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29.11.10

पत्रकारों के वेश में छिपे दलाल:::: बड़ा नंगा बनाम सड़कछाप चोरकट


बीच वाला  कहो या दलाल या फिर पहुँच  वाले लोग ( सिफारिशी ) , इन लोगों को कोई नाम दो , ये लोग हमेशा रहें है और रहेंगे , नेताओं , पत्रकारों  या सम्पर्क सूत्रों के रूप में , काम दलाली का रहता है बस स्वरूप बदल जाता है , जब कोई छोटा फसता है तो उसे नैतिकता का पाठ पढ़ा कर दंड दिला दिया जाता है और जब बड़ा फसता है तो अपनी ताकत के बल पर हाय तोबा मचा कर लोगो को या कानून को डराने- धमकाने क़ि कोशिश की जाती है .


   

इस लिए कोई हो हल्ला मचाने  से कुछ  मिलने वाला नहीं है , बस अख्बारी  सुर्खिया या टी वी की हेड लाईन्स ही दिख कर सब ख़त्म हो जायेगा .दलाल हर समाज से आते है अगर कुछ पत्रकार दलाली करते पकडे गयें  है पकडे जा रहे है , तो इसमें  आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं है. 

ये बात क़िस  से छिपी है क़ि स्वनामधन्य  बडे , खास 

कर अंग्रेजी अख़बार और टेलीविजन  के तथाकथित  

बडे लोग कुछ खास घरानों के लिए काम करते हैं , साथ 

ही सरकारों  के लोग अपने अपने हितों  से जुड़ी बातें 

प्रचारित करवाने में इन तथाकथित बड़ों का खुले आम 

इस्तेमाल करते है और बदले में मनचाहा सुविधा शुल्क 

देने  में पीछे नहीं रहते .

कारपोरेट  घराने हों या बडे लोग अपने हितों की रक्षा के लिए क्या क्या नही करते , इसे सब कोई जानता है , वरना मुकेश अम्बानी को २/३  पत्रकारों को अपने गोपनीय निजी  पार्टी में बुलाने की क्या ज़रूरत ठी , जब क़ि बाकी पत्रकारों से इस अन्तरंग  पार्टी    के होने की बात छिपाई गयी .

ये सब पैसे का खेल है , जहाँ  सुरा , सुन्दरी और नोटों की गड्डियों से ले कर सब चलता है , बस काम होना चाहिए .कोई अपने को कितना ही दूध का धुला बताये ,हम्माम  में सब नंगे हैं .
-- जारी 

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