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25.3.10

अंध मोदी-विरोध का मतलब

छद्म सेक्युलरों पर नरेंद्र मोदी के बहाने हिंदू भावना को कुचलने की साजिश रचने का आरोप लगा रहे हैं एस शंकर
साल भर भी नहीं हुआ जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त इसी विशेष जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में कुख्यात मानवाधिकारवादी तीस्ता सीतलवाड को गुजरात के बारे में भयानक हत्याओं और उत्पीड़न की झूठी कहानियां गढ़ने, झूठे गवाहों की फौज तैयार करने, अदालतों में झूठे दस्तावेज जमा करवाने और पुलिस पर मिथ्या आरोप लगाने का दोषी ठहराया था। पर उस रिपोर्ट के बाद तीस्ता के विरुद्ध कुछ नहीं हुआ। अब उसी दल ने नरेंद्र मोदी को मात्र बयान देने के लिए बुलाया, तो इसी आधार पर उनसे इस्तीफा देने की मांग होने लगी! इस अंध मोदी-विरोध को कैसे समझा जाना चाहिए? पांच वर्ष पहले नाटककार विजय तेंदुलकर ने कहा था कि यदि वे पिस्तौल उठाएंगे तो सबसे पहले नरेंद्र मोदी को मारेंगे। देश के बौद्धिक-राजनीतिक वर्ग ने तेंदुलकर की निंदा नहीं की। उलटे मोदी को बुरा-भला कहा। इनमें वे भी थे जो मानवाधिकार और सामुदायिक सद्भाव के लिए आतंकियों को भी सुविधा व छूट देने की मांग करते हैं। मोदी लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बने तो इसमें उनके अच्छे शासन का भी योग है। इसके बावजूद राजनीतिक वर्ग में उनके प्रति विद्वेष और उन्हें कानून या मीडिया द्वारा फांसने की कोशिशें भी कम नहीं हुई हैं। इसका अर्थ है कि आज भी मोदी अकेले हैं। यानी एक ऐसा व्यक्ति जो जाने-अनजाने हिंदू आत्मरक्षा का प्रतीक बना, जिसने एक छोटा-सा सच कहने की हिम्मत की, उसे भारत में राजनीतिक अछूत बना दिया गया है! उसकी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, निष्पक्ष-प्रशासन और जन-समर्थन के बावजूद प्रभावी राजनीतिक-बौद्धिक वर्ग में उसके लिए बोलने वाला कोई नहीं। यह एक खतरनाक स्थिति है। मोदी केवल चुनावी आधार पर विजयी रहे हैं, क्योंकि गुजराती जनता उनके पक्ष में है। इसके अलावा हर राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनके खिलाफ जहर उगला जाता है। यह दुनिया भर के हिंदू-विरोधियों द्वारा हिंदुओं को दी जाने वाली चेतावनी है कि तुम्हें कुछ कहने का अधिकार नहीं! तुम्हें बराबरी का हक नहीं! तुम्हें अपने देश में भी दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में रहना है। इस अखंड मोदी-विरोध ने उन हिंदुओं को डराया है जो हिंदू चिंताओं को मुस्लिम चिंताओं के समान देखना उचित समझते हैं। यह संयोग नहीं कि जो बुद्धिजीवी, पत्रकार और राजनीतिकर्मी नरेंद्र मोदी के विरुद्ध जिहाद में लगे हैं, वे ऐसे एनजीओ के कर्ता-धर्ता हैं जिन्हें संदिग्ध विदेशी स्त्रोतों से धन, पुरस्कार मिलता है। तीस्ता सीतलवाड को निरंतर सम्मानित किया जा रहा है। उन्हें पुरस्कृत करने का संदेश यही है कि देश हिंदू-विरोधियों का है। इसलिए हिंदुओं में भी जो सेक्यूलर-वामपंथ, मानवाधिकारवाद, वैश्विक नागरिक, बहुंसस्कृतिवाद आदि के नाम पर व्यवहारत: हिंदू-विरोधी हो चुके हैं, उन्हीं को प्रश्रय मिलेगा। इसके अतिरिक्त जो सहज हिंदू भावना, न्याय भावना से बोलेंगे उन्हें लताड़ा जाएगा। मोदी-विरोध एक वृहत वैचारिक-राजनीतिक रणनीति का अंग है। वह अलग बिंदु नहीं, बल्कि एक असहिष्णु तानाशाही की अभिव्यक्ति है, जो मानो भारतीय हिंदुओं को