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26.10.20

मोदी सरकार के खिलाफ भी क्रांति का बीज फूट रहा बिहार की धरती से

सी.एस. राजपूत

नई दिल्ली। बिहार हमेशा से ही बदलाव की धरती रही है। चाहे आजादी की लड़ाई रही हो, कांग्रेस के खिलाफ सोशलिस्टों की हुंकार रही हो, ईमरजेंसी के खिलाफ जेपी का फूंका गया बिगुल हो या फिर सामाजिक बदलाव की पुकार, हर मामले में बिहार की धरती से ही क्रांति का आगाज हुआ है। अब जब देश में अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई है। बेरोजगार युवाओं की फौज सडक़ों पर घूम रही है। काम धंधे सब चौपट हो गये हैं। श्रम कानून में संशोधन कर श्रमिकों को कॉरपोरेट घरानों के यहां बंधुआ मजदूर बनाने की तैयारी मोदी सरकार ने कर ली है। किसान कानून बनाकर किसान को उसके ही खेत में मजदूर बनाने का ठेका अडानी और अंबानी को दे दिया गया है। उद्योगपतियों को खाद्याान्न के स्टॉक में छूट देकर देश को ब्लैकमेल करने की छूट प्रधानमंत्री ने दी दी है। जब मोदी सरकार हर संवैधानिक तंत्र को बंधक बनाने पर उतारू है।


ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव में जो माहौल बनकर उभरा है इसे नीतीश सरकार के खिलाफ ही न माना जाए। बेरोजगारी पर फूट रहा युवाओं का गुस्सा मोदी सरकार के खिलाफ भी क्रांति का बीज है। बिहार के युवा नीतीश सरकार का ही विरोध नहीं कर रहे हैं वे एक तरह से प्रवासी मजदूरों की दुर्गति और बेरोजगारी मुद्दे पर मोदी सरकार को भी टारगेट बना रहे हैं।

बिहार चुनाव की स्थिति यह है फासीवादी ताकतों के खिलाफ हमेशा मुखर रहने वाले लालू प्रसाद के जेल में रहने के बावजूद उनका बेटा तेजस्वी यादव अकेला जदयू और भाजपा के शीर्षस्थ नेतृत्व पर भारी पड़ रहा है। तेजस्वी की ताकत बिहार के युवाओं का उनको मिल रहा समर्थन ही है। यही वजह है कि तेजस्वी यादव को घेरने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोक दी है। तेजस्वी यादव को रोकने के लिए बिहार में पीएम मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, योगी आदित्यनाथ, जेपी नड्डा समेत 20 स्टार प्रचारक बिहार के चुनावी समर में उतर चुके हैं। तेजस्वी यादव को घेरने के लिए भाजपा ने भले ही चक्रव्यहू की रचना कर दी पर उसमें तेजस्वी के फंसने को लेकर खुद भाजपा के सूरमा असमंजस में देखे जा रहे हैं।
बिहार के विधानसभा क्षेत्रों में जिस तरह से भाजपा और जदयू के उम्मीदवारों चेहरे फीके पड़े हैं। वे जिस तरह से दौड़ाये जा रहे हैं। यह बिहार की जनता का नीतीश कुमार के खिलाफ ही गुस्सा नहीं है यह मोदी सरकार की तानाशाही के खिलाफ बन रहा माहौल भी है।

बिहार में लोगों के गुस्से का आलम यह है कि चुनाव प्रचार के शुरुआत में ही सत्तारुढ़ पार्टी के 13 विधायकों के साथ ही आधा दर्जन सांसदों, केंद्रीय मंत्री आरके सिंह, गिरिराज सिंह के अलावा बिहार के मंत्री कृष्णानंद राय, हजारी और विजय सिन्हा तक को जनता के कोप का सामना करना पड़ा। उनकी गाडिय़ों को तोड़ दिया गया। उन पर पत्थर बरसाये गये। मंत्रियों पर गोबर तक फेंक दिया गया। बिहार विधानसभा चुनाव में अब तक  22 से अधिक उम्मीदवारों को जनता ने दौड़ा दिया है।  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाओं में भी जनता का आक्रोश देखने में मिला है। ‘योगी वापस जाओ’ के नारों से बिहार में उनका स्वागत किया गया। खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पलटू राम की संज्ञा देकर उनका खुला विरोध हो रहा है।

इसे भाजपा का अहंकार ही कहा  जाएगा कि उसे महाराष्ट्र में भाजपा ने मुंह की खाई। दिल्ली में केजरीवाल के सामने उसके सभी हथियार बेकार साबित हुए। राजस्थान में उसका हर पाशा उल्टा पड़ा। हरियाणा में किसी तरह से इज्जत बचाई। मजदूर से लेकर किसान और युवा तक सडक़ों पर आंदोलन करते रहे पर सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। मोदी सरकार देश के शीर्षस्थ पूंजपीतियों के लिए देश को बेचने पर उतारू हो गई। हर सरकारी विभाग का निजीकरण करने में लगी है। निजी कंपनियों पर चल रही बेतहाशा छंटनी पर चुप्पी साध रखी है। स्कूलों में बिना पढ़ाए अभिभावकों से फीस लेने पर सरकार मौन धारण किये हुए है। ऐसे में बिहार की धरती पर भाजपा को असली विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

भले ही भाजपा ने एक रणनीति के तहत पासवान के निधन के बाद चिराग पासवान को दलितों के वोट काटने को लगा दिया हो पर राष्ट्रीय स्तर पर दलितों के उत्पीडऩ के चलते बिहार का दलित वर्ग न केवल भाजपा बल्कि लोजपा से भी नाराज है। ऐसे ही भाजपा ने मुस्लिम वर्ग के वोट करने के लिए असदुद्दीन ओवैसी को लगाया है पर बिहार के मुस्लिम ओवैसी के झांसे में नहीं आने वाले हैं। यह बिहार की जनता ही है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी थी।

यही वजह है कि बिहार के पिछड़े और दलित नेता बड़े गर्व के साथ कहते हैं कि यह जयप्रकाश नारायण, कर्पूरी ठाकुर और जगदेव प्रसाद की धरती है और हम उसी विचारधारा के हैं। तेजस्वी यादव का प्लस प्वाइंट यह भी है कि लालू यादव के अलावा बिहार के सभी स्थापित दलित-पिछड़े नेता आज उन धाराओं के साथ मिल गए हैं, जिनका दूर-दूर तक सामाजिक न्याय धर्मनिरपेक्षता से नाता नहीं रहा है। नीतीश कुमार, राम विलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा मोदी सरकार का हिस्सा रहे हैं। ऐसे में बिहार की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा का फायदा तेजस्वी यादव को मिलता दिखाई दे रहा है। यदि बिहार में बदलाव होता है तो बिहार की धरती से ही मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनने बनेगा। 

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