एक पतँगा (उड़ने वाला कीड़ा ) खुली हुयी खडकी से कमरे के अन्दर आ गया था।मेने खिड़की
के कांच को बंद कर दिया और उस कीट को कमरे से बाहर निकालने की कोशिश की मगर
पतँगा उड़ता हुआ काँच के पास आया और बंद कांच से बाहर निकलने का प्रयास करने लगा।
मैं इस घटना को देखने लग गया।वह पतँगा बार -बार उस कांच से टकरा रहा है और बाहर
निकलने की कोशिश कर रहा है। इस घटना को मैं लगातार 10-15 मिनिट तक देखता रहा।
वह कीट बार-बार पूरी शक्ति से उस कांच से टकराता है,मगर कमरे की दूसरी खिड़की या
दरवाजे से बाहर निकलने का प्रयास नहीं कर रहा है।मेने सोचा थोड़ी देर इस कांच से टकरा कर
जब यह थक जाएगा तो दूसरी खडकी या दरवाजे से बाहर निकल जायेगा। उस पतंगे से ध्यान
हटा मैं कमरे से बाहर निकल गया और अपने काम में लग गया।
रात को जब मैं अपने कमरे में सोने गया तो देखा वह पतँगा कांच से टकरा-टकरा कर
मर चुका है।
आप सोचेंगे कि इस छोटी सी घटना का ब्लॉग पर लिखने का क्या आशय ?मेने इस
घटना पर विचार किया कि यह पतंगा आसानी से अपनी जान बचा कर दूसरी खिड़की से या
दरवाजे से स्वतंत्र हो सकता था मगर यह अपना नजरिया बदल नही सका तथा बाहर निकलने
के दुसरे विकल्पों पर ध्यान नही दे सका इसलिए स्वतंत्र होने के भरसक प्रयत्न करते हुए भी
मर गया। मरा हुआ पतंगा मेरे मन में बहुत से विचार छोड़ गया -
क्या इस पतंगे ने बाहर निकलने के लिए प्रयत्न नहीं किया ? ..तो फिर असफल क्यों हुआ ?
क्या यह पतंगा स्वतंत्र होकर जीना नही चाहता था ?
क्या इस पतंगे की मौत इसी तरीके से होनी निश्चित थी? या यह विधि का विधान था।
क्या यह पतंगा बार-बार की असफलता से टूट कर मर गया? या सफल होना उसके
सामर्थ्य से बाहर था ?
......आखिर पतंगे की प्रयत्न करने पर भी असफल रहने का कारण क्या था?
निश्चित रूप से पतंगे के असफल होने का कारण दुसरे विकल्पों पर ध्यान ना देना यानि
खुद के नजरिये में बदलाव नही लाना था।
क्या हम भी कभी-कभी पतंगे जैसी कोशिश तो नही कर लेते हैं ?
हम लोग भी जब एक ही बिंदु पर बार-बार असफल होते हैं तो इसका मुख्य
कारण सभी विकल्पों पर ध्यान नही देना या नजरिये की दिशा को समग्र रूप से नही देखना है
सफल होने के लिए प्रयत्न जरूरी है लेकिन यदि असफल रहे तो दुसरे सम्भावित विकल्प
और उनकी दिशा का बदलाव भी सोच के रखे ताकि असफलता हमारी शक्ति बन जाये।