाघरों में शव सुरक्षित रखने की व्यवस्था ही नहीं हैं है। तब क्या होगा? देश के जीतने बड़े बड़े पत्रकार हैं वे सब यहाँ आयें और और इस बात की पड़ताल करें कि क्या सचमुच शवों का कारोबार हुआ है! अब बात उठेगी कि राजकुमार सोनी को न्याय मिलना चाहिए। मैं कहता हूँ राजकुमार सोनी को ही क्यूँ न्याय तो सभी को मिलना चाहिए। न्याय पर तो सबका बराबर का अधिकार है। ऐसा तो नहीं कि जो अधिक हल्ला मचाए उसको न्याय मिले बाकी के साथ चाहे अन्याय ही करना पड़े। इसको तो फिर अधुरा न्याय ही कहा जायेगा।कुछ मीडिया शायद यही करवाना चाहता है।
2.4.10
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
बस पूछिए मत मीडिया का तो बहुत बुरा हाल हैं
तिल का ताड़ और ताड़ का तिल अपनी मर्जी से कर देते हैं.
छोटी सी बात को पहाड़ कर देती हैं.
कम से कम किसी चीज़ के पीछे पड़ने से पहले पूरी छानबीन तो कर लेनी चाहिए
Post a Comment