(courtesy = http://www.pransikand.com/)
नाम -श्री प्राण किशन सिकंद ।
पिता -श्री केवल क्रिशन सिकंद ।
(गवर्नमेन्ट सिविल एन्जिनियर-कॉन्ट्राक्टर ।)
माता- श्रीमती रामेश्वरी सिकंद ।
जन्म - १२ फरवरी १९२०.(हयात उम्र-९०)
जन्मस्थल- दिल्ली,भारत ।
शिक्षा- ऑल्ड मैट्रिक्यूलेशन
(रझा हाईस्कूल-रामपुर-U.P.)
पत्नी-श्रीमती शुक्ला सिकंद
(अहलूवालिया -विवाह, १९-अप्रैल १९४५.)
संतान - १.अरविंदजी २.सुनिलजी ३.बेटी पिन्की ।
व्यवसाय-अभिनय ।
सक्रिय कार्यकाल - सन,१९४२ से २००३.
(करीब-३५० फिल्मों में अभिनय ।)
शोक- अभिनय;फुटबॉल ।
('Bombay Dynamos Football Club' के अधिष्ठाता ।
पता- Mr. Pran Sikand, 7th Floor,
'Eden Roc' Building - 25, Union Park,
Khar- Mumbai 400 052
वेबसाईट - http://www.pransikand.com/
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प्रिय मित्र,
भारतीय फिल्म जगत के एक कलाकार का नाम कुछ ऐसा बदनाम हुआ की, उनके नाम पर, कोई माता-पिता ने, किसी भी बच्चे का नाम आजतक नहीं रखा । वह कलाकार है, बीते ज़माने के मशहूर विलन-चरित्र अभिनेता-प्राण । उनका पुरा नाम श्रीप्राण किशन सिकंद ।
प्राणसाहब की विलनगीरी में भी,प्रत्येक फिल्म में बिलकुल अलग रूप,अलग विशिष्टता, बातचीत की अलग शैली और अपना एक अलग ही अंदाज़ देखने को मिलता था । प्राणसाहब हर एक पात्र के रंग में, कुछ ऐसा रंग जाते थे की, उनका चरित्र मानो जीवंत हो उठा हो..!! उनकी शैली का सफलतापूर्वक अनुसरण करके आज भी कई विलन-हीरो अच्छे दाम कमा रहे हैं ।
हालाँकि, वास्तविक जीवन में प्राणसाहब, स्वभाव से अति नम्र, विनयी, भरोसेमंद, प्रामाणिक और दयालु है । जीवन में प्राणसाहब से एकबार जो भी मिले, वह आजीवन उनका चाहक बन जाए, ऐसे उम्दा स्वभाव के वह धनी हैं । इसीलिए, भारतीय सिनेमा जगत में उनके अमूल्य योगदान की क़दर करते हुए, प्राणसाहब को सन-२००१ में भारत सरकार ने, यथार्थ रूप से, प्राणसाहब को `पद्म भूषण` के इक्लाब से सम्मानित किया है ।
श्री प्राणसाहब ने, अभिनय की शुरूआत, शिमला में आयोजित,`रामलीला` के एक कार्यक्रम में, `सीता` का किरदार निभा कर शुरू की थी । `रामलीला` के इस सार्वजनिक कार्यक्रम में, `श्रीराम` का पात्र, फिल्म जगत के माने हुए चरित्र अभिनेता श्री मदनपुरीजी ने निभाया था ।
सन-१९४० में, (अखण्ड भारत) हीरा मंडी-लाहौर में, लेखक श्री वली महंमह वलीजी ने, प्राणसाहब की मुलाकात, सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता श्री दलसुख पंचोलीजी से करवाई । श्री पंचोलीजी ने प्राणसाहब को, उस जमाने की हीट फिल्म` यमला जाट` में विलन का लीड रॉल दिया । बाद में `चौधरी` और `खजानची` फिल्म में भी विलन का रॉल करके प्राणसाहब फिल्म उद्योग में बतौर विलन स्थापित हो गए ।
