सेक्शन 498 -A, Indian Penal Code, का दुरुपयोग
सेक्शन 498 -A Indian Penal Code बनाने का उद्देश्य दहेज लोभियों को सजा दिलाना था लेकिन अब आज कल इस धारा का दुरुपयोग बढ़ गया है| पति-पत्नी के नोक-झोंक और घरेलू झगड़े अब कोर्ट में पहुचने लगे हैं| लोगों कि सहनशीलता कम हो रही है और एक दूसरे के प्रति सम्मान भी कम हो रहा है| अब दहेज के ज्यादातर केसों में सच्चाई कम और अहम् का टकराव ज्यादा है| मै यह नहीं कहता कि दहेज़ का हर केस झूठा है , अभी भी प्रति वर्ष हजारों महिलायें दहेज़ लोभियों की भेंट चढ़ जाती है पर अब झूठे केसों कि संख्या बढ़ रही है जो एक चिंताजनक विषय है| यदि नयी बहू का अपने ससुराल वालों या पति से नहीं पट रही है तो वो इस धारा का सहारा ले के ब्लैकमेलिंग करने लग रही हैं, अपनी जायज-नाजायज मांगों को मनवा रही हैं | मेरी नज़र में इस धारा में सबसे बड़ी गड़बड़ी यह है की यह गैर -ज़मानती है | केस करने पर सभी नामज़द लोगों की गिरफ्तारी हो जाती है | परिपाटी यह है कि पति के सम्बन्धियों की ज़मानत तो सेशन कोर्ट से हो जाती है पर पति को ज़मानत हाई कोर्ट से ही मिल पाती है | वैसे तो यह एक non -compoundable अपराध है पर इसको लेकर अलग-अलग हाई कोर्टों की राय अलग-अलग है | अर्थात यदि माननीय हाई कोर्ट चाहे तो उसकी अनुमति से समझौता हो सकता है | पर इस पूरी प्रक्रिया में वर्षों लग जाते हैं और पति-पत्नी के बीच संबंधों की खाई और चौड़ी हो जाती है| अब यह भी देखा जा रहा है कि यदि पत्नी तो तलाक चाहिए तो परिवार न्यायालय में वाद दाखिल करने के साथ-साथ दबाव बढ़ाने के लिए पति तथा उसके परिवार वालों पर वह दहेज तथा घरेलू हिंसा का भी केस कर दे रही है | दुःख की बात यह है ये नेक सलाह हम जैसे अधिवक्ता ही दे रहे हैं| मै व्यक्तिगत रूप से कई ऐसे केसों को जानता हूं जो बिलकुल ही झूठे हैं | जैसे-(1) मेरे पड़ोस के मिश्रा जी का केस: सीधे -साधे अध्यापक मिश्र जी ने अपने बेटे की शादी की पर बहू ने आते ही बेटे पर परिवार से अलग रहने का दबाव बनाना शुरू कर दिया , जब बेटे ने मना किया तो पूरे परिवार पर दहेज़ का केस, बड़ी मुश्किल से ६ लाख रूपये में पीछा छूटा| (2) सिगरा के पांडे जी का केस: पाण्डेय जी ने अपने सबसे छोटे बेटे की शादी इलाहाबाद में की , शादी के बाद पता चला कि बहू को मनोरोग है, अपने खर्चे पर मनोचिकित्सक से इलाज शुरू करवाया पर एक दिन बहू ने अपने कमरे में फांसी लगा कर आत्महत्या कर लिया, अब पूरा परिवार धारा -498 A के साथ-साथ धारा- 304 B (दहेज़ मृत्यु) भी झेल रहा है| चार साल हो गए पर अभी तक चार्ज भी नहीं बना | (3) ओबरा के मनीष की शादी चार साल पहले हुई, घर में सिर्फ एक बहन थी पर बहू की उससे नहीं पटी, अब दोनों भाई बहन दहेज़ का झूठा आरोप झेल रहे हैं | बहू १२ लाख रुपये मांग रही है| (4) गाजीपुर के अलका सिन्हा का केस : मायके वालों के गैरजरूरी हस्तक्षेप के कारण ससुराल वालों पर दहेज़ का केस , mediation centre जाने पर भी बात नहीं बनी, एक बेटी भी है पर अहम् के टकराव के कारण उसका भी भविष्य अधर में है | (5) बनारस के सलीम का केस : गरीब बुनकर सलीम की बीवी का अवैध सम्बन्ध रिश्तेदार से है , विरोध करने पर माँ-बाप, भाई-बहन सहित दहेज़ के केस में अभी भी जेल में क्योंकि अत्यंत गरीब होने के कारण कोई जमानतदार नहीं है| इत्यादि| | (ऊपर लिखे केसों में पहचान छुपाने के लिए नाम -पते बदल दिए गए हैं) | अब हालत यह है की कोई वकील लड़की या वकील की लड़कियों से शादी करने में कतरा रहा है कि कही दहेज़ के झूठे केस में न फंसा दे| हाल ही में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह निर्देश दिया है कि दहेज के केसों को mediation centre भेज देना चाहिए ताकि पति-पत्नी के सम्बन्ध बचे रह सके | पर यहाँ कोर्ट के साथ साथ सामाजिक महिला संगठनो , लड़की के घर वालों तथा अधिवक्ताओं की भी जिम्मेदारी है कि वो इस तरह के झूठे केस न करें और इस पारिवारिक टूटन और सामाजिक बिखराव को रोकें |
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