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2.10.20

अभिव्यक्ति की आज़ादी और संघी-भाजपाइयों की सक्रियता

राजकुमार सोनी

जब अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर संघी और भाजपाई किसी आंदोलन का समर्थन करने लगे तो समझिए दाल में काला नहीं...पूरी दाल काली है. वैसे छत्तीसगढ़ में इन दिनों हत्यारी विचारधारा से जुड़े हुए लंपट एक बार फिर जबरदस्त ढंग से सक्रिय हो गए हैं. कोई इसलिए सक्रिय है कि उसे चुनाव लड़ना है. किसी को मरती हुई वकालत में प्राण फूंकना है. किसी को संगठन चलाना है तो किसी को पोर्टल.


वैसे पोर्टल से याद आया कि हत्या को हलाल में बदल देने की कला से वाकिफ कुछ कलाबाज लंपटों को 20-20 हजार रुपए का फायनेंस ( पोर्टल बनाने के लिए ) भी कर रहे हैं. यह फायनेंस इसलिए भी हो रहा है क्योंकि आईटीसेल ने यह तो सीखा ही दिया है कि चुनाव कचरा पट्टी के सहयोग के बिना नहीं जीता जा सकता है.

और हां...कुछ लोग इसलिए भी सक्रिय है कि वे शुद्ध रुप से पवित्र पत्रकार हैं. जर्नलिज्म उनके खून में भरा हुआ है. वे कभी सरकारी सहायता नहीं लेते हैं. भाजपा के शासनकाल में एनजीओ के जरिए लाखों रुपए का चंदा वसूलने वाले ये लोग समय-समय पर बापू ( बोले तो महात्मा गांधी ) का पुण्य स्मरण भी करते रहते हैं. ये लोग हर किसी को पाखंड से भरी नैतिकता का पाठ पढ़ाते रहते हैं. ये अपने फेसबुक पर बैठकर इंसानियत का मंजन घिसते रहते हैं.

मुक्तिबोध कहा करते थे- पार्टनर... तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है ?

अरे... भाइयों... अब तो बता दो पॉलिटिक्स क्या है?

नहीं भी बताओगे तो कोई बात नहीं...जिस विचारधारा के लोग आपके साथ हैं... उन्हें देखकर ही समझा जा सकता है कि माजरा क्या है मसला क्या है ?

हे आंदोलनकारियों...
सामाजिक कार्यकर्ताओं
शुद्ध देसी रोमांस करने वाले पत्रकारों...

अब आप मेरे बारे में भी अर्नगल बात करने
आयं-बाय-सांय बकने और दुषप्रचार करने के लिए स्वतंत्र है.

राजकुमार सोनी
2 अक्टूबर 2020

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