जनरैल सिंह ने जो किया वह एकदम सही है। सिखों की बात कोई सुनने का प्रयास तो कर नहीं रहा है। सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर जैसे खुले भेçड़ये समाज में घूम रहे हैं जिन पर सरकार का कानून भी नहीं चलता। ऐसे में सिर्फ एक रास्ता बचता था जो कि जनरैल ने अपनाया। हो सकता है कि यह उनकी सोची समझी चाल हो पर कुछ भी हो यह एक ऐसे जायज आक्रोश का नतीजा है जिसे पूरे देश ने देखा। यह बात दूसरी है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया केटुटपुजिए पत्रकारों ने उन्हें किसी अखबार का तथाकथित पत्रकार कहा जो कि एक वरिष्ठ पत्रकार केमर्यादा के खिलाफ है। इलेक्ट्रानिक मीडिया केछिछोरे पत्रकार जिनकी समाज में सिर्फ एक हास्यास्पद इमेज है उन्होंने इसे अनैतिकता भरा करार दिया जबकि वे अपनी गिरेबान झांकना भूल गए कि वे कितने नैतिक हैं। गृहमंत्री पर जनरैल ने जूता नहीं मारा बल्कि उनकेऊपर जूता उछाला था जिसमें उनका मकसद सिर्फ एक संदेश देना था न कि उनको मारना इसलिए किसी भी कीमत पर इसे अनैतिक नहीं कहा जाना चाहिए। हो सकता है कल जागरण उन्हें नौकरी से निकाल दे क्योंकि वह अखबार अपनी साख पर आंच नहीं आने देना चाहता पर जो किसी का जज्बा था वह खुलकर सामने आ चुका है। मुझे नहीं लगता कि जनरैल ने हीरो बनने के लिए यह सब किया है यह एक व्यçक्त की त्वरित प्रतिक्रिया थी जो कि गुस्से के रूप में निकली है इसका समान होना चाहिए तथा इस पर हर किसी को गंभीरता से विमर्श करना चाहिए बजाय कि जनरैल की निंदा करने के।
7.4.09
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3 comments:
jarnail ka gussa jayaz hai...jab kahin se koi ummid na bachi ho...upar se baat na sune to ye to hoga hi....manav savbhaav hi hai..aisa...
jarnail ne joota phekkar na keval 84 ke katilo ke prati akrosh dikaya balki congres ko ahsaas bhi karaya ki 84 me agar rajiv gandhi chate to itne sikh nahi maare jate
mere apne bhi bahut log 84 dango me maare gaye.
very good jarnail
tumhe jagnain singh nitu ka salaam
journilist danik jagran gorakhpur
we don.t want to see titalar and sajan kumar in indian politics
india is very great contry
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