हिंदी साहित्य के प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह ने कहा कि सच को स्वीकार करने और लिखने के लिए, खासकर अपने नजदीकी लोगों के बारे में सही टिप्पणी करने के लिए बड़े ही साहस की जरूरत होती है और निर्मला जैन में वह मजबूती है, वह साहस है. यह उनकी आत्मकथा ‘ज़माने में हम’ में साफ़ उभर कर सामने आता है. केदारनाथ सिंह मंगलवार की शाम साहित्य अकादमी सभागार में निर्मला जैन की आत्मकथा के प्रकाशन के अवसर पर आयोजित ‘लेखक से बातचीत’ कार्यक्रम में बतौर विशिष्ठ अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हिंदी अध्यापन के क्षेत्र में किसी महिला ने पहली बार आत्मकथा लिखने का साहस दिखाया है. इसलिए सही मायने में यह कृति एक इतिहास की शुरुआत है और इसमें जिन-जिन बातों का उल्लेख किया गया है उनसे यह किताब एक दस्तावेज की तरह भी पढ़ी जा सकती है. उन्होंने कहा, ” निर्मला जैन ने अपने निजी, पेशेवर और सामाजिक जीवन के सभी संघर्षों को बड़ी सच्चाई तथा सजीव ढंग से पेश किया है, जो हर किसी के वश में नहीं है। “
इससे पहले लेखक तथा पत्रकार प्रियदर्शन एवं युवा लेखिका सुदीप्ति के साथ बातचीत में उनके सवालों का बड़ी बेबाकी से जवाब देते हुए ‘ज़माने में हम’ की लेखिका निर्मला जैन ने कहा, ‘‘मुसीबतें आदमी को मजबूत बनाती हैं। मुसीबतों से लड़ते रहने के जुझारूपन ने ही मुझे हिम्मत और ताकत दी है।’’ अपने जीवन के अनुभवों के हवाले से उनका कहना था, ‘‘अगर जीवन में कठिनाइयाँ न हों तो जीवन कमजोर हो जाता है। मेरे जीवन में कमियां और मुसीबतों की कभी कमी नहीं रही। इसलिए मुझे जीवन में पछ्तावे के लिए फुरसत ही नहीं मिली। जीवन संघर्षों के साथ आगे बढता चला गया। “
बातचीत के दौरान प्रियदर्शन ने एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठाया कि निर्मला जी की आत्मकथा ‘जमाने में हम’ में किसी किताब का जिक्र नहीं मिलता। इस पर लेखिका ने कहा, ‘’किताबें मैंने बहुत पढ़ी हैं और पढ़ती रहती हूँ। लेकिन इस तरह की कोई किताब नहीं है जिसका असर मेरी सोच या जीवन की दिशा पर कभी परिवर्तनकरी ढंग से पड़ा हो। और रही बात उनका जिक्र करने की तो मैंने इतना पढ़ा है कि उस पर एक अलग अध्याय ही बन जाएगा।“
तमाम प्रतिभाशाली लोगों के संपर्क में रहने के दौरान उनमें से किसी के प्रति अनुराग, आकर्षण या खिचाव होने के सुदीप्ति के सवाल पर निर्मला जैन ने कहा कि यदि आपके साथ कोई प्रतिभाशाली व्यक्तिव है तो उसके प्रति अनुराग होना स्वाभाविक है और यह एक मानव स्वभाव भी है। लेकिन अनुराग के भी स्तर होते हैं। इनका अपना एक दायरा होता है और दायरे में रहकर कोई भी अनुराग या दोस्ती आपके संबंधों में पूर्णता प्रदान करती है और तभी आपके संबंध स्थाई बनते हैं।
निर्मला जी ने कहा कि उनकी आत्मकथा ‘जमाने में हम’ न कोई किस्सा है न कोई किस्सागोई। जो सच है वही उन्होंने लोगों के सामने रखा है। आत्मकथा में सच्चाई के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि भीतर की ईमानदारी से भी हिम्मत आती है। इस मौके पर राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबन्ध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा कि लेखक और पाठक के बीच प्रकाशक एक महत्वपूर्ण कड़ी का काम करता है। इसी कड़ी में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित निर्मला जी की आत्मकथा ‘ज़माने में हम’ में कहीं न कहीं राजकमल प्रकाशन की यात्रा की झलकियाँ भी पाठकों को देखने को मिलेंगी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रेखा सेठी ने किया। इस अवसर पर नित्यानन्द तिवारी, विश्वनाथ त्रिपाठी, रामनिवास जाजू, पुरुषोत्तम गोयल, अनामिका, दिविक रमेश, नानकचंद, राष्ट्रीय नाट्य विदयालय के पूर्व निर्देशक देवेन्द्र राज अंकुर समेत कई महत्त्वपूर्ण व्यक्ति मौजूद थे।
किताब का विषय - 'जमाने में हम' किताब निर्मला जी ने पिछले साठ वर्षों के अपने बेहद सक्रिय अकादमिक और साहित्यिक जीवन को बहुत सहजता में उद्घाटित किया है। साथ ही, इसके बरक्स उनका अपना निजी पारिवारिक जीवन भी इसमें बहुत गाढ़े-गहरे रंगों में शुरू से अंत तक फैला हुआ है, रंग चाहे काला या सफ़ेद ही क्यों न हो...। यह किताब इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि इसमें पुरानी दिल्ली की गलियाँ, चौबारे, दुकानें हवेलियाँ अपने पुरे शानों शौकत में नजर आते हैं। एक तरह से यह दिल्ली की वो झलक हमारे सामने पेश करता है जिससे आज की नई पीढ़ी पुरी तरह अछूती है। यह किताब दिल्ली शहर के एक दस्तावेज के रूप में भी देखा जा सकता है। हिंदी के साहित्यक समाज के इतिहास की सामग्री इसमें भरपूर है। पुरानी दिल्ली के इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों के लिए भी इसमें काम की जानकारियाँ हैं।
प्रेस विज्ञप्ति
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