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25.3.10

मेरी टिप्पणी पर सेंसर - आडवाणी जी आपसे जबाब चाहिए

एक ब्लोगर का या कहें ब्लॉग पढ़ने वाले पाठक का मूलभूत अधिकार है टिप्पणी देने का और वह भी स्वतंत्र रूप से .यदि ब्लॉग लिखने वाले को टिप्पणी पर आपत्ति है तो उसे हटाने का अधिकार है लेकिन टिप्पणी पर सेंसर यह कुठाराघात  है अभियक्ति की स्वतंत्रता पर . और उस व्यक्ति द्वारा जो हजारो या कहें लाखो लोगो के आदर्श के रूप में स्थापित है . 


आजकल एक फैशन चल गया है ब्लॉग लिखने का हम जैसो की देखा देखी . :-) यह ब्लॉग की समाज में स्थापित होने की गारंटी है . बहुत बड़े बड़े लोग भी ब्लॉग पॉवर का फायदा उठाने की कोशिश में है . ब्लॉग एक माध्यम बन गया है अपने मन की बात कहने का . 


खैर विषय पर लौटते हुए ...........  बड़े बड़े लोग ब्लॉग लिख रहे है उनमे से एक है अपने प्राइम मिनिस्टर बेटिंग 
लौह पुरुष माननीय लाल कृष्ण आडवाणी . आडवाणी जी आजकल ब्लॉग वह भी हिन्दी में लिख रहे है . हिन्दी में ब्लॉग पढ़ने की लालसा लिए में आडवानी जी के ब्लॉग पर पंहुचा . पोस्ट का विषय था विदेश में जमा गुप्त भारतीय धन पर श्वेत पत्र की जरुरत  . पढ़ कर अच्छा लगा छः साल सत्ता सुख के बाद छः साल विपक्ष में बैठने के बाद आडवानी जी को ध्यान आया . 


तुरंत एक टिप्पणी की -   छ साल बहुत होते है इन सब के लिये …………………… आप इतना तो कर सकते है कि भा ज पा के सभी नेताओ से शपथ पत्र दिला दे उनका कोइ ऎसा खाता नही है.ख़ास कर मेनका और वरुण गांधी से 




आडवानी जी ने जो टिप्पणी अपने ब्लॉग पर लगाई वह चौकाने वाली थी उन्होंने मेरी टिप्पणी को सेंसर कर दिया और जो उनके ब्लॉग पर मेरी टिप्पणी आई उसमे मेनका और वरुण गांधी का नाम नदारत था 


dhiru singh Says:


छ साल बहुत होते है इन सब के लिये …………………… आप इतना तो कर सकते है कि भा ज पा के सभी नेताओ से शपथ पत्र दिला दे उनका कोइ ऎसा खाता नही है.

इसका क्या अर्थ लगाया जाए . मेनका या वरुण गाँधी में ऐसा क्या आपत्तिजनक था जो आडवानी जी ने उसे हटा दिया . मुझे कोई परेशानी नहीं थी कि आडवानी जी मेरी टिप्पणी को बिलकुल हटा देते . लेकिन सेंसर पर मुझे एतराज है . 

क्या सेंसर मेरी स्वतंत्र अभियक्ति पर रोक नहीं . क्या इसे फासीवादी कार्यवाही मानी जाए . यह विषय मेरे लिए महत्वपूर्ण है और मैं आप सब से संरक्षण मांगता हूँ . 

इस तरह से तो टिप्पणी देना व्यर्थ सा लगता है . और मैं इस तरह के सेंसर के पूर्ण रूप से खिलाफ हूँ वह भी आडवाणी जी के द्वारा जो मेरे पिता तुल्य है .

क्या  आप मेरी आवाज़ के साथ है ?

2 comments:

प्रीतीश बारहठ said...

आप इतने भावुक क्यूँ हो रहे हैं? पिता तुल्यों की शिकायत का ये अंदाज कुछ जमता नहीं हैं। या तो वे पिता तुल्य नहीं हैं या ये भावुकता आपका भ्रम है। आपने जो टिप्पणी छोडी है उससे साफ जाहिर होता है कि वरुण और मेनका के स्विस बैंकों में खाते होने के आपके पास पक्के सुबूत हैं और आड़वानी की मंशा उनको बचाने की है। सबूत तो हैं न आपके पास !!! यदि हैं तो उन्हें अदालत में पेश करिये किसी के ब्लाग पर नहीं। इसे स्वतंत्र अभिव्यक्त नहीं कहते हैं। खुद को दुरुस्त करिये। यह किसी का व्यक्तिगत चरित्र हनन है जनाब! वह भी बिना खतरा मोल लिये। जहाँ तक आपकी टिप्पणी आड़वानी को आइना दिखाती थी उन्होंने उसे छाप दिया है, इस तरह उन्होंने आपके अधिकार की रक्षा की है और खुद को लोकतांत्रिक साबित किया है। आपका शक है कि उन्होंने फासीवादी तरीके से या आपकी टिप्पणी से डरकर मेनका और वरुण का नाम सेंसर कर दिया है तो मुझे उम्मीद है कि वे खुद के ब्लाग को किसी के चरित्र हनन के लिये इस्तेमाल न करने की इजाजत देकर दूसरी लोकतांत्रिक जिम्मेदारी निभा रहे हैं। क्या दरियादिली है आपकी कि पूरी टिप्पणी को न छपते तो आपको शिकायत न होती ! इसका अर्थ है आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भी नहीं समझते हैं और लोकतंत्र को भी! आडवाणी का ब्लाग देखा नहीं है क्या वे स्विस बैंक खातों की बाबत् मेनका और वरुण के लिये संप्रग सरकार से कोई संरक्षण भी मांग रहे हैं ?

प्रीतीश बारहठ said...

उम्मीद है आपको आडवाणी के तरह मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी ।