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7.4.09

पत्रकारिता हुई शर्मसार

दैनिक जागरण के जरनैल सिंह नामक पत्रकार को आज सारी दुनिया जान गई। उनका समाज उनको मान गया होगा। इन सबके बीच पत्रकारिता पर ऐसा दाग लग गया जो कभी नही मिट सकता। पत्रकारिता कोई आसान और गैरजिम्मेदारी वाला पेशा नहीं है। ये तो वो काम है जिसके दम पर इतिहास बने और बनाये गये हैं। देश में यही वो स्तम्भ है जिस पर आम जनता आज भी विश्वास करती है। जिसकी कहीं सुनवाई नहीं होती वह मीडिया के पास आता है। वह इसलिए कि उसको विश्वास है कि मीडिया निष्पक्ष,संयमी और गरिमा युक्त होता है। मगर जरनैल सिंह ने इन सब बातों को झूठा साबित करने की शुरुआत कर दी। वह पत्रकारिता से ख़ुद विश्वास खो बैठा। पत्रकार की बजाए एक ऐसा आदमी बन गया जिसके अन्दर किसी बदले की आग लगी हुई थी। इस घटना से वह पत्रकारिता तो शर्मसार हो गई जिसके कारण जरनैल सिंह को पी चिदंबरम के पत्रकार सम्मलेन में जाने का मौका मिला। हाँ, जरनैल सिंह अपने समाज का नया लीडर जरुर बन गया। पत्रकार के रूप में जो वह नहीं पा सका होगा सम्भव है वह अब लीडर बन कर पा ले। हो सकता है कोई पार्टी उसको विधानसभा या लोकसभा के चुनाव में टिकट दे दे। ऐसे लोग पत्रकारिता के काबिल भी नहीं हो सकते जो इस प्रकार का आचरण करते हों। इस प्रकार का आचरण तो नेता करते हैं। शायद अब यही जरनैल सिंह किया करेंगें। जरनैल सिंह ने पत्रकारिता के साथ साथ "जागरण" ग्रुप की भी साख पर बट्टा लगाया है जिसका वह प्रेस कांफ्रेंस में प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जरनैल सिंह को "हीरो" बनने पर बधाई और उनके आचरण पर शेम शेम।

6 comments:

Anonymous said...

bus isi ki kasar reh gayi thi hindustan mai woh bhi aaj puri ho gayi...

aagar bhadas nikalni he thi tho rahul gandhi jaisai neetaoo par nikaloo...

mark rai said...

bahut log unhe hero man anusaran karna shuru kar dege ...mujhe to dar hai ki mandir n banwa diya jai...

Anonymous said...

aap kaun hai mujhe nahi maloom lekin patkarita issse sharmind nahi hui hai patrakarita aur bauht wajhon se shrminda ho rahi ye apni asmita ko prakat karne ka guussa hai aaap nahi sanjege

अमित द्विवेदी said...

bhai bande ne nek kam kiya hai. har bande me ye bhagwan jagna chahiye. mujhe to achha lagega agr koi janrail ka mandir banwaye to usme main bhee khule dil se chanda doongaa. ye ek awaz hai zulm ke khilaf jisme doshi ko saza nahee di jati. mujhe to lagta hai agr janrail ko mauka mile to unhe iska fayda bhee uthana chahiye. joota fenk to chuke hi hain janab. now he not a ordinary man. now he is a celebrity

Anonymous said...

नारदमुनि जी आपके हर सवाल का जवाब दे रहा आपकी लाइन के नीचे


दैनिक जागरण के जरनैल सिंह नामक पत्रकार को आज सारी दुनिया जान गई। उनका समाज उनको मान गया होगा। इन सबके बीच पत्रकारिता पर ऐसा दाग लग गया जो कभी नही मिट सकता।
जबाब – पत्रकारिता पर कौना सा दाग लग गया दोस्‍त। पत्रकारिता पर भोपाल में तब दाग लगे थे जब किसी ब्‍यूरो चीफ ने अपनी महिला साथी को सेक्‍स के लिए कहा। लड़की ने शिकायत की तो नौकरी से निकाल दिया। दाग तो तब लगा जब टीवी चैनल चीख-चीखकर भूत प्रेत की स्‍टोरिज दिखा रहे हैं। दाग तो तब लगा जब पृथ्‍वी खत्‍म होने वाली है यह खबर सुनकर मध्‍यप्रदेश में एक लड़की ने जान दे दी। जो लिखे हैं वो दाग मिट जाए तो ही ठीक है। जरनैल का दाग बाद में धोएंगे