दोस्तों, उस समय प्राणसहब की प्रतिस्पर्धा,उस ज़माने के जाने माने विलन श्री अजित साहब और श्री के.एन.सिंगसाहब के साथ थीं ।
सन-१९४२ में प्राणसाहब ने श्री दलसुख पंचोलीसाहब की ही, हिन्दी फिल्म,`खानदान` में, नूरजहाँजी के साथ,जीवन का सब से पहला, हीरो का रॉल भी निभाया ।
सन-१९४७ के अखण्ड भारत के दुर्भाग्यपूर्ण विभाजन के समय तक, प्राणसाहबने करीब-२२ फिल्मों में विलन का किरदार बखूबी निभाया था ।
दिनांक-१४ अगस्त १९४७ के रोज़ प्राणसाहब लाहौर (पाकिस्तान) छोड़कर मुंबई आ गए, पर यहाँ बदकिस्मती उनकी राह ताक रही थी । यहाँ मुंबई आकर नये सिरे से काम की तलाश में मानो जीवन संघर्ष फिर से शुरू हो गया..!! उनकी जेब भी खाली होने को आई थी । ऐसे में एक दिन सुप्रसिद्ध लेखक श्री सादत हुसैन मन्टोसाहब और सुप्रसिद्ध अभिनेता श्री श्याम के प्रयत्न से, सन-१९४८ में ,प्राणसाहब को बॉम्बे टॉकिझ की फिल्म` ज़िद्दी` में, श्री देवानंद और कु.कामिनी कौशल के साथ रॉल मिल गया , बाद में तो, एक ही हफ़्ते के भीतर, प्राण साहब ने अन्य तीन फिल्में,`गृहस्थी`;`अपराधी` और `पूतली` साइन कर लीं । अब उनके बदकिस्मती के दिन मानो पुरे हो गए, बाद में श्रीप्राणसाहब ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा..!!
श्री प्राणसाह्ब की अन्य उल्लेखनीय फिल्में हैं, `हलाकु-१९५६`;` जिस देश में गंगा बहती है-१९६०`;`विक्टोरिया नंबर २०३-१९७२`;`उपकार-१९६७`;`पूरब और पश्चिम- ज़ंजीर -१९७३`;` अमर अकबर ऍन्थोनी-`१९७७`; और करीब अन्य ३५० फिल्में..!!
प्राणसाहब का नाम रुपहले पर्दे पर बतौर विलन, कुछ ऐसा बदनाम हो गया था की, वास्तव ज़िदगी में भी, प्राणसाहब जहाँ-कहीं भी जाते हो, उनके विलन होने के ग़लत अनुभाव के चलते, छोटे-बड़े सभी लोग उनसे डर कर, दूर ही भाग जाते थे..!!
याद है? फिल्म `गुड्डी` में जया भादुडी (बच्चन) का प्राणसाहब के प्रति डर और नफ़रत का वह दृश्य?
श्री प्राणसाहब की विलन की छाप बदलने का श्रेय सुप्रसिद्ध निर्माता-अभिनेता श्री मनोजकुमार को जाता है । सन-१९६७ में,श्रीमनोजकुमार की फिल्म,`उपकार` प्रदर्शित होते ही, प्राणसाहब उर्फ़`मलंगचाचा` ने दर्शकों पर ऐसा चमत्कारी जादू कर दिया की, प्राणसाह्ब कभी ख़ूँख़ार विलन भी हुआ करते थे, यह बात सब लोग भूल गए । मानो प्राणसाहब के जीवन में भी इतिहास का एक नया सफल अध्याय जूड़ गया ।
फिल्म विवेचकों को, हैरानी तब होने लगी जब,`उपकार` फिल्म को सिर्फ प्राणसाहब के अद्भुत संवाद और ज़ोरदार अभिनय की वजह से ही, थियेटर में, फिल्म देखने वाले, रिपीट दर्शक मिलने लगे । मुझे याद है, हमारे अहमदाबाद-गुजरात के `रूपम` थियेटर में फिल्म,`उपकार` पूरे चौवन (५४) सप्ताह तक चली थीं ..!! फिल्म,`उपकार`के बाद, प्राणसाहब विलन के बदले चरित्र अभिनेता के तौर पर स्थापित हो गए ।
आपको एक वाक़या बताता हूँ, जो की बहुत कम लोग जानते होगें..!!
