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8.5.11

कभी मिलना बहाने से

कभी मिलना बहाने से , निगाहें चार हो जाना ,
किसे मालूम था मुमकिन है इतना प्यार हो जाना ?
कहाँ है वो खयालों का मेरा मौसम सुहाना -सा ,
कहाँ है गुल, कहाँ गुल से गुले गुलजार हो जाना ?
तमन्नाओं की महफ़िल उठ गयी , बस एक है बाकी ,
शम्मा बुझ जाने से पहले तेरा दीदार हो जाना ।
बड़े बेदर्द हो पर दर्द देकर ही गए दिल को ,
देखती है ग़ज़ल उस दर्द का दिलदार हो जाना ।

2 comments:

जीवन और जगत said...

अच्‍छी रचना है और गेय भी।

Dr Om Prakash Pandey said...

Dhanyawaad! Ghanashyamji.