जीने की आजादी ???
संविधान का अनुच्छेद 21 "आपके जीवन की आजादी का अधिकार" है 1981 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले में फैसला सुनाया था: "जीवन के अधिकार में मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है और इसके तहत शामिल हैं- जल, स्वच्छता ,पर्याप्त पोषण, वस्त्र और आवास, पढ़ने-लिखने की सुविधा,विविध प्रकार की अभिव्यक्ति का अधिकार और हर जगह जाने तथा इंसानों के साथ घुलने-मिलने की आज़ादी. हालांकि इस आजादी के विस्तार और तत्व देश के आर्थिक विकास पर निर्भर होंगे, लेकिन किसी भी परिस्थिति में मानवीय जीवन की मूलभूत आवश्यकता और ऐसे क्रियाकलाप को लागू करना अनिवार्य होगा जो इंसानों की मूलभूत अभिव्यक्ति के लिए जरूरी हैं."
क्या वास्तव में हमें ६४ वर्षो में सही अर्थ में जीने की आजादी मिली है ?
नहीं .....नहीं.....नहीं.....
जीने की आजादी का अधिकार पूर्ण रूप से नहीं मिलने के कारण------
१.राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव.
२.अशिक्षित जनता
३.जागरूकता का अभाव
४.गरीबी और भुखमरी
५.भ्रष्टाचार
६.देशप्रेम के जज्बे का शिथिल होना
७.वोट की राजनीती
८.काले धन का दंश
९.टैक्स का भयंकर मकड़ जाल
१०.मतदान की अनिवार्यता का कानून नहीं होना
११.मतदान में नापसंगी का चुनाव करने की छुट का अभाव
१२.नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का क्षय .
१३.गैरजिम्मेदार शासक वर्ग
१४.शासक वर्ग का एक दुसरे पर दोषारोपण
१५.जनसेवक का मालिक बन जाना
१६.संविधान के छेद बने रहने देना
१७.जनता के धन का दुरूपयोग
१८.दोहरी अर्थ व्यवस्था
१९.नीतियो के संचालन में तालमेल का अभाव
२०.नीति-नियमो के विश्लेषण में त्रुटियाँ
२१.सही और कारगर शिक्षा नीति का अभाव
२२.प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन
२३.काम रोको प्रवृति
२४.चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार की उम्र तथा जरुरी शिक्षा के नियम का अभाव
२५.धन बल और बाहुबल का चुनावों में उपयोग
२६.अफसरों की कामचोरी
२७.प्रमाणिक ऑफिसर को हैरान करना
२८.गलत आर्थिक नीतियो का निर्धारण
२९.धीमी न्यायिक प्रक्रिया
३०.जातिवाद को बढ़ावा
उपाय ---------
स्वयं सुधरे ,कानून सुधारे
1 comment:
भाई आप के विचार अच्छे है पर इनको व्यव्हार मे लाना लोगो को बहुत मुश्किल लगता है मीठा मीठा गप गप कडुवा कडुवा थु थु
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