राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़
हर साल न जाने कितनी जगहों में रावण का दहन किया जाता है और खुशियां मनाते हुए पटाखे फोड़े जाते हैं, मगर रावण के दर्द को समझने की कोई कोशिश नहीं करता। अभी कुछ दिनों पहले जब दशहरा मनाते हुए रावण को दंभी मानकर जलाया गया, उसके बाद रावण का दर्द पत्थर जैसे सीने को फाड़कर बाहर आ गया। रावण कहने लगा, उसकी एक गलती की सजा कब से भुगतनी पड़ रही है। गलती अब प्रथा बन गई है और पुतले जलाकर मजे लिए जा रहे हैं। सतयुग में की गई गलती से छुटकारा, कलयुग में भी नहीं मिल रहा है।
रावण ने अपना संस्मरण याद करते हुए कहा कि भगवान राम ने अपने बाण से उसका समूल नाश कर दिया था। सतयुग में जो हुआ, उसके बाद पूरी करनी पर, आज की तरह पर्दा पड़ जाना चाहिए था। जिस तरह देश में भ्रष्टाचार, सुरसा की तरह मुंह फैलाए बैठा है। महंगाई, जनता के लिए भस्मासुर साबित हो रही है। इन बातों पर कैसे सरकार पर्दा डाले जा रही है। ये अलग बात है कि लाख ओट लगाने के बाद भी तालाब में उपले की तरह बाहर कुछ न कुछ आ ही जा रहा है। दूसरी ओर रावण की एक करनी के बाद, कितनी मौत मरनी पड़ रही है। जगह-जगह वध होने के बाद रावण रूपी माया खत्म ही नहीं हो रही है, लेकिन देश को विपदाओं का दंश झेलने पर मजबूर करने वाली सरकार का वध क्यों नहीं हो रहा है। रावण का मर्म में समझ में आता है, लेकिन उसकी तरह जनता हामी भरे, तब ना।
रावण के पुतले को जलाने के बाद हमारी संतुष्टि देखने लायक रहती है, जैसे हमने पूरे ब्रम्हाण्ड में फतह हासिल कर ली हो। जिस तरह रावण ने अपने तप से हर कहीं वर्चस्व स्थापित कर लिया था। वे चाहते तो हवा चलती थी, वो चाहतेे तो समय चक्र चलता था। इतना जरूर है कि लोगों के शुरूर के आगे रावण भी इस कलयुग में नतमस्तक नजर आ रहा है। यही कारण है कि वह अपने दर्द को छिपाए फिर रहा है। भला, अनगिनत जगहों पर हर बरस जलाने के बाद किसे दर्द नहीं होगा, किन्तु वे परम ज्ञानी हैं, इसलिए अपने दर्द को सीने में लादे बैठे हैं। रावण को दर्द सालता जरूर है और टीस से कराह पैदा होता है, लेकिन अब किया भी क्या जा सकता है ? मनमौजी लोगों के आगे उनकी कहां चलने वाली है। वे चाहें तो साल में नहीं, हर दिन रावण दहन कर दे, लेकिन केवल पुतले का। ऐसा हमारे राजनीतिक दल के नेता करते भी हैं, कुछ हुआ नहीं, ले आए किसी का पुतला बनाकर और दाग डाले। इस बात से कोई इत्तेफाक नहीं रखता कि जैसे हम रावण के पुतले जलाते हैं, वैसे ही हम उन लोगों का समूल नाश करने की सोंचे, जो भ्रष्टाचार की जड़ मजबूत किए जा रहे हैं। ऐसे लोगों की सफेदपोश शख्सियत के आगे हम नतमस्तक नजर आते हैं, जैसे रावण के पुतले हमारे सामने। यही सब बात है, जिस दर्द का अहसास, रावण को हर पल होता है।
