इंदौर में दो संप्रदायों (हिन्दू और मुसलमान) के बीच में हुए दंगों ने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं। हालांकि शनिवार को माहौल शांत रहा और दिन भर में तीन घंटों की कर्फ्यू में ढील भी दी गई लेकिन कई प्रश्न इसके बाद अभी भी अनुत्तरित ही रह गए। मेरे मन में भी दो दिन से कई बातें उमड़-घुमड़ रही थीं सोचा कि आप लोगों से बोल कर देखूँ।तो दोस्तों, पूरे विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ दो अलग-अलग धर्मों के लोग इतनी अतिवादिता से लड़ते हैं। हालांकि पहले यानी कई शताब्दियों पूर्व यह सब चलता रहा है लेकिन जब से दुनिया छोटी हुई है और साधन-संपन्नता बढ़ी है किसी भी देश में ऐसी अराजकता नहीं देखी गई है। आप लोगों को मेरी बात थोड़ी अजीब सी लगी होगी तो मैं इसमें कुछ और बिंदु जोड़ रहा हूँ। संसार के ज्यादातर देश किसी ना किसी धर्म से संबंध रखते हैं। मसलन संसार में ५६ मुस्लिम देश हैं। १०० से अधिक देश ईसाई हैं जो कैथोलिक धर्म को मानते हैं। कई बौद्ध देश भी हैं जो बौद्ध धर्म का पालन करते हैं और भगवान बुद्ध को मानते हैं। चीन जैसे कुछ ऐसे देश भी हैं जो कहने को तो कम्युनिस्ट हैं लेकिन वहाँ बौद्ध, मुस्लिम, शिंटो धर्म को मानने वालों के साथ-साथ कंफ्यूशियस जैसे विद्वानों की विचारधारा को मानने वाले भी बड़ी संख्या में हैं। इन ज्यादातर देशों में इस तरह दंगे नहीं होते। श्रीलंका में हो रहे हैं तो वह सिंहलियों और तमिलों के बीच की लड़ाई है और वे स्वायत्ता को लेकर लड़ रहे हैं। चीन कड़े अनुशासन वाला है और इस तरह के दंगे नहीं होने देता। हालांकि ज्यादातर अफ्रीकी देश गृह युद्ध की आग में जल रहे हैं लेकिन वो वहाँ की स्थानीय जातियों के बीच सत्ता और दबदबा कायम करने की लड़ाई है जो कई समुदायों में बँटी हुई हैं। दक्षिण अफ्रीका में काफी पहले रंगभेद को लेकर लड़ाई लड़ी गई थी लेकिन वह भारत से जुदा मामला था। उन अंग्रेजों से तो हमने भी लड़ाई की थी, आजादी प्राप्त करने के लिए लेकिन वो भारत में हो रही दो धर्मों की लड़ाई जैसा मामला नहीं था। ईरान-इराक ९ साल तक आपस में लड़े लेकिन दोनों देश एक ही धर्म को मानने वाले थे बस उनकी शाखाएँ अलग थीं। दूसरे कि दोनों अलग-अलग देश थे, एक ही देश में ऐसी लड़ाई नहीं हो रही थी। दोस्तों एक जगह जरूर जंग को लेकर संसार भर में मशहूर है। दो अलग-अलग धर्मों का ही मामला है लेकिन उनकी सूरत थोड़ी सी अलग है। मैं उस उदाहरण का जिक्र करना चाह ही रहा था। तो देखिए....मध्य-पूर्व एशिया में दो देशों की लड़ाई विश्वप्रसिद्ध है। एक विकसित है तो दूसरा अल्प विकसित। एक को दुनिया के ताकतवर देशों का समर्थन हासिल है तो दूसरे को सिर्फ अरब और गुटनिरपेक्ष देशों का। हालांकि अब भारत के अमेरिका की झोली में गिरने के बाद गुरनिरपेक्ष की टर्म की बेमानी हो गई है। तो यहाँ बात इसराइल और फिलीस्तीन की हो रही है। तो दोस्तों, जब आप इसराइल को देखेंगे तो वहाँ साधन-संपन्नता है। बड़ी-बड़ी इमारतें हैं। लड़ाई के लिए उनके सैनिकों के पास आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्र हैं। वो मोटार्रो, हैलीकॉप्टरों, हवाई जहाजों से हमले करते हैं। बड़े लेवल की लड़ाई है लेकिन फिलीस्तीन उस सबके बावजूद इसराइल से ६० सालों से लड़ रहा है। वहाँ लड़ाकों के पास अरब से धन और हथियार आते हैं। सभी मुस्लिम देशों का फिलीस्तीन को समर्थन है। वहाँ वाकई धर्म के लिए युद्ध हो रहा है। यहूदी और इस्लाम को मानने वालों के बीच। लेकिन अंतर फिर भी वही है, कि भले ही इसराइल ने फिलीस्तान की भूमि हड़पकर अपने को बनाया या बसाया