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21.3.10


हां ऐसा भी होता है जिन्दगी में...जब अपनी ही जिन्दगी बेगानी सी लगती है।तब दूर-दूर तक कोई आस नहीं होती, जीवन के लिए प्यास भी नहीं होती..और फिर अपनी ही जिन्दगी का बोझ सहना मुश्किल हो जाता है..सारी शिक्षाएं, सारे उपदेश तब मुंह चिढ़ाते से लगते है।चाहकर भी कुछ ना कर पाने की कसक, रह-रह के मन मे उठती है। और फिर मन खुद को ढाढ़स बधाता है। एक बार फिर से सारी शक्ति को बटोरकर जीवन के महासमर में उतरने को ललकारता है, लेकिन एक नहीं दो बार नहीं अनगिनत बार इस महासंग्राम में पराजय का सामना करता इंसान क्या करें ........और क्या ना करें की कशमकश में उलझता है..फिर भी पार पाने की एक कोशिश जिंदा रहती है.. हालांकि लोग तोलते है इन परेशानियों को पाप और पुण्य के तराजू  में... लेकिन पाप और पुण्य में क्या कोई वास्तव में फर्क कर पाया है। भागती हुई सी इस जिंदगी में क्या एक पल भी सुकून का किसी ने पाया है... यदि हां तो उसने देव भाग्य पाया है।

2 comments:

Udan Tashtari said...

हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

अनेक शुभकामनाएँ.

EKTA said...

zindagi me sukoon mil jata to kya kehna,,
nirash mann ko junoon mil jata to kya kehna..