युवा लेखक एवं फिल्मकार पंकज दुबे का पत्रकारिता विश्वविद्यालय में व्याख्यान
भोपाल। 19 नवम्बर 2015 आज युवाओं को जीवन में कुछ नया करने के लिए सपने देखना चाहिए और उन सपनो को साकार करने के लिए रास्ते भी चुनना चाहिए। सिर्फ सपने देखने से मंजिल नहीं मिलती है। अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए रास्ते भी ढूँढ़ने होंगे और उसे पाने के लिए परिश्रम भी करना होगा। यह विचार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में युवा फिल्मकार एवं चर्चित बेस्ट सेलर उपन्यास ‘लूज़र कहीं का’ के लेखक पंकज दुबे ने व्यक्त किए। वे अपनी नई पुस्तक 'इश्कियापा' पर चर्चा के दौरान पत्रकारिता विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को सम्बोधित कर रहे थे।
श्री दुबे ने कहा कि वर्तमान में बेस्ट सेलर उपन्यासों पर फिल्में बन रही हैं। आज के दौर में लेखन और फिल्मों में वैसा विज़न नहीं दिखाई देता, जैसा होना चाहिए। हर फिल्म और पुस्तक के दर्षक और पाठक अलग-अलग होते हैं। प्रत्येक बेस्ट सेलर उपन्यास पर अच्छी फिल्म बन जाए ऐसा जरूरी नहीं है। उपन्यास को फिल्म का रूप देने के लिए उसे फिल्म की दृष्टि से देखना जरूरी है। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि हमारा भाग्य एक सिम कार्ड की तरह होता है जिसे हम अपनी मेहनत से एक्टिव करते हैं। मीडिया के जो विद्यार्थी फिल्म निर्माण में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं उन्हें पहले अपने कन्सेप्ट पर पाँच मिनट की एक फिल्म बनाना चाहिए। उस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने के उपरांत ही उसे सम्पूर्ण फिल्म की शक्ल देना चाहिए।
पंकज दुबे का प्रथम उपन्यास अंग्रेजी में ‘वाट अ लूज़र’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। जिसे हिन्दी में ‘लूज़र कहीं का’ शीर्षक से प्रकाशित किया गया। यह उपन्यास चर्चाओं में रहा। श्री दुबे शीघ्र इस पर फिल्म बनाने जा रहे हैं। पंकज दुबे का नया उपन्यास 'इश्कियापा' हाल ही में हिन्दी और अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ जिसे पाठकों द्वारा काफी सराहा जा रहा है। व्याख्यान के दौरान विश्विद्यालय के डीन अकादमिक डॉ. सचिद्दानंद जोशी, विभागाध्याक्ष, जनसम्पर्क, डॉ. पवित्र श्रीवास्तव एवं निदेशक प्रोडक्शन, श्री आशीष जोशी उपस्थित थे।
(डॉ. पवित्र श्रीवास्तव)
निदेशक, जनसंपर्क
प्रेस विज्ञप्ति
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