हो लेकिन इस समय वो मामला दो देशों के बीच का हो गया है। दूसरे दोनों देश आकार में इतने छोटे हैं कि इसराइल बचने के लिए फैंसिंग लगा लेता है, चौकी बंदोबस्त भी कर लेता है लेकिन भारत जैसे बड़े देशों के साथ ऐसा नहीं है। तो वापस भारत में होने वाली धार्मिक लड़ाई पर आते हैं। तो पाकिस्तान के बँटवारे के बाद से इन दोनों धर्मों के अनुयायियों ने एक-दूसरे को जितना लूट-खसोट लिया है (पिछले ६० सालों में) उतना तो शायद संसार में लड़े कई महायुद्धों में भी नहीं हुआ होगा। इस देश में राजनेता राजनीति की रोटी सेंकने की खातिर इन दोनों धर्मों के लोगों को आपस में भिड़वा देते हैं लेकिन इसका भविष्य में क्या अंजाम होगा ये कोई सोच ही नहीं रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में १४ से १७ करोड़ मुस्लिम आबादी है लेकिन गैरसरकारी तौर पर यह आबादी २०-२५ करोड़ है। ये मैं नहीं कई मुस्लिम वैबसाइट्स कह रही हैं उनमें से एक मुस्लिम वर्ल्ड डॉट कॉम भी है। आप उसपर जाकर स्वयं देख-पढ़ सकते हैं। तो भारत की ११० करोड़ आबादी में से लगभग २० प्रतिशत मुस्लिम हैं। लेकिन क्या कारण हैं कि इस धर्मनिरपेक्ष देश में वो उस तरह से खप नहीं पा रहे जैसे कि सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई या अन्य धर्मों के लोग खपे हुए हैं। मेरे कई मुस्लिम मित्र हैं। उनसे बातचीत के आधार पर लगता है कि वो लोग अपने साथ जो व्यवहार चाहते हैं वैसा ना तो सरकार उनके साथ करती है और ना ही समाज। और राजनीतिक पार्टियों ने उनका इस्तेमाल कर-करके उनका सिर्फ नुकसान ही किया है, कभी कोई भला नहीं किया। किसी एक मुस्लिम विद्वान ने बातचीत के दौरान मुझसे कहा कि किसी भी मुस्लिम घर में कोई भी युवक यह मानकर नहीं चलता कि उसे सरकारी नौकरी मिल सकती है। इसलिए वह अपनी अलग ही दुनिया खड़ी करने की सोचता है। वो फिर कोई भी व्यापार व्यवसाय हो सकता है। दूसरे मुस्लिम कांग्रेस या समाजवादी पार्टी को एक तरफा वोट तो दे देते हैं लेकिन दोनों ही पार्टियों का चरित्र दोगला है। थोड़े दिन पहले तक वो दोनों एक दूसरे को गाली दे रही थीं और आज गले मिल रही हैं। उन्होंने मुसलमानों की बातें कर, उन्हें आश्वासन देकर उनके वोट तो कबाड़े लेकिन उनके लिए, उनकी शिक्षा के लिए किया कुछ नहीं। बस सिर्फ अपने ही घर भरे। ऐसे में मुस्लिमों के दिल और मन में हिन्दुओं और इस देश की सरकार या कहें सिस्टम के खिलाफ जहर घुलता रहा। ६० सालों में यह जहर इतना कटु हो गया है कि जब-तब बाहर छलक आता है। खैर, हमारे देश के राजनेताओं को यह सब सोचने की फुरसत नहीं है, लेकिन क्या वो अपनी गंदी चालों से मुस्लिमों का एक ऐसा वर्ग तैयार कर रहे हैं जो हमारे देश से इतनी नफरत पालकर तैयारी कर रहा है कि वो लड़ाई श्रीलंका में हो रहे विद्रोह या फिलीस्तीन जैसी हो जाएगी.......क्या हमारी और उनकी कई पीढ़ियाँ इस लड़ाई को लड़ेंगी जो अंतहीन होगी और उसका मतलब सिर्फ विनाश होगा, देश का विनाश, घरों का विनाश, सभ्यता और संस्कृति, आपसी भाईचारे का विनाश। क्या भारत इस प्रकार से विश्व में कोई मिसाल कायम करना चहता है, अपने राजनेताओं के बूते पर जो भविष्य को देखना नहीं जानते.....?? क्या आप सुन रही हैं सोनिया जी, और क्या आप भी सुन रहे हैं लालू जी, मुलायम जी, करात जी......?? हम इस देश को ऐसा देखना नहीं चाहते। हम इंदौर को दंगों से घिरा देखना नहीं चाहते। हम धर्म के नाम पर लड़ाई होते नहीं देखना चाहते..........। आशा करता हूँ कि आप सब लोग सुन रहे होंगे। आपका ही सचिन...........।
6.7.08
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