पत्रकारिता कोई आसान और गैरजिम्मेदारी वाला पेशा नहीं है। ये तो वो काम है जिसके दम पर इतिहास बने और बनाये गये हैं। देश में यही वो स्तम्भ है जिस पर आम जनता आज भी विश्वास करती है। जिसकी कहीं सुनवाई नहीं होती वह मीडिया के पास आता है।
जबाब – हां यही वो मीडिया है जिसके पास आत्‍मसमर्पण करने अपराधी आते हैं ताकि पुलिस उनकाे ठोके नहीं। और हमारे चैनल एक्‍सक्‍यूसिव बोलकर कहते हैं फलां फलां चैनल पर अपराधियों का आत्‍मसमर्पण। क्‍या ये चैनल जयप्रकाश नारायण की भूमिका में हैं जो चंबल के डाकुओं का आत्‍मर्पण करवा रहे हैं। आम जनता की कौन सुनता है। अगर गुजरात में कोई लड़की विरोध स्‍वरूप अर्धनग्‍न घूमे तो उसे चटखारे लेकर ब्‍लर लेकर दिखाते और छापते हैं। जिम्‍मेदारी की बात करते हैं भूत पलीत की खबरों और तालिबान की खबरों से उभरे ये चैनल और अख़बार चुनाव में चांदी काटने लगे हैं। कुछ अख़बार साख बटोरने के लिए चुनाव में पैसा लेकर खबर न छापने की बात कह रहे हैं। याने कभी न कभी उन्‍होंने ने भी पैसा लेकर खबर छापी है। अगर नहीं छापी होती तो यह स्‍पष्टिकरण क्‍यों देना पड़ता कि पैसे लेकर खबर छापेंगे।



वह इसलिए कि उसको विश्वास है कि मीडिया निष्पक्ष, संयमी और गरिमा युक्त होता है। मगर जरनैल सिंह ने इन सब बातों को झूठा साबित करने की शुरुआत कर दी। वह पत्रकारिता से ख़ुद विश्वास खो बैठा। पत्रकार की बजाए एक ऐसा आदमी बन गया जिसके अन्दर किसी बदले की आग लगी हुई थी।
जवाब – मीडिया संयमी नहीं होता यहां काम करने वाले संयमी होते हैं। मंदी के आड़ में मालिक छंटनी करते हैं डबल काम कराते हैं। तनख्‍वाह घटाते हैं। फिर पत्रकार संयम बरतता है क्‍योंकि उसे भी घर चलाना है। रोटी न मिले इससे अच्‍छा है आधी रोटी तो मिले। इसलिए संयम बरतकर वह लालाओं की नौकरी करता है। जिसमें संयम होता है वह गरीमामयी हो ही जाता है।



इस घटना से वह पत्रकारिता तो शर्मसार हो गई जिसके कारण जरनैल सिंह को पी चिदंबरम के पत्रकार सम्मलेन में जाने का मौका मिला। हाँ, जरनैल सिंह अपने समाज का नया लीडर जरुर बन गया। पत्रकार के रूप में जो वह नहीं पा सका होगा सम्भव है वह अब लीडर बन कर पा ले। हो सकता है कोई पार्टी उसको विधानसभा या लोकसभा के चुनाव में टिकट दे दे।
जवाब – छूटते ही जरनैल ने इसके लिए खेद व्‍यक्‍त किया है। शायद आपने टीवी नहीं देखा जैसे ही जरनैल बाहर आया। उससे एक सिख ने कहा हम आपके साथ हैं। जरनैल का जवाब था। मैं किसी के साथ नहीं हूं। देश पहले हैं। अगर आपने गुरु गोबिंद सिंहजी के बारे में पढ़ा होगा तो आपको पता चलेगा सिख कौम का रूतबा क्‍या है। आपको बता दूं मैं सिख नहीं हूं। बस गोबिंद सिंहजी के बारे में पढ़ा है। उसने साफ कह दिया है मैं लीडर नहीं बनना चाहता। शिरोमणि अकाली दल उसे पैसे का लालच दे लेकिन वह टूटा नहीं है। वो आज भी देश को सबसे पहले रखता है।




