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1.4.10

फैसले की नई सुबह

प्रेम सृष्टि का शास्वत सत्य है। सार्थक जीवन का आधार है। प्रेम अलौकिक और पावन है। लेकिन काल दर काल इसका अंजाम क्या हुआ है? कहने को हम 21वीं सदी में हैं, लेकिन मानसिकता वही सदियों पुरानी है। हरियाणा भले ही विकास के पथ पर सरपट भाग रहा हो। यहां के लोगों का जीवन स्तर अन्य राज्यों के मुकाबले भले ही कई गुना अधिक हो, लेकिन अफसोस पैसे से सोच नहीं खरीदी जा सकती। यदि ऐसा होता तो हरियाणा के लोगों की सोच भी संभ्रांत होती। जातिवाद, दकियानूसी विचारधारा और लड़कियों को जहां अभी भी पैर की जूती समझा जाता हो, वह राज्य आर्थिक तौर पर भले ही विकसित हो जाए, मानसिक तौर पर रुग्न ही रहेगा। हरियाणा में अभी भी यह रुग्नता कायम है। यहां खाप/पंचायतों का खौफ जनमानस के जेहन में इस कदर व्याप्त है कि कोई इसकी मुखालफत की हिमाकत तो दूर हिम्मत तक नहीं करता। लोक-लाज और आबरु का हवाला देकर लड़कियां यहां बेखौफ मौत की नींद सुला दी जाती हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं कहता। इतना ही नहीं, खाप-पंचायतों का खौफ इस कदर है कि भरी पंचायत में किसी बेकसूर अधेड़ के मुंह में जूता ठूंसे जाने के बाद भी कोई फरमान के खिलाफ चूं नहीं करता।
प्रेम नाम आनंद का है। जिस तरह एक कली खिलकर फूल बनती है प्रेम का असर भी जीवन पर कुछ इसी कदर होता है। लेकिन हरियाणा में इसकी नियति असमय मौत है। प्रेम विवाह को तो यहां सामाजिक मंजूरी ही नहीं है। गोत्र और जाति की गांठ भी इतनी मजबूत है कि इसे तोडऩा भी नामुमकिन सा प्रतीत होता है। मनोज-बबली इसी जाति-गोत्र के उन्माद की परिणति हैं। उनका कुसूर सिर्फ यही था कि उन्होंने पे्रम विवाह किया। दोनों का गोत्र समान था। समाज के तथाकथित ठेकेदार बने खाप पंचायतों के रहनुमाओं को यह बात हजम नहीं हुई। दोनों की निर्ममता से पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। अभी कुछ माह पहले ही रोहतक में एक पति-पत्नी को महज इसलिए भाई-बहन बनाने का फरमान सुना दिया गया, क्योंकि उनका गोत्र एक था।
यह तो एक बानगी भर है। ऐसे न जाने कितने राज खाप, संबंधित गांव के लोगों और उन भुक्तभोगी परिवार के लोगों के सीने में दफ्न हैं जिनकी औलादें रात के अंधेरे में 'प्रेम के आखिरी अंजामÓ तक पहुंचा दी गईं। ऐसा नहीं कि इन कारगुजारियों की भनक किसी को नहीं होती। हुजूर होती तो सबको है, लेकिन खाप के खौफ के आगे अधिकारियों का कद भी बौना साबित होता है। अजी अधिकारियों को छोडि़ए, सरकार ही अब तक उनका कुछ उखाड़ नहीं पाई है। ऐसे में मंगलवार को करनाल कोर्ट का फैसला प्रेम करने वालों, जातिगत बाध्यताओं को तोडऩे और खाप पंचायतों की मुखालफत करने वालों के लिए नई सुबह लेकर आई। इज्जत की दुहाई देकर बबली के परिजनों जिस तरह दोनों को मौत की नींद सुला दिया, उस पर फैसला आया। महज 33 माह तक चले मुकदमें में 71 पेशी और 43 गवाहों की गवाही के बाद राहत तो मिली, लेकिन एक टीस दिल में फिर उभरी, क्या प्रेम वाकई दायरे में रहकर किया जा सकता है?
झूठे सम्मान के लिए किसी की जान लेना संविधान के किस अनुच्छेद में लिखा है? करनाल कोर्ट का फैसला हकीकत में समाज को नसीहत देने वाला है। खाप पंचायतों का वर्चस्व तोडऩा ही होगा। इसके लिए खासकर नई पीढ़ी, राजनतेओं और सामाजिक संगठनों को आगे आना होगा। यह नए समय की मांग है और मौजूदा परिस्थिति में यह मांग सौ फीसदी जायज है। अब बहुत हुआ आखिर कब तक इज्जत की दुहाई देकर कू्ररतम हत्याएं की जाएंगी? यह फैसला खाप और पंचायतों को भी नई भूमिका के लिए तैयार रहने का संकेत देता है। खापों को भी आत्मसात करने की जरूरत है कि उनके द्वारा सुनाए गए तुगलकी सभी फैसले सामाज के सभी वर्गों को सामान्य रूप से मान्य नहीं होते। बीते कुछ दिनों में ऐसे कई मामले सामने आए जिसमें खाप पंचायतों को तुगलकी फैसलों पर दोबारा सोचने पर विवश होना पड़ा। यह समाज का वह वर्ग था जिसने प्रताडि़त होने के बाद भी फरमान को मानने से इनकार कर दिया। इसके पीछे उनके द्वारा पेश किए गए ठोस तर्क ने खाप/पंचायतों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। खाप के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत तो पहले ही हो चुकी थी, लेकिन यह लड़ाई सिर्फ पीडि़त पक्ष तक ही सीमित थी। कोर्ट के फैसले से खाप के गैरजिम्मेदाराना फैसलों पर विद्रोह का झंडा बुलंद करने वालों को यकीनन नया हौसला मिलेगा। खासकर उन युवाओं को, जो समाज की दकियानूसी बाध्यताओं को तोड़कर नए दाम्पत्य जीवन की ओर उन्मुख होने को तत्पर हैं। यदि यह कहा जाए कि हरियाणा में लिंगानुपात को रसातल तक पहुचाने में जाति, गोत्र और पे्रमविवाह पर खाप/पंचायतों द्वारा सुनाए गए तुगलकी फरमानो का भी उतना ही हाथ है, जितना भू्रण हत्या, तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। परिवर्तन समय की मांग है, खाप पंचायतों के साथ लोगों को भी अपनी घिसीपिटी सोच बदलनी ही होगी।

