Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

13.10.20

एनडीटीवी के मालिक प्रणय राय को एक पत्र

आदरणीय प्रणय राय साहब,

सुना कि टीआरपी की कपड़ाफाड़ लड़ाई के बीच एनडीटीवी भी टीआरपी चैंपियन होने का दावा ठोंक रहा है। चूंकि आप मेरे पूर्व नियोक्ता हैं और इसलिए आपके चैनल से मेरी सहानुभूति भी है, इसके बावजूद जब से यह सुना है, तब से कन्फ्यूज हो रहा हूं कि इस दावे पर हंसू या रोऊँ? जब हंसी आती है, तो सोचता हूं कि शायद काका हाथरसी भी इससे बढ़िया हास्य नहीं लिख सकते थे। हो सकता है कि शरद जोशी या श्रीलाल शुक्ल होते, तो शायद इसपर एक ठोस व्यंग्य लिख पाते।


डॉक्टर साहब, आप यह मत भूलिए कि जिन लोगों ने आपके चैनल को मान सम्मान दिलाया और इसे अपने कंधों पर थाम रखा था, उनमें से ज़्यादातर या तो इसे काफी पहले ही छोड़ चुके हैं अथवा अपने दत्तक बंगाली पुत्रों और दामादों के फेर में फंसकर काफी पहले ही आप उन्हें निकाल चुके हैं। अब आप अपने उन बेटों-दामादों के लिए केवल पुरस्कार खरीदिए, लेकिन आपका चैनल कोई देखेगा नहीं।

-एक तो आपकी फर्जी समाचार बुद्धि, जिसमें आप जनपक्षधरता का ढोंग भी कॉरपोरेट और पावरफुल लोगों के इशारे पर उनकी सुविधाओं और हितों को ध्यान में रखते हुए ही रचते हैं,


-दूसरा, आपका खास राजनीतिक धड़े का एजेंट होना और पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर झूठे-सच्चे नैरेटिव गढ़ते हुए देश पर उसे थोपने के प्रयास करना,


-तीसरा, कुछ खास नेताओं और नौकरशाहों को ऑब्लाइज करने के लिए उनके नालायक बेटों और खाली दिमाग खूबसूरत बेटियों को मोटी-मोटी पगार पर अपने यहां भर लेना और उन्हें अपने असली कर्मयोगियों के माथे पर बिठा देना, 


-चौथा, यह सोचना कि आप अपने नालायक दत्तक पुत्रों और दामादों के लिए कुछ धड़कते हुए पुरस्कार खरीद लेंगे, तो पब्लिक चमत्कृत होकर आपका चैनल देखने लगेगी, 


और 


-पांचवां, मरियल और निस्तेज तरीके से आपका चैनल चलाना - आपको ले डूबा।

प्रणय राय साहब, आप तो जानते हैं कि मैं आपकी बहुत इज़्ज़त करता हूं, और कड़वे वचन इसलिए नहीं बोल रहा कि आपका अनादर करना है या अपने किसी आग्रह या दुराग्रह के कारण मीडिया में आपके वास्तविक योगदानों को भी खारिज कर देना है, बल्कि इसलिए बोल रहा हूँ कि अब तक आप गलत राह पर इतना आगे बढ़ चुके हैं कि अब आप पर मीठे वचनों का असर नहीं होगा। अब आपको एक ऐसे निंदक की सख्त ज़रूरत है, जिसे मेरे आदर्श बाबा कबीरदास ने लोगों को अपने करीब बिठाकर रखने को कहा है।

तो डॉक्टर साहब, ज़रा दिल पर हाथ रखकर गंभीरता से सोचिए न, कि कोई आपका चैनल क्यों देखेगा? क्या इसलिए कि आप एक ऐसे परिवार के करीब हैं, जिससे यह देश कब का ऊब चुका है? अरे डॉक्साब, आप इतना बड़ा मीडिया हाउस चलाते हैं, लेकिन समय की नब्ज आपको मालूम ही नहीं है। उस परिवार से तो "गुलाम" जैसे गुलाम भी इतने ऊब चुके हैं कि अब "आज़ाद" होने के लिए फड़फड़ा रहे हैं। फिर आपकी इस श्रद्धा-भक्ति से आपका चैनल चलेगा?

डॉक्साब, क्या यह सच नहीं है कि आपने उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने का ठेका ले रखा है, जिसे यह देश इस पद के लिए कभी स्वीकार नहीं करने वाला? उसे तो देवेगौड़ा या गुजराल की तरह भी कोई राजनीतिक दल आगे नहीं करने वाला। फिर आप जनभावना के विपरीत एक ऐसा ठेका लेकर क्यों बैठे हैं, जो वास्तव में आपका या किसी मीडिया हाउस का काम ही नहीं है? कौन प्रधानमंत्री बनेगा, किसकी सरकार बनेगी, यह निर्धारित करना लोकतंत्र में जनता की ज़िम्मेदारी है, किसी मीडिया हाउस की नहीं। फिर, आप कुछ दिन अनबायस्ड होकर चैनल नहीं चला सकते क्या?