ऐसे लोग पत्रकारिता के काबिल भी नहीं हो सकते जो इस प्रकार का आचरण करते हों। इस प्रकार का आचरण तो नेता करते हैं। शायद अब यही जरनैल सिंह किया करेंगें। जरनैल सिंह ने पत्रकारिता के साथ साथ "जागरण" ग्रुप की भी साख पर बट्टा लगाया है जिसका वह प्रेस कांफ्रेंस में प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जरनैल सिंह को "हीरो" बनने पर बधाई और उनके आचरण पर शेम शेम।

- यार गुरु वैसे तो आप जरनैल के बारे में जानते हैं कि नहीं मैं नहीं जानता लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि जागरण जैसे अखबार में विशेष संवाददाता बनना आसान नहीं है। कोई योग्‍यता जरूर होगी जो छह साल से यह आदमी डिफेंस बीट देख रहा है। अगर आप कहते हैं कि पत्रकारिता का मतलब सिर्फ पत्रकार होना है तो यह बेमानी है। क्‍योंकि पत्रकार भी एक इनसान है। आपने ठीक से विजुअल नहीं देखे। अपने सवाल का जवाब नहीं देने के विरोध में आई प्रोटेस्‍ट बोलते हुए जरनैल ने जूता उछाला है न मारा है। वरना आप जानते हैं वो चाहता तो जूता चिंदबरम के चेहरे पर मारता।


शर्मसार हो गई पत्रकारिता। जनाब पत्रकारिता शर्मसार नहीं होती। बंदे शर्मसार होते हैं।
हो सकता है इसका जवाब आप मुझे लिखें लेकिन मैं इसे विवाद बनाकर आगे बढ़ना नहीं चाहता या चाहती ।

Anonymous said...

नारदमुनि जी आपके हर सवाल का जवाब दे रहा आपकी लाइन के नीचे


दैनिक जागरण के जरनैल सिंह नामक पत्रकार को आज सारी दुनिया जान गई। उनका समाज उनको मान गया होगा। इन सबके बीच पत्रकारिता पर ऐसा दाग लग गया जो कभी नही मिट सकता।
जबाब – पत्रकारिता पर कौना सा दाग लग गया दोस्‍त। पत्रकारिता पर भोपाल में तब दाग लगे थे जब किसी ब्‍यूरो चीफ ने अपनी महिला साथी को सेक्‍स के लिए कहा। लड़की ने शिकायत की तो नौकरी से निकाल दिया। दाग तो तब लगा जब टीवी चैनल चीख-चीखकर भूत प्रेत की स्‍टोरिज दिखा रहे हैं। दाग तो तब लगा जब पृथ्‍वी खत्‍म होने वाली है यह खबर सुनकर मध्‍यप्रदेश में एक लड़की ने जान दे दी। जो लिखे हैं वो दाग मिट जाए तो ही ठीक है। जरनैल का दाग बाद में धोएंगे


पत्रकारिता कोई आसान और गैरजिम्मेदारी वाला पेशा नहीं है। ये तो वो काम है जिसके दम पर इतिहास बने और बनाये गये हैं। देश में यही वो स्तम्भ है जिस पर आम जनता आज भी विश्वास करती है। जिसकी कहीं सुनवाई नहीं होती वह मीडिया के पास आता है।
जबाब – हां यही वो मीडिया है जिसके पास आत्‍मसमर्पण करने अपराधी आते हैं ताकि पुलिस उनकाे ठोके नहीं। और हमारे चैनल एक्‍सक्‍यूसिव बोलकर कहते हैं फलां फलां चैनल पर अपराधियों का आत्‍मसमर्पण। क्‍या ये चैनल जयप्रकाश नारायण की भूमिका में हैं जो चंबल के डाकुओं का आत्‍मर्पण करवा रहे हैं। आम जनता की कौन सुनता है। अगर गुजरात में कोई लड़की विरोध स्‍वरूप अर्धनग्‍न घूमे तो उसे चटखारे लेकर ब्‍लर लेकर दिखाते और छापते हैं। जिम्‍मेदारी की बात करते हैं भूत पलीत की खबरों और तालिबान की खबरों से उभरे ये चैनल और अख़बार चुनाव में चांदी काटने लगे हैं। कुछ अख़बार साख बटोरने के लिए चुनाव में पैसा लेकर खबर न छापने की बात कह रहे हैं। याने कभी न कभी उन्‍होंने ने भी पैसा लेकर खबर छापी है। अगर नहीं छापी होती तो यह स्‍पष्टिकरण क्‍यों देना पड़ता कि पैसे लेकर खबर छापेंगे।



