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11.3.08

पिस्तौल वाला संपादक, EDITOR WITH PISTOL

((मुझे एक मेल मिली है, उसे डाल रहा हूँ. आपकी राय चाहिऐ.....यशवंत))
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vedratna shukla
अमर उजाला, अलीगढ़ के बारे में खबर मिली है कि वहां अब पिस्तौल की नोक पर नौकरी कराई जा रही है। दिलचस्प फसाने ने जन्म इसलिए लिया कि वहां बतौर समाचार संपादक तैनात गीतेश्वर प्रसाद सिंह ने एक बिल्कुल नई नवेली पिस्तौल खरीद ली है। जब संपादक के हाथ में कलम की जगह पिस्तौल हो तो डर का माहौल व्याप्त होना लाजिमी है। वहां के होनहार कॉपी संपादकों के बीच एक नारा आम हो गया है ‘डेडलाइन इज लाइफ लाइन’। रिपोर्टरों की हालत तो और भी...। वो अब दया के पात्र हो गये हैं।

दरअसल गीतेश्वर जी रातभर डेस्क का काम देखते हैं, मेहनती काफी हैं। खबर है कि एक-एक खबर पर माथा भिड़ाते हैं और पेज ले-आउट से लेकर मुकदमे तक की चिंता करते हैं। इतनी मानसिक उलझन के बाद कोई चार बजे भोर में घर पहुंचते हैं। उनकी भी हालत कुछ ठीक नहीं है।

उनकी इसी खराब हालत को देखकर अभी कुछ महीने पूर्व तक वहां तैनात एक रिपोर्टर ने कविता लिखी... अब नहीं भाता नयन को भोर का तारा कोई, जिंदगी में सांझ मेरी इस कदर शामिल हुई

खैर, गीतेश जी प्रात: चार बजे घर पहुंचने के बाद सुबह दस बजे ही रिपोर्टिंग कार्यालय में मीटिंग लेने पहुंच जाते हैं। साथ होती है उनके वही नई-नवेली पिस्तौल। कमबख्त पिस्तौल कमर से नीचे झांकती रहती है और लोगों को धमकाती रहती है। गीतेशजी की लाल-लाल आंखें और भी भयावह दृश्य का निर्माण करती हैं। कुल मिलाकर कब दगा-दगी हो जाए कहा नहीं जा सकता।
vedratna shukla
ved_baba@yahoo.com

4 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दादा,क्या करा जाए सिंह साहब को ए.के.-४७ तो मिल नहीं सकती तो बेचारे पिस्तौल से ही मन खुश कर लेते होंगे । अब जरा जान में जान आयी कि कम से कम कलम के सिपाही पिस्तौल भी उठा सकते हैं ये बात हम भारतीयों के क्रोमोसोम्स में है । सिंह साहब जब जरूरत पड़े तो चलाने से चूकियेगा मत और अब भ्रष्ट लोग संपादक को मात्र कागज का गोला नहीं समझेंगे इस बात से थोड़ी उनकी भी चिरी रहेगी । संपादक भी आम शहरी की तरह असुरक्षित महसूस करने पर पिस्तौल रखे यह तो अधिकार संविधान ने दिया है तनिक भी शोचनीय नहीं है....

आलोक सिंह रघुंवंशी said...

पिस्तौल रखना बुरी बात नहीं है। कलम के धनी होने का यह मतलब नहीं है कि हम हथियार नहीं रख सकते हैं। उसे हर समय जान का खतरा बना रहता है।

SHEHZAD AHMED said...

Sukhla ji aapne editor sahab ki pistoy ka jo dard baya kiya hai vakai usme un sabhi logo ke dilo ki baat ko jahir kar diya hai jo aysa kehne se jhigakte The aapka apna shehzad pandit meerut from dla

Unknown said...

pistaul to sahi hai yshvnt bhaee...pta kro chlti kb aur kis pr hai....yhi maujoon hai...yhi mhtvpurn hai....hm bhi sans thamkr baithe hai....guru jra pta krna...