डॉक्टर साहब, आपके चैनल में बहुत सारी खबरें और ढेर सारे कार्यक्रम मैनेज्ड होकर तैयार किये जाते हैं। अब आज उन सबके उदाहरण क्या गिनाऊँ? आपको तो सब पता ही है। इसलिए, कृपया अपने लोगों से कहिए कि मेरे खरीदे हुए पुरस्कारों पर उछलना बंद करो और अगर तुम्हारे भीतर कोई मरा हुआ पत्रकार है तो उसे पुनर्जीवित करो, अन्यथा बाहर का रास्ता नापो। देखिए न, आपका चैनल तुरंत बेहतर होने लगेगा।

डॉक्टर साहब, ज़रा दिल पर हाथ रखिए और पूछिए खुद से कि आज आपके पास ढंग के कितने एंकर बचे हैं? ऐसे कितने रिपोर्टर बचे हैं जो कोई महत्वपूर्ण खबर ब्रेक कर सकते हैं, या कोई बड़ी एक्सक्लूसिव कर सकते हैं या थोड़ी सी इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग भी कर सकें? और तो और, आज आपके पास ढंग के स्क्रिप्ट राइटर तक नहीं बचे हैं। फर्जी भाषा और घिसे हुए न्यूज राइटर्स, जिनकी कलम की स्याही और जिस्म का लहू तक अपनी सुविधा के खोल में सिमटकर सूख चुका है, उनके सहारे आप "मुगल-ए-आज़म" गढ़ने का ख्वाब देख रहे हैं क्या?

अरे डॉक्टर साहब, आपके यहाँ तो साधारण से साधारण खबरें भी पहले नहीं चलती। जब सबके यहां चल जाती हैं, तब आपके यहां ब्रेकिंग न्यूज़ की पट्टी तानी जाती है। ऐसे तो आज देश में हज़ारों वेबसाइटें भी चल रही हैं, जो अन्य जगहों पर प्रसारित सामग्रियों को कॉपी पेस्ट करके या अपनी भाषा में पोस्ट करके थोड़े बहुत व्यूज़ बटोर ही लेती हैं। आखिर उन वेबसाइटों और आपके चैनल में अंतर क्या है, जब आपको हर खबर सबसे बाद ही चलाना है तो?

डॉक्टर साहब, एक पुरानी कहावत है कि गधों को घिसकर घोड़ा नहीं बनाया जा सकता। यह बात राजनीति से लेकर मीडिया तक समाज के हर क्षेत्र में लागू होती है। इसे आप जितनी जल्दी समझ लें, उतना बेहतर। वरना जब आपके चैनल पर सियासी प्रवचन के कार्यक्रम चलाए जाते हैं, तो लोग आपकी सोच, बुद्धि और चेतना का उपहास करते हैं।

डॉक्टर साहब, एक और कड़वी सच्चाई बता रहा हूँ आज, कि इस दुनिया में रोने वाले नहीं, गाने वाले राज करते हैं। इसलिए रोना बंद कीजिए कि टीआरपी में आपके साथ कोई धोखाधड़ी हो रही है। गाना शुरू कीजिए वह गीत, जो समय की मांग है, जो देश की ज़रूरत है, जिसे सुनने के लिए लोग तरस रहे हैं और न्यूज चैनलों पर आज उन्हें वह सुनने को मिल नहीं रहा।

डॉक्टर साहब, हमारा एक उसूल रहा है, जिसके मुताबिक हमें टीआरपी के पीछे नहीं जाना, टीआरपी हमारे पीछे आनी चाहिए। देखा जाए तो आपके शिष्य अर्णब ने भी कुछ ऐसा खेल रचा है कि आज टीआरपी स्वयं उसके पीछे आ गई है, इसके बावजूद कि लोग उसके चीखने-चिल्लाने और तू-तड़ाक वाली भाषा को पसंद नहीं कर रहे। मौजूदा मीडिया संस्थानों से गुस्साए लोगों को जो चाहिए, अपनी तमाम कमियों के बावजूद अगर कुछ मात्रा में अर्णब उन्हें दे पा रहा है, तभी लोग उसे देख रहे हैं।

मेरा मानना है कि अपनी तमाम कमियों के बावजूद आप एक परिष्कृत व्यक्तित्व हैं, इसलिए बेशक परिष्कृत ढंग से चैनल चलाइए, लोग उसे भी पसंद करेंगे और वास्तव में ज़्यादा पसंद करेंगे, लेकिन अपने चैनल को टीआरपी नहीं मिलने के पीछे कोई साज़िश या घोटाला देखने से पहले इतना ज़रूर याद रखिए कि ऐसे ही जब कोई राजनीतिक पार्टी हारती है तो आजकल ईवीएम हैक होने के आरोप लगाती है, लेकिन सच क्या होता है, यह तो आप भी बखूबी जानते ही हैं।

इसलिए अपने खरीदे हुए पुरस्कारों पर इतराने वाले फ़र्ज़ी दामादों से मुक्ति पाते हुए हमने जो कमियां बताई हैं, उन्हें दूर करने के बारे में विचार कीजिए। ढंग का संपादक रखिए और अच्छे तेज़-तर्रार पत्रकारों को हायर कीजिए। कहेंगे तो चैनल को रिवाइव करने के लिए मुफ्त का ज्ञान भी दे दूंगा, क्योंकि न तो मेरा कोई स्वार्थ है, न ही मुझे किसी से राग-द्वेष है। बस इतना चाहता हूं कि लोकतंत्र के सभी अंग ढंग से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करें और चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया की गरिमा भी बची रहे।

जिस दिन आपमें इतने सारे कड़वे घूंट पीकर उसपर अमल करने की शक्ति आ जाएगी, उस दिन से केवल छह महीने लगेंगे, आपका चैनल फिर से बुलंदियों पर आ सकता है। हालांकि जानता हूं कि आप इसे पी नहीं पाएंगे। फिर भी शुभकामनाएं।

आपका शुभचिंतक
अभिरंजन कुमार

मेरे हिसाब से शुभचिंतक का काम गलत का समर्थन करना नहीं, बल्कि आईना लेकर सामने बैठ जाना है। धन्यवाद।

#सत्य_नहीं_होता_सुपाच्य

Abhiranjan Kumar की कलम से।

No comments: