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23.10.20

जागरण ग्रुप के मालिकों द्वारा घोड़े की बला तबेले के सिर डालने का प्रयास!


बिगड़ती है जब किसी ज़ालिम की नीयत
नहीं काम आती दलील और हिक़मत।।

 
जागरण ग्रुप के मालिकों द्वारा घोड़े की बला तबेले के सिर डालने का प्रयास!
किसी शायर ने ठीक ही कहा है कि जब किसी ज़ालिम की नीयत बिगड़ती है तो फिर कोई भी दलील काम नहीं आती है। ठीक उसी तरह का हाल इस समय दैनिक जागरण ग्रुप कानपुर का है। मजीठिया वेतनमान मांगने पर बौखलाए इस ग्रुप ने अपने उन कर्मठ व परिश्रमी कर्मचारियों पर कुठाराघात शुरू कर दिया है जिनकी बदौलत आज ये अखबार पाठकों में अपनी पकड़ बना चुका है।


लेकिन उनका हक़ देने के बजाय उन्हें ऐन-केन प्रकारेण परेशान कर या तो नौकरी से निकाले जाने का उपक्रम जारी है अथवा दुर्भावना पूर्वक तबादला आदेश जारी कर नौकरी छोड़ने पर विवश किया जा रहा है। बाजार में तो इस अखबार के बारे में तरह-तरह के किस्से सुने जा रहे हैं, किसी का कहना है कि मजीठिया वेतनमान के थोकबंद प्रकरणों से घबराकर ये अखबार बेचने की कवायद शुरू हो गई है और इसी के चलते इस संस्थान से कर्मचारियों को अवैधानिक रूप से निकाला जा रहा है। वहीं यह खबर भी है कि छजलानी बंधु फिर से इस अखबार को खरीदने की तैयारी में हैं, जिन्होंने इस अखबार को सिर्फ इसलिए बेचा था कि उन्हें केन्द्र सरकार द्वारा लागू मजीठिया वेतनमान अपने कर्मचारियों को न देना पड़े और ये बला किसी दूसरे के सिर आ जाये और हुआ भी यही।

दैनिक जागरण ग्रुप ने नईदुनिया/नवदुनिया अखबार का टाइटल खरीद तो लिया पर उसे यह उम्मीद नहीं थी कि इस संस्थान के लगभग एक सैकड़ा कर्मचारी मजीठिया वेतनमान के लिए उसे लेबर कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक घसीटेंगे। लगभग दो-ढाई साल में अखबार प्रबंधन की कोर्ट दर कोर्ट उक्त वेतनमान बचाने की कवायद के चलते एड़ियां घिस गर्इं और प्रबंधन के दल्लों ने मालिकों को गुमराह कर अभी तक इसका खूब फायदा उठाया और संस्थान के माल पर भरपूर ऐश भी कर लिया। किसी ने किराये के मकान से अपना खुद का मकान खरीदा तो कोई दो पहिया वाहन से चार पहिया गाड़ी का मालिक बन गया। अब इस ग्रुप को समझ आ गया कि मजीठिया वेतनमान गले की हड्डी बन गया है जिसे न तो निगला जा सक रहा है और न ही उगला।

इसीलिए षड्यंत्र पूर्वक कर्मचारियों को उनका हक़ देने के बजाय उन्हें इस दौर में जबकि कोरोना महामारी के चलते हर व्यक्ति परेशान है, निकाला जा रहा है अथवा दुर्भावना पूर्वक स्थानांतरित किया जा रहा है, किन्तु शायद अखबार मालिक को यह पता नहीं कि अगर वह इस टाइटल को बेच भी दे तो लाइबिलिटी से बचा नहीं जा सकेगा।

Rajendra Mehta
Sr. Journalist
9893790025

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