भड़ास की सदस्य संख्या आज 250 पहुंच गई। इस मौके पर सभी नए पुराने भड़ासियों को बधाई।
नए भड़ासियों से आग्रह, अनुरोध, निवेदन और आह्वान है कि वे लिखना शुरू कर दें, लगातार, रोज रोज। अपना गला खंखारिये, सुर ताल खींचिए और उगल दीजिए पतले या मोटे राग में। इन 250 लोगों में से 100 लोग भी रेगुलर नहीं लिखते, ये ठीक बात नहीं है। भड़ास की ये सदस्य संख्या सिर्फ ताकत दिखाने के लिए, बौद्धिकों पर बाहुबल आजमाने के लिए नहीं होनी चाहिए बल्कि वाचा फोड़ने, लिखने, पढ़ने, बताने, सुनाने के लिए होना चाहिए। हम हिंदी पट्टी वालों के पास दुखों सुखों की पूरी गठरी भरी पड़ी है जिसे हमें एक एक कर खोलना चाहिए। बिना झिझक, बिना शरम।
आप यकीं मानिए, आप बेहद काबिल लोगों में से हो, पर आप सिर्फ हिंदी जानने के कारण थोड़े डिप्रेस्ड, थोड़े दबे, थोड़े कुचले, थोड़े कुंठित, थोड़े इंट्रोवर्ट, थोड़े देसज से लगते दिखते या महसूस करते हैं। ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए। आप हम पुराने भड़ासियों को देखिए, बेशरमी से अपनी बात कहते हैं और बताते हैं दुनिया वालों को कि भाई लोगों, दरअसल ये दुनिया ये देस तुम्हारा नहीं बल्कि असल में हम देसी और देसज लोगों का ही है। तो मैकाले की औलादों, तुम अपने पर इतराना बंद कर दो और हम देसज लोगों के लिए सफलता के दरवाजे पर दरबान बनकर मत खड़े होओ वरना हमारे ओज ताकत और उर्जा से तुम मूर्छित हो सकते हो।
इन बातों के साथ मैं भड़ास के मुख्य संरक्षक हरे प्रकाश जी और माडरेटर डा. रूपेश से अनुरोध करूंगा कि वो 250 भड़ासी होने के मौके पर सभी भड़ासियों को अपनी तरफ से साधुवाद, दिशा निर्देश, गाइडेंस, लाइन लेंथ प्रदान करने की कृपा करें।
कविराज नीरव जी की कविताओं की प्रशंसा किए बिना मैं नहीं रह पा रहा हूं। उम्मीद है कि वे अपना प्यार इसी तरह हम भड़ासियों पर लुटाते रहेंगे। पंकज पराशर जी के इंडिया टुडे में मधुसूदन आनंद पर लिखी रिपोर्ट को मुंबई में मैंने रेलवे स्टेशन पर पढ़ा। उन्हें दिल से बधाई, इतना शानदार लिखे के लिए। पर पंकज भाई की भड़ास पर मौजूदगी इन दिनों दिख नहीं रही है। ये वो लोग हैं जो हिंदी में सही मायने में काम कर रहे हैं और नई पीढ़ी को इन दिल्ली वाले दिल वाले मजबूत पैरों वाले हिंदी वाले भाइयों से बड़ी उम्मीदे हैं।
रक्षंदा की अपील पर हम सभी जरूर ध्यान देंगे। अपनी बात सुनाने पढ़ाने के लिए गाली कितनी महत्वपूर्ण है, ये बहस का विषय नहीं है लेकिन हां, अगर आपका कंटेंट, विषय जोरदार है तो उसमें गाली न भी होगी तो चलेगा। और अगर लचर कंटेंट को गालियों के साथ परोसा जाए तो वो मस्तराम कैटगरी का लेखन बन जाता है।
दरअसल ये पूरा मामला ही दुधारी तलवार की तरह है। अगर आप तेवर में लिखते हुए गाली दे जाते हैं तो उसे दिल से नहीं लेना चाहिए। और लिखे में जबरन गाली घुसाते हैं तो वो गले के नीचे नहीं उतर पाता। मनीष के लेखन में मिट्टी की असली खुशबू आती है, वो खुशबू जिसमें गालियां भी हैं और गीत भी। तो हम क्यों चाहते हैं कि हम सिर्फ गीत सुनें, गालियां न सुनाई पड़ें। अगर हम इसी समाज के पार्ट हैं तो हमें इस समाज को संपूर्णता में लेना चाहिए।
मनीष ने कभी किसी छिछले मुद्दों या विषयों पर गालियां नहीं लिखी हैं। ये मेरा निजी विचार है। लेकिन मैं यह शिद्दत से महसूस करता हूं कि एक खास मानसिक स्तर पर पहुंचने के बाद गालियों को पचाना हर एक के बस की बात नहीं है। ये हमारे सौंदर्य बोध में कंकड़ की तरह जाकर फंस जाता है। तो इस गंभीर विषय पर मैं चाहूंगा कि जो भड़ास संचालक मंडल के बाकी साथी हैं, वो जरूर अपने विचार प्रकट करें। लेकिन ये तो तय है कि जब तक भड़ास रहेगा, इस पर गालियां होने या न होने को लेकर बहस चलती रहेगी।
कई बार ये हो सकता है कि आपके मुताबिक भड़ास न दिखे, लेकिन इसे अपने मुताबिक बनाने के लिए आपको लगातार सक्रिय रहना पड़ेगा। यही कम्युनिटी ब्लाग की सच्चाई है। मैं ढेर सारी चीजें भड़ास पर पसंद नहीं करता लेकिन मैं उस पर ऐतराज भी नहीं जताता क्योंकि भड़ास किसी यशवंत का नहीं बल्कि इससे जुड़े 250 लोगों का ब्लाग है। बाकी फिर कभी ...
जय भड़ास
यशवंत
1.4.08
हम 250 भड़ासीः नए लोग बोलें, थोड़ा मुंह तो खोलें
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3 comments:
दादा,बंदा हाजिर है उन बच्चों को कंधे पर बैठाने,कान मे सुस्सू कराने,उंगली पकड़ कर चलना सिखाने के लिये जो अभी भड़ास में ताज़े-ताज़े पैदा हुए हैं। जब देखो तब ही तैयार खड़े रहते हैं इस बात के लिये कि कब मौका लगे और किससे बड़े बन जाएं तो इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता है.......
ही ही ही...खिसिर..खिसिर...
yashvnt bhaee jan...yh chinta nhi jshn ka vkt hai....
sahmti-asahmati to khair jivn bhr lgi hi rhegi...hm antim nhi hain...ladaee jari rhegi...
bhadas ke sabhi sathi bahut samjhdar hain , unhe kisi nirdesh ki jroort hi nhi, jo chup hain...ve to aur smajhdar hain....jb bolenge, dil kholenge....sbko badhaee.
जश्न मनाने का वक्त है हरे भैया ,दादा से टेम लो,हम आज पहुँच जाते हैं फ़िर मिल बैठेंगे सब और यूं ही जश्न मनाते रहेंगे.
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