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8.4.10

राजकीय सम्मान के साथ उत्तराखण्ड के शहीदों का अंतिम संस्कार

दहरादून। वीरों की देवभूमि के नाम से जाना जाने वाला उत्तराखंड प्रदेश यूंही देशभर में अपनी पहचान नहीं रखता। आजादी से लेकर अब तक उत्तराखंड के हजारों लालों ने अपनी शहादत की इबारत लिखकर देश की सुरक्षा पर कभी कोई आंच नहीं आने दी। कारगिल युद्ध में जहां उत्तराखंड के शहीदों ने दुश्मनों के छक्के छुडाते हुए शहादत दी वहीं बीते दिवस आपरेशन ग्रीन हंट में कार्रवाई के दौरान सीआरपीएपफ की ६२ए बटालियन के उत्तराखंड के सात जवानों ने भी अपनी शहादत के क्रम को बढाकर उत्तराखंड का नाम एक बार फिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। प्रदेशभर में जवानों की शहादत को लेकर कुमांऊ मंडल के चार एवं गढवाल मंडल के तीन जवानों की शहादत से शोक की लहर दौड गयी। उत्तराखंड में शहीदों के शव पहुंचते ही उनके पैतृक गांवों में हजारों की संख्या में लोगों ने पहुंचकर उनकी शहादत को सलाम किया। शव यात्रा में उमडा जन सैलाब बता रहा था कि देश पर न्यौछावर होने वाले उत्तराखंड के लाल अपनी शहादत के पीछे उत्तराखंड का नाम रोशन करने में कोई कसर नहीं छोड गये। उनकी शव यात्रा में उमडे जन सैलाब में आंखों से निकलते आंसू उनकी शहादत को खुद ही बयां कर रहे थे। गमगीन माहौल में टिहरी के विनोद पाल सिंह, चकराता के टीकम सिंह, भीमताल के मनोज नौगांई, सितारगंज के बृजानंद, राजेंद्र सिंह राणा, भगवानपुर हरिद्वार के ललित कुमार व पिथौरागढ के महेश सिंह के शव जैसे ही उनके पैतृक गांवों म पहुंचे तो वहां उनकी शव यात्रा में हजारों लोगों ने पहुंचकर उन्हें अंतिम सलामी दी। पूरे राजकीय सम्मान के साथ शहीदों की चिताओं को मुखाग्नि दी गई। आज जसे ही चकराता के जवान टीकम सिंह का शव उनके पैतृक गांव पहुंचा तो वहां परिजनों में कोहराम मच गया।
पूरे गांव में सन्नाटे के बीच हजारों लोगों ने टीकम सिंह की शव यात्राा में शामिल होकर उसे अंतिम विदाई दी। टीकम सिंह का अंतिम संस्कार डाकपत्थर में किया गया। जौनसार बावर के जमुआ गांव निवासी टीकम सिंह चौहान पांच साल पूर्व ही सीआरपीएफ में भर्ती हुआ था और टीकम सिंह की १७ अप्रैल २००९ को शादी हुई थी और २८ जनवरी को लेहमन अस्पताल में बेटा पैदा हुआ था। विकास नगर के विधायक कुलदीप कुमार, एसडीएम कालसी विनोद गिरी गोस्वामी सहित कई अन्य राजनैतिक दलों के लोग भी उनकी शवयात्रा में शामिल हुए। वहीं हरिद्वार जनपद के भगवानपुर का ललित सिंह का शव जैसे ही उनके गांव पहुंचा तो लोगों का हुजूम उनके आवास पर उमड पडा। शहीद ललित सिंह २००६ में रामपुर स्थित सीआरपीएफ में भर्ती हुआ था जहां से २० मार्च को उसे छत्तीसगढ में तैनात किया गया था। ललित सिंह का अंतिम संस्कार आज माहेश्वरी गावं में गमगीन माहौल में पूरे सैनिक सम्मान के साथ किया गया। वहीं नई टिहरी निवासी विनोद ने वर्ष २००४ में सीआरपीएफ में भर्ती हुआ था और विनोद की मां दलेवा देवी व उसके पिता भरत सिंह बिष्ट उसकी शादियों की तैयारियों में जुटे हुए थे कि विनोद की शहादत का समाचार सुनते ही पूरे गांव में शोक की लहर दौड गई। शहीद का शव आज जैसे ही उसके पैतृक गांव पहुंचा तो चमियाला का पूरा बाजार बंद रहा और शहीद को राजकीय सम्मान के साथ बालगंगा नदी पर छितियारा के पास जखाली घाट पर अंतिम संस्कार किया गया।वहीं उध्मसिंहनगर के सितारगंज में रहने वाले शहीद राजेंद्र सिंह राणा का शव जैसे ही उनके पैतृक गांव पहुंचा तो लोगों का हुजूम उनकी अंतिम शवयात्राा में उमड पडा। राजेंद्र के पिता उदय सिंह राणा रेलवे में चालक के पद पर तैनात हैं। शहीद के क्षेत्र में पहुंचते ही हजारों लोगों ने उन्हें श्रद्धांजली देते हुए उनकी शहादत को सलाम किया। वहीं सितारगंज के बृजानंद का शव आज जैसे ही उनके पैतृक गांव पहुंचा तो वहां भी क्षेत्र में शोक की लहर दौड गई। बृजानंद के पिता गामा प्रसाद लालकुंआ में पोस्टमैन के पद पर तैनात हैं। उनकी शवयात्रा में उधमसिंह नगर के जिलाध्किारी, एसएसपी जीएन गोस्वामी, विधायक गोपाल सिंह राणा, नारायण पाल, तिलक राज बेहड, एसडीएम जंगपांगी सहित कई राजनैतिक दलों के लोग भी मौजूद थे। वहीं पिथौरागढ के महेश सिंह का शव भी उनके पैतृक घर भटेडी पहुंचने पर पूरे गांव में शोक की लहर दौड गई। महेश के पिता स्व. बहादुर सिंह आजाद हिंद फौज के सिपाही थे और एक सप्ताह पूर्व ही घर से ड्यूटी पर गये थे। वहीं भीमताल सांगुडी गांव निवासी मनोज नौगंई का शव भी जैसे ही उनके पैतृक गांव पहुंचा तो वहां भी हजारों की संख्या में लोगों ने पहुंचकर उनकी शवयात्राा में भाग लिया। मनोज वर्ष २००३ में सीआरपीसएफ में भर्ती हुए थे और दो माह पूर्व ही एसआई बने थे। इनका अंतिम संस्कार चित्राशिला घाट रानीबाग में किया गया। जिसमें विधायक खडक सिंह बोरा, बंशीधर भगत सहित कई अन्य राजनैतिक दलों के लोग भी शामिल थे।

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