बढता भ्रष्टाचार -उत्तरदायी हम !
कुछ समय पूर्व यह लेख मैंने अपने ब्लॉग ''विचारों क़ा चबूतरा '' पर badhta bhrashtachar uttardayee humपर प्रकाशित किया था .आज आपके समक्ष प्रस्तुत है .अपने विचारों से जरूर अवगत कराएँ-
हम अक्सर अपने देश की विकास गति बाधित होने ; समस्याओं का समाधान न होने अथवा भ्रष्टाचार के लिए अपने नेताओं को पूर्णरूप से उत्तरदायी ठहरा देते हैं;किन्तु सच्चाई के साथ स्वीकार करें तो हम भी कम ज़िम्मेदार नहीं है. पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव तक कितने मतदाता है जो अपने घर आए प्रत्याशी से साफ-साफ यह कह दें क़ि हमें अपने निजी हित नहीं सार्वजानिक हित में आपका योगदान चहिये.हम खुद यह सोचने लगते है क़ि यदि हमारा जानकर व्यक्ति चुन लिया गया तो हमारे काम आसानी से हो जायेंगे.चुनाव -कार्यालय के उद्घाटन से लेकर वोट खरीदने तक का खर्चा हमारे प्रतिनिधि पञ्च वर्ष में निकल लेते हैं.हमारे प्रतिनिधि हैं ;हममें से हैं-भ्रष्ट हैं -तो हम कैसे ईमानदार हैं? नगरपालिका से लेकर लोकसभा तक में हमारा प्रतिनाधित्व करने वाले व्यक्ति उसी मिटटी; हवा; प्रकाश; जल ;से बने हैं-जिससे हम बने हैं. यदि हम ईमानदार समाज ;राष्र्ट चाहते हैं तो हमे पहले खुद ईमानदार होना होगा . हमें खुद से यह प्रण करना होगा क़ि हम अपने किसी काम को करवाने के लिए रिश्वत-उपहार नहीं देंगे;यहाँ तक क़ि किसी रेस्टोरेंट के वेटर को टिप तक नहीं देंगे. ये टिप ;ये उपहार; रिश्वत- कार्यालियों में बैठे कर्मचारियों;वेटर; प्रत्येक विभाग के ऊपर से लेकर नीचे तक के अधिकारियोंमे लोभ रूपी राक्षस को जगाकर भर्ष्टाचार का मार्ग प्रशस्त करते हैं.टिप पाने वाला आपका काम अतिरिक्त स्नेह से करता है किन्तु अन्य के प्रति ;जो टिप नहीं दे सकता ; उपेक्षित व्यवहार करता है अर्थात प्रत्येक के प्रति समान कर्तव्य निर्वाह -भाव से बेईमानी. सरकारी नौकरी लगवानी हो तो इतने रूपये तो देने ही होंगे-ऐसे विवश-वचन प्रत्येक नागरिक के मुख पर है.क्यों नहीं हम कहते क़ि नौकरी लगे या न लगे मैं एक भी पैसा नहीं दूंगा..कुछ लोग इस सम्बन्ध में हिसाब लगाकर कहते हैं-एक बार दे दो फिर जीवन भर मौज करो! किन्तु आप यह रकम देकर न केवल किसी और योग्य का पद छीन रहें हैं बल्कि आने वाली पीड़ी को भी भी भ्रष्टाचार संस्कार रूप में दे रहें हैं. ईश्वर-अल्लाह-गुरुनानक-ईसा मसीह---- जिसके भी आप भक्त हैं ;जिसमे भी आप आस्था रखते हैं; उनके समक्ष खड़े होकर ;आप एकांत में यदि यह कहें क़ि मैंने ये भ्रष्ट आचरण इस कारण या उस कारण किया है तो प्रभु हसकर कहेंगे--यदि तुने कुछ गलत नहीं किया है तो मुझे बताकर अपने कार्य को न्यायोचित क्यों ठहराना चाह रहा है. अत: अपनी आत्मा को न मारिये !भ्रष्टाचार को स्वयं के स्तर से समाप्त करने का प्रयास कीजिये.