हमारे देश की सरकार थोड़ी न है, जिसे दर्द का अहसास ही नहीं। गरीब चाहे जितनी भी गर्त में चले जाएं, महंगाई जितनी चरम पर पहुंच जाए। भ्रष्टाचार से देश में जितना भी छेद पड़ जाए, इन बातों से हमारी सरकार कहां कराहने वाली है। ये सब महसूस करने के लिए देश में भूखे-नंगे गरीबों की जमात, जो है। गरीबों की किस्मत, रावण से कम नहीं है, रावण को एक गलती का खामियाजा न जाने कब तक भुगतना पड़ेगा, वैसे ही सरकारी कर्णधारों के रसूख के आगे बेचारी जनता की लाचारगी, वैसी ही है। पुतले के रूप में खड़ा रावण खुद को जलते हुए देखता है और जुबान भी नहीं खोल पाता और उफ भी नहीं कर पाता। यही कुछ हाल, गिने जा सकने वालों के आगे करोड़ों लोगों का है।
यही कहानी अनवरत चल रही है। सरकार, गरीबों का दर्द नहीं समझती और हम रावण का दर्द नहीं समझते। बस, बिना सोचे-समझे उसे हर साल जलाए जा रहे हैं। कोशिश हमारी यही होनी चाहिए, पहले मन के रावण को मारें, फिर देश के रावणों का नाश कर खुशियां मनाएं। इसके लिए हमारा सबसे बड़ा हथियार है, वो है हमारी वोट की ताकत। हमें पुतले पर नहीं, जीते-जागते सफेदपोशों पर चोट करनी चाहिए। तब देखें, ‘रावण’ की तरह ‘रीयल लाइफ के रावणों’ को दर्द होता है कि नहीं ?
हर साल न जाने कितनी जगहों में रावण का दहन किया जाता है और खुशियां मनाते हुए पटाखे फोड़े जाते हैं, मगर रावण के दर्द को समझने की कोई कोशिश नहीं करता। अभी कुछ दिनों पहले जब दशहरा मनाते हुए रावण को दंभी मानकर जलाया गया, उसके बाद रावण का दर्द पत्थर जैसे सीने को फाड़कर बाहर आ गया। रावण कहने लगा, उसकी एक गलती की सजा कब से भुगतनी पड़ रही है। गलती अब प्रथा बन गई है और पुतले जलाकर मजे लिए जा रहे हैं। सतयुग में की गई गलती से छुटकारा, कलयुग में भी नहीं मिल रहा है।
रावण ने अपना संस्मरण याद करते हुए कहा कि भगवान राम ने अपने बाण से उसका समूल नाश कर दिया था। सतयुग में जो हुआ, उसके बाद पूरी करनी पर, आज की तरह पर्दा पड़ जाना चाहिए था। जिस तरह देश में भ्रष्टाचार, सुरसा की तरह मुंह फैलाए बैठा है। महंगाई, जनता के लिए भस्मासुर साबित हो रही है। इन बातों पर कैसे सरकार पर्दा डाले जा रही है। ये अलग बात है कि लाख ओट लगाने के बाद भी तालाब में उपले की तरह बाहर कुछ न कुछ आ ही जा रहा है। दूसरी ओर रावण की एक करनी के बाद, कितनी मौत मरनी पड़ रही है। जगह-जगह वध होने के बाद रावण रूपी माया खत्म ही नहीं हो रही है, लेकिन देश को विपदाओं का दंश झेलने पर मजबूर करने वाली सरकार का वध क्यों नहीं हो रहा है। रावण का मर्म में समझ में आता है, लेकिन उसकी तरह जनता हामी भरे, तब ना।
