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24.10.20

नए कृषि क़ानून से 62 लाख करोड़ का कारोबार जाएगा अडानी-अंबानी की जेब में

 -चरण सिंह राजपूत-

किसान अपने खेत में ही बनकर रह जाएगा बंधुआ मजदूर


अपनी गलत नीतियों से देश को बेरोजगारी, महंगाई और अवसाद देने के बाद मोदी सरकार ने अब अपने आकाओं को खुश करने के लिए अन्नदाता को तबाह करने  की रणनीति बना ली है। नए कृषि कानून के तहत मोदी सरकार ने एक तरह से देश के शीर्षस्थ उद्योगपतियों को किसानों की फसल का फायदा लेने का  ठेका दे दिया है। जैसे अंग्रेजी शासन में किसानों पर अपनी सोच थोपकर फसल उगवाई जाती थी और उसे कम दामों पर खरीदकर मोटा मुनाफा कमाया जाता था। ठीक उसी प्रकार से इन नए कृषि कानून के चलते देश के पूंजपीति अपनी मर्जी की फसल किसानों से उगवाएंगे और उन्हें कम दाम पर बेचने के लिए मजबूर कर मोटा मुनाफा कमाएंगे। किसान हैं कि वे अपने ही खेत में बंधुआ बनकर रह जायेंगे।


इस नए कृषि कानून के खिलाफ देशभर में किसान सडक़ों और रेल की पटरियों पर जमे हुए हैं।  25-26 नवम्बर को भारत बन्द और दिल्ली घेराव का ऐलान भी  हो चुका है पर मोदी सरकार पर इन सबका कोई असर नहीं पड़ रहा है।

मोदी सरकार के छह वर्ष के कार्यकाल की समीक्षा करें तो यह पाएंगे कि किसान को बस ठगा ही गया है। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मित्रो अडानी और अंबारी को किसान के खेत से मोटा मुनाफा दिलवाने की जुगत पूरी तरह से भिड़ा दी है । कृषि ‘सुधार’ के नाम पर मोदी सरकार ये जो तीन कानून लाई है ये कानून उद्योगपतियों को किसान के खेत में पूरा हस्तक्षेप करने की अनुमति देते हैं।  कृषि वाणिज्य व्यापार में लाए गए ये बदलाव सीधे तौर पर भी 80 करोड़ लोगों को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाले हैं । हमें यह भी बात समझने की है कि इससे हर व्यक्ति प्रभावित होगा। क्योंकि खाना तो हर व्यक्ति खाता है।

मोदी सरकार की नीयत देखिए कि उसने बदलाव लाने का बहाना बनाकर यह अध्यादेश लाने के लिए 5 जून का दिन चुना। इस दिन तक देश में कोरोना की महामारी अपनी भयावहता का पूरा तांडव दिखा चुकी थी। देश में एक लाख से ज्यादा लोग अपनी जान से हाथ धो चुके हैं और 70 लाख से अधिक संक्रमित हो चुके हैं। देश कोरोना संक्रमण के मामले में दुनिया में दूसरे नम्बर पर है और मोदी सरकार आत्मनिर्भरता का राग अलाप रही है। लोग भी हैं जो मोदी की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ जा रहे हैं।

दिलचस्प बात यह है कि मोदी सरकार जिन किसानों को फायदा पहुंचाने की बात कर रही है, उनसे तो सरकार ने बात करनी भी मुनासिब नहीं समझी। हां किसान कानून बनाने के लिए पूंजपीतियों से बैठक जरूरत की। मतलब ये कानून पूंजपीतियों के हित में हैं। अब केंद्र सरकार मामला राज्यों पर छोडऩे की बात कर रही है पर अध्याधेश लाने से पहले राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कृषि विभाग और मंडी समितियों के मामले में आमूल चूल परिवर्तन करने के लिए किसी भी राज्य से कोई सलाहमशविरा नहीं किया। यह मोदी सरकार की तानाशाही और किसानों की जमीन हड़पने की नीति ही रही कि राज्यसभा में अल्पमत होने के बावजूद अध्यादेश पास कराने के लिए सरकार ने हर धोखाधड़ी, जैसे जबरदस्ती समय बढ़ाना, विपक्ष की विरोध में की गई चिल्लाहट को ‘ध्वनि मत’ बताना हथकंडे अपनाए।  

