तुम बिन साथी कैसे बताएं, रात कटे ना दिन बीते
तन्हा जीवन निकल रहा है, यादों के आंसू पीते
अम्बर जितना गम पसरा और सागर सी बेचैनी है
समझ गया हूँ ढाई अक्षर, हम हारे और तुम जीते
कुंवर प्रीतम
२९.०४.२०११
अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
2 comments:
वाह वाह
बढ़िया मुक्तक.............
प्यारा मुक्तक
Swagat. aabhaar Khatri sahab
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