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3.3.12

पटरियां


हम पटरियां हैं शायद
दो अंजान मुसाफिरों की तरह
लाख कोशिशों के बाद भी नहीं मिलती
एक ही मंजिल है एक ही सपना
पर हैं अलग सूरज और चांद की तरह
क्योंकि हम पटरियां है शायद
हमारा पटरियां होना भी सही है
पटरियों का अलग-अलग होना भी सही है
क्योंकि पटरियों को डर है कहीं
एक होते ही उनका आस्तिव न समाप्त हो जाए
हम पटरियां न जानें कितनों का
सफर तैय करती हैं
न जाने कितनों को अपनों से मिलातीं हैं
पर खुद को हमेशा जुदा ही पातीं हैं
कभी भी नहीं मिल पातीं हैं पटरियां
क्योंकि हम पटरियां है शायद..........

1 comment:

Roshi said...

sach jindgi rail ki patri ki terh hi hai.......