कृषि बाज़ार में पूंजी के इस तरह से और बेरोकटोक हमले के बहुत भयानक परिणाम होने वाले हैं। देश के किसानों में जो लघु एवं सीमांत किसान 80 फीसद हैं उनकी तबाही निश्चित है। ये छोटे किसान जोतों से बेदखल होकर बेरोजगारों की फौज में खड़े हुए पाए जाएंगे। मजबूरन इन्हें शहरों की ओर रुख करना पड़ेगा, जहां पर पहले ही रोजगार खत्म कर दिये गये हैं।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही संकट के दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्था कोरोना काल में बुरी तरह से चौपट हो चुकी है। उत्पादन हर क्षेत्र में 50 फीसद से भी नीचे स्तर पर है। देश की इस बर्बादी पर मोदी सरकार के दरबारियों की भूमिका निभा रहे  अर्थशास्त्रियों ने भी अपनी आंखें बंद कर रखी हैं। मोदी सरकार के आत्मनिर्भता के झांसे में आकर 41 करोड़ छोटे किसानों, छोटे कारोबारी, व्यापारी बेरोजग़ारी की भेंट चढ़ चुके हैं।
 देश के हालात देखिए कि जब कोरोना काल में देश में बड़े स्तर पर छंटनी चल रही हैं। काम कर रहे श्रमिकों का वेतन 50 फीसद तक कम कर दिया गया है। ऐसे में मुकेश अम्बानी की सम्पत्ति हर घंटे 90 करोड़ रुपये से बढ़ रही है। मतलब जनता की खून-पसीने कमाई को पूंजीपतियोंं पर लुटाई जा रही है।

मोदी सरकार किसानों को व्यापारी बनाने का नाम देकर पूंजीपतियों की मैनेजमेंट समिति, बड़े पूंजीपतियों को पूंजी निवेश और बेरोकटोक लाभ कमाने के अवसर प्रदान करने के लिए कृषि क्षेत्र का लगभग 62 लाख करोड़ का व्यापार सोने की तश्तरी में रखकर पूंजीपतियों को अर्पित कर रही है।

 मोदी सरकार का कहना है कि इन कानूनों से किसान राज्य की सीमा के अंदर या फिर राज्य से बाहर, देश के किसी भी हिस्से में अपनी उपज का व्यापार कर सकेंगे। तर्क दिया जा रहा है कि किसान मंडियों के अलावा व्यापार क्षेत्र में फार्मगेट, वेयर हाउस, कोल्डस्टोरेज, प्रोसेसिंग यूनिटों पर भी बिजनेस करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होंगे। बिचौलियों को दूर करने के लिए किसानों से प्रोसेसर्स, निर्यातकों, संगठित रिटेलरों का सीधा संबंध स्थापित करने की बात मोदी सरकार कर रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एमएसपी को खत्म न करने की बात कर रहे हैं पर बिल में यह बात मेंशन न होने की वजह से बाहर की मंडियों को फसल की कीमत तय करने की अनुमति देने पर किसान आशंकित हैं। मोदी सरकार के कार्यकाल की बात करें तो स्थिति साफ हो जाती है कि यह सरकार किसान, मजदूर और युवाओं का भविष्य दांव पर लगाकर कॉरपोरेट घरानों के लिए ही काम कर रही है। 

चाहे नोटबंदी का मामला हो या फिर कोरोना वायरस के बहाने किये गये लॉकडाउन का कॉरपोरेट घरानों ने भरपूर फायदा उठाया है। जहां नोटबंदी में इन घरानों ने अपने काले धान को सफेद में बदल लिया वहीं लॉकडाउन के बहाने बड़े स्तर पर छंटनी भी की। साथ ही बचे कर्मचारियों को नौकरी जाने का भय दिखाकर उनका भरपूर शोषण किया जा रहा है।  इन कॉरपोरेट घरानों का यही खेल अब किसानों के साथ भी खेले जाने की आशंका जताई जा रही है।

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