प्यारे साथियो! आज मै कुछ लिख नही रही हूँ बल्कि आप लोगो से एक सवाल कर रही हूँ। जब जिन्दगी मे कई लक्ष्य होते है तब जिन्दगी छोटी लगने लगती है या बड़ी ? और कैसे ? आप के जवाब की प्रतीक्षा में । आरती आस्था
28.4.09
सवाल- जवाब
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9 comments:
प्रिय मित्र
आपकी रचनाएं पढकर सुखद अनूभूति हुई। नयी तथा ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए मेरे ब्लाग पर अवश्य पधारे।
अखिलेश शुक्ल
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यदि लक्ष्य मिलने में कम कठिनाइयाँ हों तो जिंदगी बड़ी लगती है। यदि लक्ष्य बहुत कठिन हो तो हम अधिक समय चाहते हैं, इसलिये जिंदगी छोटी लगती है। खैर कैसी भी लगे, जिंदगी तो वही है!
Jindagi Badi ho ya choti mere samjh se lakshya ke prati hamara zunoon use badi ya choti banata hai, kabhi kabhi suru suru main zunnon pura rahta hai lakshya ke prati to jindagi kitni choti nazar aati hai magar zunnon kam ho gaya to zindagi niras kachuye ki tarah nazar aati hai.
जब लक्ष्य बडे हों, तो जिंदगी खुदबखुद छोटी हो जाती है।
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सम्मोहन के यंत्र
5000 सालों में दुनिया का अंत
kai lakshy nishchit hi jiwan ko lamba kar dete hai ..chaaht badi ho jaati hai...bahut kuchh karne ka santosh man me hota hai...aanand ki anubhuti hoti hai ..
अगर आपके लक्ष्य को दिलरुबा कहूं, जैसे कि गालिब ने कहा है- अपने हर अरमान को अपने महबूब के रूप में बयां किया है, जिंदगी की नाकामियों को लख्त-ए-जिगर की रुसवाई के रूप में इजहार किया है- हर सांस में अपने यार का एहसास किया है, मसलन-
यह न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतजार होता।
गालिब ने यहां शख्स का अक्स परोसा है, वो यहां मर रहा है, दुनिया को अलविदा कह रहा है, लेकिन अफसोस नहीं- कह रहा है- मेरी तो किस्मत में ही नहीं लिखी थी यार से मुलाकात, पूरी उम्र उसका इंतजार करता रहा, वो नहीं आई मिलने, अब जीने में कोई फायदा नहीं, जब तक जीते तब तक इंतजार का दर्द उठाते रहते.
आप इस शख्स की मायूसी को समझ सकती हैं- जिंदगी में मंजिल के होने का एक मतलब ये होता है. मिल गई तो मंजिल, वर्ना रास्ता. अगर मंजिल नहीं तो रास्ता भी नहीं. रास्ता नहीं तो सफर कैसी. सफर नहीं होने का मतलब तो आप समझ सकती हैं-ठहर जाना होता है. और जहां ठहर गए, समझिए वहीं मर गए- जिंदगी से नाता खत्म. उठिए, अपनी आंखे खोलने से पहले एक मंजिल तय कीजिए, और पाने की तमन्ना छोड़ दीजिए.
सफर शुरू कीजिए
अगर आपके लक्ष्य को दिलरुबा कहूं, जैसे कि गालिब ने कहा है- अपने हर अरमान को अपने महबूब के रूप में बयां किया है, जिंदगी की नाकामियों को लख्त-ए-जिगर की रुसवाई के रूप में इजहार किया है- हर सांस में अपने यार का एहसास किया है, मसलन-
यह न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतजार होता।
गालिब ने यहां शख्स का अक्स परोसा है, वो यहां मर रहा है, दुनिया को अलविदा कह रहा है, लेकिन अफसोस नहीं- कह रहा है- मेरी तो किस्मत में ही नहीं लिखी थी यार से मुलाकात, पूरी उम्र उसका इंतजार करता रहा, वो नहीं आई मिलने, अब जीने में कोई फायदा नहीं, जब तक जीते तब तक इंतजार का दर्द उठाते रहते.
आप इस शख्स की मायूसी को समझ सकती हैं- जिंदगी में मंजिल के होने का एक मतलब ये होता है. मिल गई तो मंजिल, वर्ना रास्ता. अगर मंजिल नहीं तो रास्ता भी नहीं. रास्ता नहीं तो सफर कैसी. सफर नहीं होने का मतलब तो आप समझ सकती हैं-ठहर जाना होता है. और जहां ठहर गए, समझिए वहीं मर गए- जिंदगी से नाता खत्म. उठिए, अपनी आंखे खोलने से पहले एक मंजिल तय कीजिए, और पाने की तमन्ना छोड़ दीजिए.
सफर शुरू कीजिए!
आगे जिसकी नज़र नहीं वह भला कहाँ जाएगा?
अधिक नहीं चाहता जो वह कितना धन पायेगा?
jeevan ko zeal ke sath jeena chahiye .. aim kai saare ho sakte hai ,, sangharsh to har pal karna hi padta hai ,, lekin basic bas itna sa hai ki ,, be happy ..
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