पसीने से भिगे बदन ।
(courtesy-Google images)
ये पसीने से भिगे हुए हैं बदन।
पेट भरने को छोड़ा है अपना वतन।
शहर में ये उठता धुआँ सा क्यूँ है?
मेहनतकश के दिल की है ये जलन।
पेट भरने को छोड़ा है अपना वतन।
ठेलोँ के नीचे बँधी ये चादर क्यूँ है?
पलते है ईनमे देखो ग़रीबों के रतन।
पेट भरने को छोड़ा है अपना वतन।
ये रोते-बिलखते मासूम क्यूँ है?
बेबसी ने बिकाया, माँ का ये तन।
पेट भरने को छोड़ा है अपना वतन।
फुटपाथ भी ये परेशान क्यूँ हैं?
औढकर कोई सोया हुआ है कफ़न।
पेट भरने को छोड़ा था उसने वतन।
मार्कण्ड दवे।दिनांकः२६/०२/२०११.
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मार्कण्ड दवे । दिनांक- २७ नवम्बर २०१०.
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