रावण के पुतले को जलाने के बाद हमारी संतुष्टि देखने लायक रहती है, जैसे हमने पूरे ब्रम्हाण्ड में फतह हासिल कर ली हो। जिस तरह रावण ने अपने तप से हर कहीं वर्चस्व स्थापित कर लिया था। वे चाहते तो हवा चलती थी, वो चाहतेे तो समय चक्र चलता था। इतना जरूर है कि लोगों के शुरूर के आगे रावण भी इस कलयुग में नतमस्तक नजर आ रहा है। यही कारण है कि वह अपने दर्द को छिपाए फिर रहा है। भला, अनगिनत जगहों पर हर बरस जलाने के बाद किसे दर्द नहीं होगा, किन्तु वे परम ज्ञानी हैं, इसलिए अपने दर्द को सीने में लादे बैठे हैं। रावण को दर्द सालता जरूर है और टीस से कराह पैदा होता है, लेकिन अब किया भी क्या जा सकता है ? मनमौजी लोगों के आगे उनकी कहां चलने वाली है। वे चाहें तो साल में नहीं, हर दिन रावण दहन कर दे, लेकिन केवल पुतले का। ऐसा हमारे राजनीतिक दल के नेता करते भी हैं, कुछ हुआ नहीं, ले आए किसी का पुतला बनाकर और दाग डाले। इस बात से कोई इत्तेफाक नहीं रखता कि जैसे हम रावण के पुतले जलाते हैं, वैसे ही हम उन लोगों का समूल नाश करने की सोंचे, जो भ्रष्टाचार की जड़ मजबूत किए जा रहे हैं। ऐसे लोगों की सफेदपोश शख्सियत के आगे हम नतमस्तक नजर आते हैं, जैसे रावण के पुतले हमारे सामने। यही सब बात है, जिस दर्द का अहसास, रावण को हर पल होता है।
हमारे देश की सरकार थोड़ी न है, जिसे दर्द का अहसास ही नहीं। गरीब चाहे जितनी भी गर्त में चले जाएं, महंगाई जितनी चरम पर पहुंच जाए। भ्रष्टाचार से देश में जितना भी छेद पड़ जाए, इन बातों से हमारी सरकार कहां कराहने वाली है। ये सब महसूस करने के लिए देश में भूखे-नंगे गरीबों की जमात, जो है। गरीबों की किस्मत, रावण से कम नहीं है, रावण को एक गलती का खामियाजा न जाने कब तक भुगतना पड़ेगा, वैसे ही सरकारी कर्णधारों के रसूख के आगे बेचारी जनता की लाचारगी, वैसी ही है। पुतले के रूप में खड़ा रावण खुद को जलते हुए देखता है और जुबान भी नहीं खोल पाता और उफ भी नहीं कर पाता। यही कुछ हाल, गिने जा सकने वालों के आगे करोड़ों लोगों का है।
यही कहानी अनवरत चल रही है। सरकार, गरीबों का दर्द नहीं समझती और हम रावण का दर्द नहीं समझते। बस, बिना सोचे-समझे उसे हर साल जलाए जा रहे हैं। कोशिश हमारी यही होनी चाहिए, पहले मन के रावण को मारें, फिर देश के रावणों का नाश कर खुशियां मनाएं। इसके लिए हमारा सबसे बड़ा हथियार है, वो है हमारी वोट की ताकत। हमें पुतले पर नहीं, जीते-जागते सफेदपोशों पर चोट करनी चाहिए। तब देखें, ‘रावण’ की तरह ‘रीयल लाइफ के रावणों’ को दर्द होता है कि नहीं ?
2 comments:
जी हां, रावण जलाकर हम कुछ वैसा ही अनुभव करते हैं, जैसा अन्ना हजारे के आंदोलन में शामिल होकर। दोनों ही मामलों में हमें यह गलतफहमी रहती है कि अब सब कुछ ठीक हो गया है या हो जायेगा। केवल कुछ प्रतीकात्मक क्रियाकलाप करने मात्र से ही किसी समस्या से छुटकारा नहीं मिल सकता। इस बात को हमें समझना चाहिये।
bandhu ! lekh achchha hai lekin raawan tretaa yug me hua tha.
Post a Comment