फिल्म,`उपकार` में, श्रीकल्याणजी-आनंदजी का संगीतबद्ध किया और श्री मन्नाडेजी का गाया हुआ,एक सुपरहिट गाना , `कसमे-वादे प्यार वफ़ा सब बाते हैं, बातों का क्या?" प्राणसाहब पर फिल्माया गया था ।
अब जो पाठक मित्र, संगीत के सप्तक के बारे में जानते होंगे, उन्हें पता है की, ये गीत के स्वर,`तार सप्तक` तक पहुँचते हैं, अतः प्राणसाहब के कुशल अभिनय की समझदारी दिखाते हुए, इस गीत के फिल्मांकन के समय, प्राणसाहब उर्फ `मलंगचाचा` के माथे और गले की सारी नसें भी फूलकर, गीत के तार स्वर को छूती हुई साफ़-साफ़ नज़र आती थीं ।
सच पूछो तो, गीत के बोल को सही ढ़ंग से, किस प्रकार `लिप्सिंग-डबिंग` करना चाहिए, ये बात, प्राणसाहब के अभिनय की ऐसी ब़ारीक फिल्मांकन से, प्रेरणा लेकर आजकल के नौंसिखीयों हीरो-हीरोइनों को कुछ अवश्य सीखना चाहिए..!!
श्री कल्याणजी-आनंदजीने इस गाने के रशीश (पूर्वावलोकन) जब देखें, तब दोनों महान संगीतज्ञ, प्राण साहब की इस महीम अभिनय क्षमता पर फ़िदा हो गए थे..!!
श्री प्राणसाहब का `उपकार` का ही, क्लाईमेक्स का एक सिन है, जिसमें मनोजकुमार (भारत) को बचाते-बचाते,विलन मदनपुरी के चाकू से घायल हुए` मलंगचाचा` अपने एक ही पाँव पर बैंलेंस सँभालते हुए, दर्द के मारे जिस तरह तड़पते हैं..!! शायद ही कोई, ये दृश्य आजतक भूल पाया हो?
ऐसी लाजवाब अभिनयक्षमता के कारण ही, सन-१९७० की` डॉन` फिल्म में, प्राणसाहब को, श्रीअमिताभ बच्चनजी से कई गुना ज्यादा मेहनताना मिला था ।
श्री प्राणसाहब ने अपनी धांसु विलनगीरी से, कई हीरो को पछाड़कर कई एवॉर्ड्स भी प्राप्त किए हैं, जिसमें, सन-१९६१-६६-७३ में बॅन्गाल फिल्म जर्नालिस्ट एसोसियेशन एवॉर्ड,सन- १९७३ में अहमदाबाद चित्रलोक सीने सर्कल अवॉर्ड,सन-१९७६-७८-८४ के बॉम्बे फिल्म अवॉर्ड्स, सन-१९६७,१९६९,१९७२ और १९९७ में प्राप्त हुए `बेस्ट सपोर्टींग ऍक्टर` के चार फिल्म-फेर अवॉर्ड्स के अलावा, सन-१९९७ में `लाइफ़ टाईम ऍचिवमेन्ट` अवॉर्ड और सन-२००० में स्टारडस्ट की ओर से `विलन ऑफ ध मिलेनियम` अवॉर्ड उल्लेखनीय है ।
श्री प्राणसाहब को, सन-२००४ में, महाराष्ट्र सरकार द्वारा `लाइफ़ टाईम एचिवमेन्ट` अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है ।
वैसे सच पूछो तो,करीब छह दशक तक,` विलन ऑफ ध मिलेनियम` की भाँति, अपने अभिनय-हुनर से फिल्म दर्शकों के दिलों पर जिस कलाकार ने राज किया हो और जिस कलाकार की, करीब-करीब सारी, फिल्मों को बॉक्स ऑफ़िस पर, दर्शकों ने अभूतपूर्व प्रतिभाव दिया हो,ऐसे `दर्शक प्यार अवॉर्ड` के आगे, किसी भी सच्चे कलाकार को अन्य सारे अवॉर्ड्स फीके ही लगते होंगे..!!
आपने अवश्य ध्यान दिया होगा, श्री प्राणसाहब अभिनित कोई भी फिल्म हो, शुरू के टायटल में, फिल्म के सभी कलाकार के नाम आ जाने के बाद, आखिरी में, श्री प्राणसाहब को अलग से क्रेडिट देते हुए, पुरे रुपहले परदे में समाता हुआ एक नाम आता था..!!
"............And PRAN.!!" , "कुछ समझे बर्रखुद्दार???"
Dear Friends, Shri Pran sahab & his family are Celebrating 90 years and 1114 Full Moons of shri Pran sahab. Pl. join me to pray to god for a healthy and long life to him.
THANKS,
मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०९-०४-२०११.
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