कहते है चालाकी की एक सीमा होती है। उस सीमा को नहीं लांघना चाहिए। कभी-कभी ज्यादा चालाकी खुद अपने पर ही भारी पड़ जाती हैं। एक लड़का था वह बहुत चतुराई से अपना काम करता था। चाहे जैसा माहौल हो अपने मन की कर ही लेता था। एक बार रोड पर किसी का एक्सीडेंट हो गया। वह लड़का भी वहां रूक गया। उसने भीड़ में किसी से पूछा,‘‘अरे भई क्या हुआ?’’‘‘पता नहीं किसी का एक्सीडेंट हो गया है।’’ उस युवक के मन में आगे जाकर देखनं की उत्सुकता जागी। उसने कई बार प्रयास किया, लेकिन चाहकर भी वह आगे नहीं पहुंच पा रहा था। उसने फिर चतुराई से आगे जाने का फैंसला कर लिया ओर रोने का नाटक करते हुए चिल्लाने लगा,‘‘बापू बहुत हुआ बापू।’’ वह रोते हुए आगे बढ़ा, लोगों ने उसे रास्ता दे दिया। परन्तु दुर्घटनास्थल पर नजर पड़ते ही उसके छक्के छूट गए क्योंकि वहां एक्सीडेंट में एक कुत्ता मारा गया था। लब्बोलुआब यही कि हर जगह चालाकी नहीं चलती।
19.3.10
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2 comments:
वक्त पर गधे को बापू बनाते सुना था। यहां तो बात और आगे की है
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
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