कथा चल रही थी बाबा ने कहा माया त्याग दो संसार के चक्करों से मुक्त हो जवोए यही ओ माया है जिसमे हम अपने इस 'बड़े भाग्य मानुष तन' को बर्बाद करते जा रहे हैं। आप ही सोचो क्या करोगे इस माया का जिसमे तुम्हे भगवान् का ध्यान ही न हो. तुम कभी पापा कभी मम्मी तो कभी चाचा के ही जंजाल में फंसे रह जावोगे. बाबा जी की बात को ध्यान से एक श्रोता सुन रहा था उसने वहीं से खड़े होकर आवाज़ लगाई बाबा जी इस माया का हम क्या करें. तभी बाबा के एक भक्त ने स्टेज पर खड़े होकर जवाब दिया वत्स इतना बड़ा हमने पंडाल लगा रखा है इसका लाखों का खर्चा है इसीलिये हर पोल के तरफ़ एक दान पत्र की भी व्यस्था है. दिल खोलकर माया त्यागो ये पत्र उसी के लिए हैं. ये मजाक नही हकीकत है जिसपर हमें कुछ करने की ज़रूरत है. आप ही सोचो वो कौन सा भगवान् है जिसे पैसे की ज़रूरत है. जो इस्वर आप में है उसकी तो हम पूजा करते नही. हाँ लोगों से इधर उधर दौड़कर ये ज़रूर पूछते रहते हैं भगवन कैसे मिलेगा. बाबा जी का भव्य पंडाल जो लगता है उसका खर्चा हर दिन लाखों में आता है जिसे आप स्वयं देते हैं. अगर यही पैसा आप अपने उत्थान में सकारात्मक ढंग से लगायें तो आप अपने साथ दूसरों की भी मदद कर सकते हैं. मुझे लगता है रामराज्य ऐसे ही आयेगा न की बाबा जी के चक्कर लगाने से.
जय श्री राम राम राज्य से
अमित द्विवेदी
11.7.08
कुछ बातें रामराज्य से
Labels: एक पहल, राम राज्य से
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
भाई द्विवेदीजी , पिस्से (माया) की जरूरत भगवान को नही सै, पर ये जो बाबा मलंग उसके ठेकेदार हो राखे सै , उनको ज्यादा सै ! भाई इनके पेट ना भरते इतना माल खींचने के बाद भी !
पर इनका क्या दोष ? जब देने वाले बेवकूफ तैयार है तो ! ये सारा भय का गणित है ! यानि ये लोग भय बेचते है और जिसके पास माल आ जाता है तो उसे सबसे ज्यादा भय लगता है ! और ये उसी का व्यापार करते है !
इसका भगवान , धर्म इत्यादि से कुछ लेना देना नही है ! इन उल्लू के पठ्ठो को धर्म की और भगवान की कुछ भी समझ नही है ! इनको क्या मालूम की धर्म से प्यारी चीज दुनिया में कुछ भी नही है ! ये दावा करते है परमात्मा को पा लेने का ? कभी देखा है उस प्रीतम प्यारे को ? अरे ये सौदागर क्या जाने उसके बारे में ? उसको देखने के बाद तो इंसान मंसूर मस्ताना औत माई राबिया जैसा हो जाता है उसको इस दींन दुनिया और तिजारत से क्या लेना देना ?
ये लोग जो व्यापार करते है वो एक शुद्ध अर्थशाश्त्र है ! हम और आप जैसे लोग एक ही
नजरिए से देख पाते है ! और आज के असली व्यापारी तो ये बाबा मलंग ही सै ! ऐसा धंधा पकड़ राख्या सै की माल और माया यानि की पांचो उंगलिया घी में और सर कडाही में !
इब तो ताऊ को भी सोचना पडेगा ! आपने अच्छे धंधे के बारे में आइडिया दे दिया !
ताऊ के मनपसंद का मुद्दा उठाने के लिए धन्यवाद !
अमित,
बहुत बढिया मुद्दा उठाया है आपने, सच में हमारे राम राज्य की परिकल्पना में सिर्फ एक राम आते हैं यहाँ तो मठाधीशों की भरमार है जो अपने आपको राम की तरह भगवान् भी मानते हैं और भक्तों की लम्बी जमात इन्हें मान्यता भी देती है. दोष इन मठाधीशों से ज्यादा हमारे नालायक पढ़े लिखे जाहिल लोगों का है जो इनके भक्त भी हैं और शिक्षित होने का दावा भी करती है. मानवता के लिए सोचने वाले क्रमश: कम होते जा रहे हैं.
चर्चा के लिए बेहतरीन विषय.
जय जय भड़ास
Post a Comment