पहला था संग्राम महा ;आजादी-खातिर ,
अंग्रेजी सरकार कुटिल और बड़ी थी शातिर,
लखनऊ में विद्रोह की डोर थी जिसने थामी,
'बेगम हजरत महल 'नाम,थी अवध की रानी ,
अवध-नवाब को कैद किया कलकत्ता में था ,
इसीलिए यह काम संभाला बेगम ने था ,
नाबालिग बेटे को वारिस घोषित कर डाला ;
पर अंग्रेजो ने इसको वैध न माना ,
साजिश कर जब अवध मिलाने को थे तत्पर ;
युद्ध के बादल मंडरा आये अवध के ऊपर ,
बेगम ने हालातों से तब हार न मानी ,
ले किसान,जमीदार,सिपाही -युद्ध की ठानी ,
तीन,तीस व् मई इक्तीस -सन सत्तावन ;
अवध में था विद्रोह हुआ,लक्ष्य था पावन ,
बेगम ने विद्रोह का तब नेतृत्व किया था ;
किन्तु ये प्रयास जल्द ही विफल हुआ था ,
माह सितम्बर सन था अट्ठारह सौ अट्ठावन
ब्रिटिश सैनिको ने कब्जाया अवध का शासन ,
किन्तु बेगम ने झुकने से इंकार किया था ;
हो विवश नेपाल-गमन स्वीकार किया था ,
दुश्मन के आगे न जिसने किया समर्पण
ऐसी बेगम के साहस को नमन करे हम !
शिखा कौशिक
1 comment:
शिखा जी किन शब्दों में आपका शुक्रिया अदा करूं समझ नहीं आ रहा .इतना गंभीर गद्य काव्य में ढलकर आप प्रतियोगी छात्रों पर बहुत उपकार कर रही हैं क्योंकि उन्हें ये सब चरित्र वैसे भी याद करने होते हैं और इसके माध्यम से ये चरित्र समझना हम जैसे अल्प बुद्धि वालों के लिए और भी आसान हो गया है.आभार
Post a Comment