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31.3.10

भागो कांग्रेसी...बच्चन आया

(उपदेश सक्सेना)

बचपन में बच्चों को विभिन्न तरीकों से डराया जाता है, कभी उन्हें 'बाबा' द्वारा उठा ले जाने की बात कहकर बहलाया जाता है, तो कभी अँधेरे में भय की आकृति दिखाई जाती है. अमिताभ बच्चन इन दिनों कांग्रेस के लोगों के लिए उसी 'बाबा' का रूप बन गए हैं. अमिताभ अब कांग्रेस के नेताओं के सपनों में आकर 'भूतनाथ' की तरह डराने लगे हैं. दुश्मन के दोस्त को भी दुश्मन मानने वाली कांग्रेस के हाईकमान ने पार्टी नेताओं को बच्चन से दूरियां बनाने के कोई निर्देश निश्चित रूप से नहीं दिए होंगे, मगर कांग्रेसियों के खून में बह रही चाटुकारिता की रक्त कणिकाएं ज्यादा उबाल मार रही हैं. इंदिरा गांघी के प्रादुर्भाव के बाद कांग्रेस में चाटुकारिता की हवा जमकर बही, इसका असर यह हुआ कि, कांग्रेस से जुड़े नेताओं की आत्मा मर गई. सोनिया गांधी ने १०, जनपथ की मज़बूत दीवारों के पीछे से पार्टी पर अपनी लगाम ऐसी कसी कि हर कोई दीवार भेदक आँखें चाहने लगा है. 'किसी चीज़ को जितना छुपाओ, उसे देखने-जानने कि लालसा उतनी बलवती हो जाती है.' उनका पार्टी पर होल्ड इतना मज़बूत है कि सर झुकाने को कहने पर सामने वाला दंडवत हो जाता है. यह सोनिया के व्यक्तित्व का ही असर है कि उनके सामने पूरी कांग्रेस रीढ़-विहीन दिखाई देती है.
अमिताभ बच्चन ने मनोरंजन जगत के माध्यम से निश्चित ही भारत की छवि विदेशों तक में बनाई है. उम्र के उस पड़ाव में जबकि आम आदमी खटिया पकड़ लेता है, ऊर्जा से भरे बच्चन यदि सक्रिय रहकर किसी भी तरह से काम में जुटे हैं तो उसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए. कांग्रेस उस नज़रिए से देखती जिसमें बुरे(राजनीतिक कारणों से) व्यक्ति के साथ रहने वाले को भी बुरा समझा जाता है. नरेन्द्र मोदी उस गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री हैं जहां की जनता काफी शिक्षित है ओर उसने उन्हें लगातार दूसरी बार सत्ता सौंपी है. विपक्ष की भूमिका सरकार के कामकाज पर टीका टिप्पणी करने वाले की होती है, मगर आज यह सभी मर्यादाएं लांघ चुकी है. अमिताभ बच्चन की पिछले दिनों से भाजपा के नेताओं से नजदीकियां बढ़ी हैं, इसका अर्थ यह नहीं लिया जाना चाहिए कि वे उस दल की नीतियों के समर्थक हो गए है. आज की राजनीति में कार्यकर्ताओं को उनकी मौलिक सोच से दूर रहकर जी-हजूरी करने के लिए प्रेरित किया जाता है. कांग्रेस ऐसे ही नेताओं की ज़मात बन चुकी है, भाजपा ऐसे रोबोट तैयार कर रही है. तमाम दल सामंतवाद की नीतियों पर चल पड़े हैं, जहां वफादारी का पर्यायवाची शब्द गुलामी कहलाता है. हमने स्वतंत्रता पाई है, जिसे आज हम अपनों से बचने के लिए उपयोग कर रहे हैं. वैसे इस पूरे नाटक में अमिताभ की ख्याति में और इजाफा हुआ है. यह अमिताभ के व्यक्तित्व का ही कमाल है की, उन्होंने अशोक चाव्हाण, शीला दीक्षित, जयराम रमेश, जैसे कई नेताओं को भयभीत कर दिया है.सभी कांग्रेसी भागो.... चिल्ला रहे हैं ...क्योंकि अमिताभ आ रहे हैं.

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