वह इसलिए कि उसको विश्वास है कि मीडिया निष्पक्ष, संयमी और गरिमा युक्त होता है। मगर जरनैल सिंह ने इन सब बातों को झूठा साबित करने की शुरुआत कर दी। वह पत्रकारिता से ख़ुद विश्वास खो बैठा। पत्रकार की बजाए एक ऐसा आदमी बन गया जिसके अन्दर किसी बदले की आग लगी हुई थी।
जवाब – मीडिया संयमी नहीं होता यहां काम करने वाले संयमी होते हैं। मंदी के आड़ में मालिक छंटनी करते हैं डबल काम कराते हैं। तनख्‍वाह घटाते हैं। फिर पत्रकार संयम बरतता है क्‍योंकि उसे भी घर चलाना है। रोटी न मिले इससे अच्‍छा है आधी रोटी तो मिले। इसलिए संयम बरतकर वह लालाओं की नौकरी करता है। जिसमें संयम होता है वह गरीमामयी हो ही जाता है।



इस घटना से वह पत्रकारिता तो शर्मसार हो गई जिसके कारण जरनैल सिंह को पी चिदंबरम के पत्रकार सम्मलेन में जाने का मौका मिला। हाँ, जरनैल सिंह अपने समाज का नया लीडर जरुर बन गया। पत्रकार के रूप में जो वह नहीं पा सका होगा सम्भव है वह अब लीडर बन कर पा ले। हो सकता है कोई पार्टी उसको विधानसभा या लोकसभा के चुनाव में टिकट दे दे।
जवाब – छूटते ही जरनैल ने इसके लिए खेद व्‍यक्‍त किया है। शायद आपने टीवी नहीं देखा जैसे ही जरनैल बाहर आया। उससे एक सिख ने कहा हम आपके साथ हैं। जरनैल का जवाब था। मैं किसी के साथ नहीं हूं। देश पहले हैं। अगर आपने गुरु गोबिंद सिंहजी के बारे में पढ़ा होगा तो आपको पता चलेगा सिख कौम का रूतबा क्‍या है। आपको बता दूं मैं सिख नहीं हूं। बस गोबिंद सिंहजी के बारे में पढ़ा है। उसने साफ कह दिया है मैं लीडर नहीं बनना चाहता। शिरोमणि अकाली दल उसे पैसे का लालच दे लेकिन वह टूटा नहीं है। वो आज भी देश को सबसे पहले रखता है।




ऐसे लोग पत्रकारिता के काबिल भी नहीं हो सकते जो इस प्रकार का आचरण करते हों। इस प्रकार का आचरण तो नेता करते हैं। शायद अब यही जरनैल सिंह किया करेंगें। जरनैल सिंह ने पत्रकारिता के साथ साथ "जागरण" ग्रुप की भी साख पर बट्टा लगाया है जिसका वह प्रेस कांफ्रेंस में प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जरनैल सिंह को "हीरो" बनने पर बधाई और उनके आचरण पर शेम शेम।

- यार गुरु वैसे तो आप जरनैल के बारे में जानते हैं कि नहीं मैं नहीं जानता लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि जागरण जैसे अखबार में विशेष संवाददाता बनना आसान नहीं है। कोई योग्‍यता जरूर होगी जो छह साल से यह आदमी डिफेंस बीट देख रहा है। अगर आप कहते हैं कि पत्रकारिता का मतलब सिर्फ पत्रकार होना है तो यह बेमानी है। क्‍योंकि पत्रकार भी एक इनसान है। आपने ठीक से विजुअल नहीं देखे। अपने सवाल का जवाब नहीं देने के विरोध में आई प्रोटेस्‍ट बोलते हुए जरनैल ने जूता उछाला है न मारा है। वरना आप जानते हैं वो चाहता तो जूता चिंदबरम के चेहरे पर मारता।


शर्मसार हो गई पत्रकारिता। जनाब पत्रकारिता शर्मसार नहीं होती। बंदे शर्मसार होते हैं।
हो सकता है इसका जवाब आप मुझे लिखें लेकिन मैं इसे विवाद बनाकर आगे बढ़ना नहीं चाहता या चाहती ।