कुछ समय पूर्व यह लेख मैंने अपने ब्लॉग ''विचारों क़ा चबूतरा '' पर badhta bhrashtachar uttardayee humपर प्रकाशित किया था .आज आपके समक्ष प्रस्तुत है .अपने विचारों से जरूर अवगत कराएँ-
हम अक्सर अपने देश की विकास गति बाधित होने ; समस्याओं का समाधान न होने अथवा भ्रष्टाचार के लिए अपने नेताओं को पूर्णरूप से उत्तरदायी ठहरा देते हैं;किन्तु सच्चाई के साथ स्वीकार करें तो हम भी कम ज़िम्मेदार नहीं है. पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव तक कितने मतदाता है जो अपने घर आए प्रत्याशी से साफ-साफ यह कह दें क़ि हमें अपने निजी हित नहीं सार्वजानिक हित में आपका योगदान चहिये.हम खुद यह सोचने लगते है क़ि यदि हमारा जानकर व्यक्ति चुन लिया गया तो हमारे काम आसानी से हो जायेंगे.चुनाव -कार्यालय के उद्घाटन से लेकर वोट खरीदने तक का खर्चा हमारे प्रतिनिधि पञ्च वर्ष में निकल लेते हैं.हमारे प्रतिनिधि हैं ;हममें से हैं-भ्रष्ट हैं -तो हम कैसे ईमानदार हैं? नगरपालिका से लेकर लोकसभा तक में हमारा प्रतिनाधित्व करने वाले व्यक्ति उसी मिटटी; हवा; प्रकाश; जल ;से बने हैं-जिससे हम बने हैं. यदि हम ईमानदार समाज ;राष्र्ट चाहते हैं तो हमे पहले खुद ईमानदार होना होगा . हमें खुद से यह प्रण करना होगा क़ि हम अपने किसी काम को करवाने के लिए रिश्वत-उपहार नहीं देंगे;यहाँ तक क़ि किसी रेस्टोरेंट के वेटर को टिप तक नहीं देंगे. ये टिप ;ये उपहार; रिश्वत- कार्यालियों में बैठे कर्मचारियों;वेटर; प्रत्येक विभाग के ऊपर से लेकर नीचे तक के अधिकारियोंमे लोभ रूपी राक्षस को जगाकर भर्ष्टाचार का मार्ग प्रशस्त करते हैं.टिप पाने वाला आपका काम अतिरिक्त स्नेह से करता है किन्तु अन्य के प्रति ;जो टिप नहीं दे सकता ; उपेक्षित व्यवहार करता है अर्थात प्रत्येक के प्रति समान कर्तव्य निर्वाह -भाव से बेईमानी. सरकारी नौकरी लगवानी हो तो इतने रूपये तो देने ही होंगे-ऐसे विवश-वचन प्रत्येक नागरिक के मुख पर है.क्यों नहीं हम कहते क़ि नौकरी लगे या न लगे मैं एक भी पैसा नहीं दूंगा..कुछ लोग इस सम्बन्ध में हिसाब लगाकर कहते हैं-एक बार दे दो फिर जीवन भर मौज करो! किन्तु आप यह रकम देकर न केवल किसी और योग्य का पद छीन रहें हैं बल्कि आने वाली पीड़ी को भी भी भ्रष्टाचार संस्कार रूप में दे रहें हैं. ईश्वर-अल्लाह-गुरुनानक-ईसा मसीह---- जिसके भी आप भक्त हैं ;जिसमे भी आप आस्था रखते हैं; उनके समक्ष खड़े होकर ;आप एकांत में यदि यह कहें क़ि मैंने ये भ्रष्ट आचरण इस कारण या उस कारण किया है तो प्रभु हसकर कहेंगे--यदि तुने कुछ गलत नहीं किया है तो मुझे बताकर अपने कार्य को न्यायोचित क्यों ठहराना चाह रहा है. अत: अपनी आत्मा को न मारिये !भ्रष्टाचार को स्वयं के स्तर से समाप्त करने का प्रयास कीजिये.
3 comments:
shikaji, akela chana bhad naheen phodta . sanghe shakti kaliyuge . Hamein mahaan uttardayitwon ko samajhana aur unke liye katibaddh tatha sangathit hona hoga .
बहुत सही विचार..भ्रष्टाचार समाप्त करने का सबसे पहले प्रयास अपने आप से करना होगा. अगर हम इसका शिकार होने से इनकार करदें ,तो शुरू में हमें परेशानी हो सकती है, पर किसी को तो ये शुरुआत करनी ही होगी. फिर ये हम क्यों नहीं ?
bilkul sahi kaha hai aapne .sabse pahle hume khud apne lalach par rok lagani hogi tabhi bhrashtachar rook payega .
Post a Comment