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10.7.08

तेरी पतली कमर के क्या कहने.

ये ग़ज़ल उपरोक्त तस्वीर से वाबस्ता है हज़्रात मुलाहज़ा फ़र्मायें और अपनी नवाज़िश से ग़रीब को मालामाल करदे। आमीन। इस तस्वीर के स्त्रोत यहाँ हैं।http://www.tarakash.com/special/holi-special-hindi-bloggers.html


गज़ल
तेरी शातिर नज़र के क्या कहने.
तेरी पतली कमर के क्या कहने.

थाह पाई कहाँ ? जमाने ने ,
तेरी गहरी नहर के क्या कहने.

कितने जलवाये, कितने कटवाये,
तेरे ख़ौफ़ो-ख़तर के क्या कहने.

चीखें अब भी सुनाई देती हैं,
तेरे क़ातिल शहर के क्या कहने.

रुहें अब भी सवाल करती हैं,
तेरे पिछले ग़दर के क्या कहने.

मैं भी तेरी ज़बान बोले हूँ ,
मुझ पे तेरी असर के क्या कहने.

डॉ.सुभाष भदौरिया










2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाईसाहब,आपका क्या कहना.... तुस्सी ग्रेट हो पा’जी.....सिंपली ग्रेट.....

Anonymous said...

भदोरिया जी,
ये क्या बिन होली के होली, और बेचारे संजय बेगानी के रस में डुबे भडासी. बढिया हैं. और कमाल का है. होली का खुमार अभी तक उतरा नहीं जो संजय जी के पीछे पर गए ;-)
जय जय भड़ास