इन दिनों "इच्छाधारी-बाबाओं " का अच्छा सीजन चल रहा है |हर दूसरे दिन इस तरह की खबर पढने या सुनने को मिलती है,कि स्वामी फलाना-आनंद का हुआ पर्दाफाश,बाबा के सेक्स रेकेट का हुआ खुलासा |और न्यूज़ चेनलों को मिल जाता है मसाला|
इस तरह कि ख़बरों में न्यूज़ चेनलों कि तो बल्ले बल्ले हो जाती है ,चुपड़ी और दो-दो |खबर को ये लोग बढ़ा-चढ़ा के इस ढंग से पेश करते हैं जैसे कि लस्सी एक्स्ट्रा मलाई मार के | खैर इन कि इस में क्या गलती है,इन लोगों का तो काम ही ऐसा है |
किन्तु हमें तो एक बात ठेस पहुंचाती है कि क्यूं इस तरह के अपराधियों को,क्यूं इस तरह के हर सेक्स रेकेट चलाने वाले गुंडों का मीडिया में "बाबा" और "स्वामी" जैसी उपाधियों से बखान किया जाता है ? क्यूं इस तरह के सरगनाओं को साधू कह कह के पुकारा जाता है |क्यूं हर देह-व्यापार में लिप्त शख्स को साधू कि पहचान दी जा रही है |
सन्यासियों के भेष में छिपे ये अपराधी भगवा - वेश को भी लज्जित करते हैं और ऊपर से हमारा मीडिया भी असाधु को साधू कह कर अर्थ का अनर्थ करने में पीछे नहीं रहता |इस तरह के कर्म करने वाले को साधू कैसे कहा जा सकता है ?"साधू" शब्द के तो मायने ही अलग हैं तो फिर क्यूं दुराचारियों को मीडिया वाले साधू प्रस्तुत करते हैं ? हिन्दू धर्म के पूजनीय ओहदों के लिए कहे जाने वाले "बाबा और स्वामी " शब्दों को अपराधियों के लिए उपयोग में लाया जा रहा है | ये शर्म कि बात है |अपने कारनामों को गुप्त रखने के लिए ऐसे दुर्जन,गेरुआ-भेष का सहारा क्या ले लेते हैं हमारा मीडिया उन्हें साधू या बाबा बता के दुहाई देता रहता है |अरे !आप लोग अपराधी के अपराध उजागर कर रहे हो या सज्जनों और संतों का मखौल उड़ा रहे हो ?अपराधी को स्वामी की बजाय अपराधी ही क्यों नहीं बताया जाता ? क्यों उसे साधू बता कर,साधू शब्द पर लांछन लगाया जाता है,उस के मायने बदले जाते हैं ?
इस तरह के अपराधी को बाबा बताया जा रहा है जो नाग से भी खतरनाक होता है |क्या कारण है कि हर इस तरह के घिनौने कृत्य करने वाला जालिम संत ही पुकारा जाता है मीडिया में ?
सिर्फ अपनी टी आर पी और खबर में मसाला डालने के लिए असाधु को साधू बना दिया जाता है |
इस तरह के मुजलिमों को,जो अपने काले धंधे चलाने के लिए भगवा-वस्त्रों का सहारा लेते है को साधू या स्वामी कह कर कम से कम संतों का तो अपमान न करें | मेरा निवेदन है कि जिस्मफरोशी सरीखे धंदे करने वालों को "महात्मा" कि संज्ञा न दें | ये अर्थ का अनर्थ है |
कुलदीप गौड़
27.3.10
असाधु को साधु बताकर होता हैं अर्थ का अनर्थ और साधु समाज का उपहास !
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
sahi kaha
Post a Comment