जरा मामला समझिए
हरियाणा के कैथल जिले में एक गांव है करोड़ा। यहां के एक ही गोत्र से संबंध रखने वाले मनोज-बबली ने 6 अप्रैल 2007 को भागकर प्रेम विवाह किया था। बबली के घरवालों ने चूंकि दोनों को जान का खतरा था और मनोज के खिलाफ बबली के घरवालों ने अपहरण का केस दर्ज कराया था, इसलिए 15 जून को दोनों कैथल के जिला कोर्ट में पेश हुए और अपने लिए सुरक्षा मांगी। इसके बाद पुलिस सुरक्षा में इन्हें कुरुक्षेत्र के पिपली से हरियाणा रोडवेज बस में करनाल रवाना किया गया। लेकिन रास्ते में बुटाना के पास दोनों को अगवा कर लिया गया। २३ जून को दोनों के शव नारनौंद के पास खेड़ी चौकी के पास नहर में मिले। हत्यारों में बबली का भाई सुरेश, चाचा राजेंद्र, मामा बारू राम, ममेरे भाई गुरदेव और सतीश को फांसी की सजा सुनाई गई है। इसके अलावा एक खाप प्रतिनिधि को भी उम्र कैद सुनाई गई है।

2 comments:

Anonymous said...

प्यार के दुश्मनो को फासी!

SANJEEV RANA said...

बिलकुल ठीक कहा आपने, इन सब पे अंकुश लगना ही चाहिए
कोई भी क़ानून से बड़ा नही होता.