हम जूतों के दिन फिरने लगे हैं...
>>पंकज व्यास, रतलाम
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मैं टीवी पर चिदम्बरम पर जूता फैंके जाने की खबर देख ही रहा था कि बाहर रखा मेरे पांव का जूता उचककर दौड़ता हुआ सरपट टीवी के सामने आ गया और आंखें फाड़-फाड़कर कभी टीवी को देखता, तो कभी मुझको। उसकी ये हरकत देखकर मैं बोला, 'क्यों रे जूते, तेरा यहां क्या काम? बाहर ही रह। पांव का है पांव में ही रह, सिर मत चढ़।Ó
सुनकर वह बोला, 'पांव की जूती समझ कर मुझे ऐसा-वैसा, ऐरा-गैरा मत समझ बैठना। एक बार बुश के सिर पर चढ़ा हूं, तो अब चिदंबरम् साहब पर फिंका हूं।Ó
मैंने कहा,'अपने भाव आसमान में मत चढ़ा, वो तो पत्रकार ·ी नादानी है, जो उसने तेरा उपयोग किया है, और पत्रकारिता के पेशे को बदनाम किया।Ó
सुनकर जुता तुनककर बोला- क्या गलत किया है, क्या किसी मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करना गलत है?
मैंने कहा, 'गलत तो नहीं, पर तरीका गलत है। तुझ जूते का उपयोग क्यों किया? ध्यान आकर्षित करना था, तो लिखकर करना था, ज्ञापन देककर करना था, धरना देना था, जो प्रचलित तरिके हैं, उनका यूज करना था...। Ó
सुनकर जूता मेरी बात बीच में ही काटते हुए धड़ाधड़ बोला- 'रहने दीजिए, रहने दीजिए, ये सारी बात। आप किसी मुगालते में मत रहिए। वो दिन गए जब हमारी कोई वखत नहीं होती थी, अब हमारे दिन फिरने लगे हैं...।Ó
मैंने उसे बीच में ही रोककर कहा, 'बस कर बस कर, ज्यादा दिवाना मत बन। वो तो भलमनसाहत कांग्रेस की जो चिदंबरम साब पर जूता फैंकने वाले पत्रकार को माफ कर दिया, वरना तेरा भाई वो 'जूताÓ और वो पत्रकार जेल में सड़ता।
सुनकर जूता बोला, 'वो तो कांग्रेस ने माफी देकर इसे चुनावी मुद्दा बनते-बनते बचा लिया, वरना...
'वरना क्याï?Ó'
ये चुनावी मुद्दा बनता और विरोधी पार्टियां टाईटलर मुद्दे को जमकर भुनाती। कांग्रेस ने माफी देकर खुद को बचाया है।Ó
मैंने कहा, 'बस कर, ज्यादा शाणपत मत दिखा और अपनी औकात में रह, जूता है तू पांव का जूता, सिर मत चढ़। Ó
सुनकर वह कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, 'अरे कलमकार! इस जूते को मामूली मत समझना। आने वाले समय में हम जूतों की जमात ध्यान आकर्षित करने का माध्यम बनेगी, विरोध का सशक्त माध्यम जूता बनेगा।Ó
जूता बोलता जा रहा था, 'जब किसी की बात सुनी नहीं जाएगी, तो लोग इसी पांव के जूते को हाथ में लेकर सांकेतिक रूप से विरोध दर्ज कराएंगे। जब किसी मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित कराना होगा, लोग हाथों में जूतों को लेकर रैली निकाल देंगे, धरनों में जूतों को हाथ में लेकर बैठेंगे.... जन समस्याओं को लेकर होने वाले आंदोलनों में हमारा यूज किया जाएगा, भले ही कोई जूता फैंके नहीं, लेकिन हाथ में ले लें, तो विरोध प्रदर्शन हो गया, ध्यानाकर्षण हो गया...Ó
जूता गर्व के साथ बोलता जा रहा था, 'हमें हाथ में लेकर दिखा दिया जाएगा, मतलब जूता मार दिया, याने ध्यानाकर्षण हो गया, ये जूता इस देश में क्रांति का प्रतीक बनेगा।Ó
जूते की बात सुनकर मैं कुछ सोचने पर विवश हो गया।
मुझे सोचता हुआ देखकर जूता बोला, 'सोचते क्या हो खबरची? हमारे, अब हमारे भी दिन बदलने लगे हैं।Ó
ऐसा बोलकर वह फिर से टीवी में आंखें गढ़ाए टीवी को वॉच करने लगा और जूते फैंके जाने की खबर को देखने, सुनने लगा।लेकिन, मुझे टीवी की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी, मेरे कान में तो बस जूते के शब्द गुंज रहे थे।
1 comment:
nitu said...
jarnail ne joota phekkar na keval 84 ke katilo ke prati akrosh dikaya balki congres ko ahsaas bhi karaya ki 84 me agar rajiv gandhi chate to itne sikh nahi maare jate
mere apne bhi bahut log 84 dango me maare gaye.
very good jarnail
tumhe jagnain singh nitu ka salaam
journilist danik jagran gorakhpur
April 10, 2009 12:40 PM
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