प्रेम प्रतिमान गढ़ता जीवन
मंद मंद सा थमता जीवन
विस्मित करो में लिए सलाई
स्मृति तुम्हारी बुनता जीवन .
जीवन जिसमें सर्वज्ञ तुम्ही हो
यत्र तुम्ही हो, तत्र तुम्ही हो
भ्रमर की गुंजन तुम्ही हो,
मस्तक का चन्दन तुम्ही हो
शीश झुका कर दंडवत
करूँ जिसका वंदन तुम्ही हो
ह्रदय को हर्षाने वाली
प्रथम प्रेम की पाती तुम्ही हो,
प्रथम प्रेम की पाती तुम्ही हो,
मन के अंधेरो को मिटा दे मेरे ,
ऐसी दिए की बाती तुम्ही हो
मान-वैभव, दास-सेवक
राज -रजवाड़े, महल अटारी
सबसे परे हो कंटक वन
नहीं मांगता जनम जन्मांतर
नहीं मांगता युग युगांतर
न ही शत -शत बरस का जीवन
प्रेम रस बरसाते वो नैना
कनखियों से देखे जिस क्षण
मांगता हूँ मैं हे इश्वर
मात्र उस एक क्षण का जीवन,,,
मात्र उस एक क्षण का जीवन,,,
1 comment:
बहुत अच्छी विचारो कि अभिव्यक्ति
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