कटनी / दुनिया ने कितनी भी तरक्की कर ली हो लेकिन हमारे समाज में व्याप्त जाती-पाती और छुआ छूत ने इस कदर घर किया हुआ है की आजादी के तिरेसठ वर्षों के बाद भी सरकार अस्प्रश्यता को मिटा पाने में अभी तक असमर्थ है. अस्प्रश्यता की यह बात तब सामने आई जब एक शिकायत पर जनपद पंचायत रीठी की अध्यक्ष श्रीमती प्रीति सिंह ने बरजी प्राथमिक शाला के बच्चो से स्वयं जाकर मध्यान्ह भोजन के हालात जाने
जनपद अध्यक्ष को एक लिखित शिकायत में ग्राम बरजी के लोगो ने प्राथमिक शाला में मध्यान भोजन चला रहे शंकर बकरी पालन स्वसहायत समूह पर हरिजनों के साथ छुआ छूत का आरोप लगाया था. शिकायत में लिखा था की हरिजन बच्चो की थाली समूह द्वारा न धोने के कारण कई दिनों तक मध्यान भोजन बंद रहा.
शिकायत की जाँच के दौरान जब प्राथमिक शाला बरजी के छात्र-छात्राओं से पूछा गया तो उनके जबाब सुनकर अध्यक्ष भी दंग रह गई.
कक्षा पाचवी की छात्र सविता चोधरी ने बताया की हमारी थाली में समूह की महिलाये दूर से पानी ड़ाल देती है, जबकि इसी स्कूल के एक छात्र छोटा चोधरी पिता इमरत चोधरी ने बताया की बर्तन धोने न धोने के विवाद के चक्कर में पिछले कई दिनों से मध्यान भोजन बंद पड़ा है. विद्यालय के अन्य छात्र अमन चोधरी पिता ब्रजेश चोधरी ने बताया की पीने के पानी में भी हमें दूर से पानी डाला जाता है और भेदभाव किया जाता है.
इस सम्बन्ध जब समूह की महिलाओ से पूछा गया तो उन्होंने इस बात को स्वीकार किया की वे बर्तन बच्चो से धुलवाती है. समूह की सचिव आशाबाई पांडे ने बताया की पूर्व से ही बच्चो से बर्तन धुलवाने की परंपरा स्कूल में चली आ रही है और बरजी माध्यमिक शाला में चल रहे मध्यान्ह भोजन में भी बच्चे ही बर्तन धुलते आ रहे है इसलिए हमने भी ऐसा ही किया.
समूह की अध्यक्ष ने बताया की यहाँ की प्रभारी मिथलेश मेडम को जब तक हम हर माह पंद्रह सौ रूपये और एक कट्टी गेंहू देते रहे तब तक उन्होंने कोई शिकायत नहीं की और पिछले दो माह से उनका कमीशन बंद कर दिया तो हमें परेशान किया जा रहा है तथा बच्चो को सिखा कर छुआ-छूत जैसे मुद्दे को बनाकर हमे तंग किया जा रहा है.
बर्तनों की कम संख्या पर समूह की महिलाओं ने बताया की जब उन्हें चार्ज दिया गया था तब मात्र पंचान्न्वे थाली उन्हें मिली थी बाद में उन्होंने स्वयं के खर्च से दीवाली पर पच्चीस थालिय खरीदी.
बर्तनों की कमी कोई नई शिकायत नहीं है लगभग पूरे जिले में सभी विद्यालयों में स्वयं बच्चे बर्तन धोते हेंडपम्पो पर, बिना कतार मैदान में भिखारियों की तरह हाथ में रोटी लेकर खाते देखे जा सकते है.जबकि शिक्षको की जिम्मेवारी है की वे विद्यार्थियों को अनुशासन पूर्वक बिठा कर उन्हें भोजन करने में स्वसहायता समूहों की मदद करे
जनपद में बैठे अधिकारी कर्मचारी मौज मस्ती में मशगूल है. अधिकांस कर्मचारी अप डाउन में अपना समय लगाते है ऐसे में फिर शासन की योजनाओ का इसी तरह से मजाक उड़ाया जाता रहेगा. सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूल चले हम का ढिढोरा पीटने के बाद भी स्कूलों की हालत नहीं सुधर रही है
5.12.10
मध्यान्ह भोजन में छुआछूत
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2 comments:
Hi, very interesting post, greetings from Greece!
कुलीनता और छुआ-छूत भारतीय समाज का सदियों पूर्व छल-बल से स्थापित किया गया पाखंड है। जन्म के आधार पर सम्मान पाने वाले इसको बढावा देते हैं। इस आधार पर वे असमानतावादी व्यवस्था को पोषित करके धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक लाभों को लूटते हैं।
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