चेतावनी दे रही है कि विश्व में हिंदू समुदाय या हित जैसी चीज नहीं। इसलिए उसके अधिकार तो क्या, सामान्य अभिव्यक्ति भी सांप्रदायिकता और दूसरों के अधिकारों का हनन है! मोदी को कदम-कदम पर अपमानित करना यही बताने का प्रयास है कि हिंदू भावनाओं की अभिव्यक्ति सख्त मना है। कि हिंदुओं को बराबरी की अनुमति नहीं। हिंदू को केवल पिटने, अपमानित होने और अन्य सभ्यताओं के समक्ष जी-हुजूरी की इजाजत है। वह स्वयं को हिंदू भी नहीं कह सकता। उसे केवल सेक्यूलर कहलाना है। उच्च-वर्गीय हिंदुओं ने यह हीन स्थिति स्वीकार कर ली है, जो ईसाई, इस्लामी और कम्युनिस्ट साम्राज्यवादियों ने लंबे समय से जबरन बना रखी है। यह हीन-भावना हिंदू नेताओं, बुद्धिजीवियों में इतनी गहरी बैठी हुई है कि हरेक संकट में वे इस्लामी, ईसाई या मा‌र्क्सवादी सहमतों के विरुद्ध एक होने के बदले उस हिंदू से ही कतराते हैं जिसने कुछ सच बोल दिया हो। असंख्य उच्च-पदस्थ हिंदुओं द्वारा मोदी की निंदा करने का यही अभिप्राय है। इसीलिए मूल गोधरा-कांड, जिसने प्रतिहिंसा पैदा की, कभी नाराजगी या न्याय का विषय नहीं बना। किंतु उसके बाद हुई हिंदू-प्रतिक्रिया अंतहीन विषवमन का स्थायी विषय बनी रही है। यह स्वत: नहीं हुआ, न इसे भारतीय जनता का समर्थन है। गुजरात के चुनाव परिणामों से भी इसे बहुत आसानी से समझा सकता है। लोकतंत्र, कानून, सामान्य बुद्धि आदि किसी निष्पक्ष कसौटी पर मोदी के विरुद्ध अभियान उचित नहीं ठहरता। किंतु अभिजात्य पंथनिरपेक्ष-वामपंथियों ने मोदी के बहाने हिंदू भावना को जान-बूझकर कुचलने की नीति अपनाई है। दोषी स्वयं हिंदू समाज है, जो राजनीति का पहला सूत्र भूल गया है कि जो समाज अपने लिए बोलने में समर्थ नहीं, उसके सद्भाव, नाराजगी या भावना का विशेष मूल्य नहीं होता। यदि हम हिंदू होकर भी दुनिया के सामने खुल कर हिंदुओं की चिंता रखने से बचते हैं, और सेक्युलर दिखना चाहते हैं तो निर्बलता स्पष्ट है। राजनीति में निर्बल नहीं, शक्तिशाली टिकता है। मोदी को ध्वस्त करने की चाह के पीछे हिंदुओं को दबाने और हिंदू दब्बूपन को यथावत रखने की रणनीति है। अब मोदी एक प्रतीक के रूप में हैं, व्यक्ति के रूप में नहीं।
saabhar:-dainik jagran
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

2 comments:

Satyajeetprakash said...

सत्ता ऐसे लोगों को पुरस्कृत कर हिंदू भावना को कुचलने की कोशिश कर रही है.
वर्ना आजादी के बाद देश में डेढ़ हजार के करीब सांप्रदायिक दंगे हुए जिनमें चौवन हजार के करीब लोग मारे गए,
एक बार सुप्रीमकोर्ट की नींद नहीं खुली, ना ही एसआईटी का गठन हुआ.
राजीव गांधी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसने कहा था-
जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है
एक इंदिरा की कत्ल के इल्जाम में सात हजार सिखों को हलाल कर दिया, तब राजीव गांधी को भारत रत्न मिला.
अट्ठावन कारसेवकों को ट्रेन में जलाकर मारने के बाद जब राज्य में सांप्रदायिक दंगे हुए तो मोदी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है
थूकिए ऐसे मानवाधिकारवादियों और धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदारों पर.

kumar said...

watch these two videos and part 3 and 4 and get to know the truth of modee and gujrat

http://www.youtube.com/watch?v=WdPJv6-GOyA&feature=related


http://www.youtube.com/watch?v=fd7ZSvZmExk&feature=related